प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है. नई सरकार की गठन की कवायद तेज हो गई है. वहीं, दूसरी ओर बीजेपी संगठन में फेरबदल के कदम उठाए जाने हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पहली बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं और पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उनका कार्यकाल पहले ही पूरा हो चुका है. ऐसे में अब अगर शाह को दूसरी बार फिर बीजेपी अध्यक्ष चुना जाएगा या वे मोदी सरकार में मंत्री बनेंगे और कोई दूसरा नेता अध्यक्ष बनेगा?
बता दें कि 2014 का लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे. केंद्र की सत्ता में प्रचंड बहुमत से आने के बाद राजनाथ को मोदी सरकार में गृहमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई तो उन्होंने पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था. इसके बाद बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर अमित शाह की ताजपोशी 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हुई थी. इस तरह से अमित शाह ने राजनाथ के बचे दो साल के कार्यकाल को पूरा किया था.
इसके बाद जनवरी, 2016 में अमित शाह दूसरी बार बीजेपी के अध्यक्ष बने. शाह का तीन साल का पूरा कार्यकाल इसी साल जनवरी 2019 में पूरा हो चुका है. हालांकि शाह का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सितंबर 2018 में पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में संकल्प लिया गया था कि पार्टी 2014 चुनाव से बड़ी जीत हासिल कर 2019 में सत्ता में लौटेगी. इसके लिए अमित शाह लोकसभा चुनाव तक पार्टी के अस्थायी अध्यक्ष रहेंगे. इस तरह से शाह की अगुवाई में अब बीजेपी ने 2014 से भी ज्यादा सीटें 2019 में जीतकर सत्ता में वापसी की है.
दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी के संविधान के अनुसार, एक आदमी दो ही बार पूरे कार्यकाल के लिए पार्टी का अध्यक्ष बन सकता है. हालांकि अमित शाह ने पहला कार्यकाल राजनाथ सिंह का ही पूरा किया था. इसलिए तकनीकी तौर पर उनका अबतक एक ही कार्यकाल पूरा हुआ है.
बता दें कि बीजेपी के संविधान के मुताबिक पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष वही व्यक्ति हो सकता है जो कम से कम 15 वर्षों तक पार्टी का सदस्य रहा हो. इसके अलावा बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का 'चुनाव' निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और प्रदेश परिषदों के सदस्य शामिल होते हैं.
बीजेपी के संविधान में ये भी लिखा है कि निर्वाचक मंडल में से कोई भी 20 सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के नाम का संयुक्त रूप से प्रस्ताव कर सकते हैं. यह संयुक्त प्रस्ताव कम से कम ऐसे पांच प्रदेशों से आना जरूरी है, जहां राष्ट्रीय परिषद के चुनाव संपन्न हो चुके हों. साथ ही साथ नामांकन पत्र पर उम्मीदवार की स्वीकृति जरूर होनी चाहिए.