लोकसभा चुनाव-2019 में गोरखपुर संसदीय सीट से बीजेपी ने अभिनेता रवि किशन शुक्ला को मैदान में उतारा है. रवि किशन की एंट्री और वर्तमान सांसद प्रवीण निषाद का सीट बदलना, गोरखुपर के जातीय गणित को बदल सकता है. एक बार फिर उपचुनाव की तरह सियासी समीकरण बनते नजर आ रहे हैं. गोरखपुर के सियासी संग्राम में उपचुनाव की तरह ही बीजेपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारा हैं, जिनका मुकाबला सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन की ओर से उतरे रामभुआल निषाद से है. ऐसे में सवाल उठता है कि रवि किशन के जरिए योगी आदित्यनाथ गोरखपुर में बीजेपी की 'घर वापसी' करा पाएंगे?
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि गोरखपुर के राजनीतिक समीकरण को देखें तो निषाद वोटर्स अब महागठबंधन के उम्मीदवार की ओर रुख कर सकते हैं. वहीं, जिस उम्मीदवार को बीजेपी से टिकट मिलने की उम्मीद थी, उस जाति (सैंथवार) के करीब 2 लाख वोटर गोरखपुर संसदीय सीट में हैं. ऐसे में सैंथवार वोटर भी बीजेपी की परेशानी बढ़ा सकते हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए एक बार फिर उपचुनाव जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
तय माना जा रहा था विधायक महेंद्र पाल सिंह का टिकट
गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार रितेश मिश्रा का कहना है कि पिपराइच से विधायक महेंद्र पाल सिंह की दावेदारी गोरखपुर सीट से बीजेपी की ओर से सबसे ज्यादा मजबूत थी. उन्होंने क्षेत्र में कैंपेनिंग भी शुरू कर दी थी. उनका टिकट लगभग तय माना जा रहा था, लेकिन रवि किशन शुक्ला को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद यहां चुनाव रोचक हो गया है.
गोरखपुर लोकसभा सीट पर करीब 3.5 लाख वोटर निषाद जाति के हैं. अब गोरखपुर से एक मात्र मजबूत निषाद उम्मीदवार गठबंधन का है. रामभुआल निषाद गोरखपुर सीट से महागठबंधन के उम्मीदवार हैं. ऐसे में निषाद वोटर्स गठबंधन के प्रत्याशी की ओर रुख कर सकते हैं. अगर प्रवीण निषाद को बीजेपी गोरखपुर सीट से उम्मीदवार बनाती तो महागठबंधन का वोट प्रभावित होना तय था.
बीजेपी से कट सकते हैं सैंथवार वोटर
रितेश मिश्रा ने बताया कि गोरखुपर सीट से पिपराइच के विधायक महेंद्र पाल सिंह का टिकट लगभग तय माना जा रहा था. उन्होंने पूरी तैयारी भी कर ली थी. वह क्षेत्रों में सभाएं भी करने जा रहे थे. सैंथवार जाति से आने वाले महेंद्र पाल सिंह की ग्रामीण क्षेत्र में अच्छी पकड़ है. उन्हें सीएम योगी आदित्यनाथ का करीबी माना जाता है. अब उनका टिकट कटने के बाद सैंथवार मतदाताओं की नाराजगी बीजेपी से बढ़ सकती है. जबकि गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में करीब 2.5 लाख सैंथवार मतदाता हैं. ऐसे में निषाद समुदाय के साथ-साथ सैंथवार कटते हैं तो बीजेपी की राह मुश्किलों भरी हो सकती है.
जवाबदेही योगी की होगी, क्रेडिट हाई कमान लेंगे
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव-2019 में बीजेपी ने सीएम योगी के पसंदीदा उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है. इसलिए उनके खेमे में थोड़ी नाराजगी है. इस नाराजगी का रिजल्ट पर क्या प्रभाव होगा, ये कहना अभी मुश्किल है क्योंकि चुनाव में अभी थोड़ा वक्ता है. खैर रिजल्ट जो भी हो जवाबदेही योगी आदित्यनाथ की होगी. हालांकि रवि किशन चुनाव जीतते हैं तो इसका क्रेडिट पार्टी के हाई कमान ही लेना चाहेगा. अगर रिजल्ट बीजेपी के पक्ष में नहीं होता है तो सीधे-सीधे सीएम योगी आदित्यनाथ की जिम्मेदारी होगी.
गोरखपुर में नहीं चला है स्टार उम्मीदवारों का सिक्का
गोरखपुर सीट से स्टार उम्मीदवार कभी कमाल नहीं कर पाए हैं. 2009 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से भोजपुरी स्टार मनोज तिवारी ने किस्मत आजमाई थी, लेकिन वे अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे. मनोज तिवारी को सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव में मुंह की खानी पड़ी थी. फिलहाल वह दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष हैं. 2014 के आम चुनावों में मनोज तिवारी उत्तर-पूर्वी दिल्ली क्षेत्र से बीजेपी के टिकट पर जीते थे.
रवि किशन के 'शुक्ला' पर दे रहे हैं जोर
पत्रकार रितेश मिश्रा का कहना है कि अभी तक अभिनेता रवि किशन शुक्ला को रवि किशन बुलाया जाता रहा है. पब्लिक भी रवि किशन बुलाती है, लेकिन बीजेपी से प्रत्याशी बनाए जाने के बाद रवि किशन के शुक्ला होने पर जोर दिया जा रहा है. ये ब्राह्मण वोट बैंक साधने की स्ट्रैटजी है. उन्होंने कहा कि शहरी सवर्ण वोटर बीजेपी के साथ ही जाएगा. बता दें कि बीते उपचुनाव में गोरखपुर सीट से बीजेपी ने ब्राह्मण कैंडिडेट उपेंद्र दत्त शुक्ला को उतारा था. उन्हें 464632 वोट मिले थे. उपचुनाव में प्रवीण निषाद सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार थे. उन्हें 454613 वोट मिले थे.
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