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जलपाईगुड़ी: चतुष्कोणीय मुकाबले में फंसी तृणमूल कांग्रेस की सीट

Jalpaiguri Constituency जलपाईगुड़ी,  पश्चिम बंगाल का ऐतिहासिक और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर एक जिला है. लोकसभा चुनाव 2019 में तृणमूल कांग्रेस ने अपने मौजूदा सांसद व‍िजय चंद्र बर्मन पर ही दांव लगाया है ज‍िन्हें मार्क्सवादी कम्युन‍िस्ट पार्टी के भागीरथ चंद्र रॉय से चुनौती म‍िल रही है. बीजेपी से डॉ. जयंत कुमार रॉय और कांग्रेस से मण‍ि कुमार दरनाल भी इस मुकाबले में हैं.

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ममता बनर्जी (Photo: Facebook)
ममता बनर्जी (Photo: Facebook)

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पश्च‍िम बंगाल की जलपाईगुड़ी संसदीय सीट पर इस बार चतुष्कोणीय मुकाबला होने के आसार हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में तृणमूल कांग्रेस ने अपने मौजूदा सांसद व‍िजय चंद्र बर्मन पर ही दांव लगाया है ज‍िन्हें मार्क्सवादी कम्युन‍िस्ट पार्टी के भागीरथ चंद्र रॉय से चुनौती म‍िल रही है. बीजेपी से डॉ. जयंत कुमार रॉय और कांग्रेस से मण‍ि कुमार दरनाल भी इस मुकाबले में हैं.  इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी, सोशल‍िस्ट यून‍िटी सेंटर ऑफ इंड‍िया (कम्युन‍िस्ट), अमरा बंगाली, समाजवादी जन पर‍िषद, कामातापुर पीपुल्स पार्टी (युनाइटेड) के साथ तीन न‍िर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में हैं.

बता दें क‍ि पश्चिम बंगाल की तीन सीटों पर 18 अप्रैल को दूसरे फेज में मतदान होना है. 10 मार्च को लोकसभा चुनाव 2019 की घोषणा होने के बाद देश,  चुनावी माहौल में आ गया है. 19 मार्च को इस सीट के ल‍िए नोट‍िफ‍िकेशन न‍िकला, 26 मार्च को नोम‍िनेशन की अंत‍िम तारीख, 27 मार्च को उम्मीदवारों की अंत‍िम ल‍िस्ट पर मुहर लगी. अब 18 अप्रैल के मतदान के ल‍िए सभी दलों ने अपनी ताकत झोंक दी है. लोकसभा चुनाव 2019 के दूसरे चरण में 13 राज्यों की 97 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है. मतदान का पर‍िणाम 23 मई को आना है.

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जलपाईगुड़ी पश्चिम बंगाल का ऐतिहासिक और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर एक जिला है. यह राज्य के उत्तर में स्थित है और उत्तर बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. यह जिला इसलिए महत्वपूर्ण क्योंकि यह देश के बाकी राज्यों को पूर्वोत्तर भारत से जोड़ता है. भौगोलिक नजरिये से देखा जाए तो यह पश्चिम बंगाल का एक शानदार स्थल है, जहां प्रकृति ने अपना खजाना दिल खोल कर लुटाया है.

तृणमूल ने पहली बार माकपा से छीनी सीट

पर्यटकों की पसंद जलपाईगुड़ी लोकसभा सीट 1962 में सामने आई थी. अभी इस सीट का प्रतिनिधित्व तृणमूल कांग्रेस के विजय चंद्र बर्मन कर रहे हैं. इस सीट पर देश में लगे आपातकाल के बाद ज्यादातर मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा) का कब्जा रहा है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के विजय चंद्र बर्मन यहां से जीत हासिल करने में कामयाब रहे. बर्मन ने 494,773 मतलब 38.00 फीसदी मतों के साथ जीत हासिल की थी जबकि 1980 से इस सीट पर काबिज माकपा के महेंद्र कुमार रॉय को हार का सामना करना पड़ा. रॉय को 425,167 यानी 32.65 फीसदी मत मिले.

लहराता रहा है लाल झंडा

जलपाईगुड़ी संसदीय सीट तीसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव के समय अस्तित्व में आई थी. उस दौरान देश के जनमानस और राजनीति में कांग्रेस के साथ ही जवाहरलाल नेहरू की आभा छाई हुई थी. इसका असर वाम रुझान वाले पश्चिम बंगाल में दिखता रहा है, और जलपाईगुड़ी संसदीय सीट पर 1992, 1967 और 1971 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस अपना झंडा फहराती रही. लेकिन आपातकाल के बाद देश के साथ ही जलपाईगुड़ी सीट की भी तस्वीर बदली और 1977 के चुनावों में स्वतंत्र उम्मीदवार खगेंद्र नाथ दासगुप्ता ने यहां से जीत हासिल की. इसके बाद 1980 में इस सीट पर माकपा के सुबोध सेन जीत कर संसद पहुंचे. 1984, 1989 में माकपा के माणिक सान्याल लगातार दो बार संसदीय चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे. उनके बाद माकपा के ही टिकट पर 1991 और 1996 के चुनावों में जितेंद्रनाथ दास जीतते रहे. 1998, 1999 और 2004 के चुनावों में माकपा की मिनाती सेन लगातार चुनी जाती रहीं. 2009 के आम चुनाव में माकपा ने अपना उम्मीदवार बदला और महेंद्र कुमार रॉय चुनाव जीते. जबकि 2014 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के विजय चंद्र बर्मन यहां से चुनकर संसद पहुंचे.

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सामाजिक पृष्टभूमि

जलपाईगुड़ी जिले की तकरीबन 80 फीसदी आबादी में दलितों और आदिवासियों की हिस्सेदारी है. यह वजह है कि जलपाईगुड़ी की सात विधानसभा सीटों में से छह अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए सुरक्षित हैं.परिसीमन आयोग की 2009 की परिसीमन रिपोर्ट में जलपाईगुड़ी लोकसभा सीट को सात विधानसभा क्षेत्रों में विभाजित किया गया. इनमें से पांच मेकलीगंज, धुपगुड़ी, मेनागुड़ी, जलपाईगुड़ी और राजगंज अनुसूचित जाति और एक विधानसभा सीट माल अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है. दबग्राम-फुलबारी सीट सामान्य है. मतदाता सूची 2017 के मुताबिक जलपाईगुड़ी संसदीय क्षेत्र में 1654578 मतदाता है जो 1831 मतदाता केंद्रों पर वोटिंग करते हैं. आम चुनाव 2014 में 85.17% मतदान हुआ था जबकि 2009 में यह आंकड़ा 82.36% था. 

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