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पूनम सिन्हा की एंट्री से लखनऊ की लड़ाई दिलचस्प, तीनों कैंडिडेट बाहरी

राजनाथ सिंह के खिलाफ सपा ने कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा और कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद कृष्णम को उतारकर लखनऊ की राजनीतिक लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. हालांकि तीनों पार्टी के उम्मीदवार लखनऊ से बाहर के हैं. लखनऊ लोकसभा सीट पर लंबे समय से बीजेपी का  कब्जा है.

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डिंपल यादव और पूनम सिन्हा (फोटो-twitter)
डिंपल यादव और पूनम सिन्हा (फोटो-twitter)

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उत्तर प्रदेश के गोमती नदी के किनारे बसे लखनऊ को नवाबों का शहर कहा जाता है.लखनऊ लोकसभा सीट पर लंबे समय से बीजेपी का कब्जा रहा है साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भी राजनीतिक कर्मभूमि रही है. मौजूदा दौर में अटल की सियासी विरासत संभाल रहे बीजेपी के दिग्गज नेता और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह एक बार फिर लखनऊ के सियासी रणभूमि में उतरे हैं.

राजनाथ के खिलाफ सपा ने हाल ही बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा और कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद कृष्णम को उतारकर लखनऊ की राजनीतिक लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. हालांकि तीनों ही मुख्य राजनीतिक दल के उम्मीदवार लखनऊ से बाहर के हैं. लखनऊ लोकसभा सीट बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है. यहां पर 1991 से लगातार बीजेपी का कब्जा है. सपा और बसपा इस सीट पर आज तक अपना खाता भी नहीं खोल सकी हैं.

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राजनाथ लखनऊ सीट से दोबारा चुनावी मैदान में उतरे हैं. मंगलवार को उन्होंने नामांकन पत्र दाखिल किया. राजनाथ सिंह मूलरुप से चंदौली के रहने वाले हैं. सपा ने कायस्थ मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए पूनम सिन्हा पर दांव खेला है. पूनम सिन्हा बिहार की पटना की रहने वाली हैं और मुंबई में रह रही हैं. वहीं, कांग्रेस ने ब्राह्मण और मुस्लिम समीकरण के जरिए राजनाथ को मात देने के लिए आचार्य प्रमोद कृष्णम पर भरोसा जताया है. लेकिन बीजेपी के दुर्ग को भेदना विपक्ष के इतना ही आसान नहीं है. प्रमोद कृष्णम यूपी के संभल के रहने वाले हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी ने लखनऊ संसदीय सीट पर 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 तक लगातार जीत दर्ज की थी. वाजपेयी को लखनऊ में न तो राजबब्बर मात दे सके, न ही मुजफ्फर अली और न ही राजा कर्ण सिंह. 2009 में बीजेपी से लाल जी टंडन ने इस सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. वाजपेयी के तर्ज पर ही राजनीतिक समीकरण को साधकर राजनाथ सिंह ने 2014 के सियासी जंग को फतह किया था और कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को करीब पौने तीन लाख वोटों से मात दी थी.

दरअसल राजनाथ सिंह के लखनऊ में मजबूत पकड़ होने के पीछे उनकी अपनी छवि है. इसका नतीजा है कि हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम मतदाताओं ने भी बड़ी तादाद में उनके पक्ष में पिछले चुनाव में वोट किया था. इसी का नतीजा था कि सपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में एकजुट करने में सफल नहीं रह सकी.

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लखनऊ लोकसभा सीट के राजनीतिक समीकरण को देखें तो बड़ी आबादी मुस्लिम समुदाय की है. मुस्लिम 20 फीसदी, अनुसूचित जाति 14.5 फीसदी, ब्राह्मण 8 फीसदी, राजपूत 7 फीसदी, ओबीसी 28 फीसदी, वैश्य 10 और अन्य 12 फीसदी मतदाता हैं. लखनऊ संसदीय सीट पर पांच विधानसभा सीटें हैं और मौजूदा समय में सभी पर बीजेपी का कब्जा है.

राजनाथ सिंह को इस बार लखनऊ के रण में घेरने के लिए सपा और कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला है. सपा शत्रुघ्न सिन्हा के स्टारडम को कैश कराने के लिए उनकी पत्नी पूनम सिन्हा को उतारा है. पूनम सिन्हा के ऊपर सबसे बड़ी जिम्मेदारी लखनऊ के कायस्थ मतदाताओं के दिल जीतने की होगी, जो मौजूदा समय में बीजेपी के परंपरागत वोटर हैं. इसके अलावा लखनऊ सीट से पूरी तरह से उनके लिए नई है और सपा-बसपा कार्यकर्ताओं से पूरी तरह वाकिफ नहीं है. ऐसे में उन्हें जमीनी स्तर कई कठिनाईयों से जूझना पड़ सकता है. इसके अलावा सपा और बसपा इस सीट पर कभी भी जीत नहीं सकी है. ऐसे में इस सीट पर सपा के खाता खोलने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है. 

आचार्य प्रमोद कृष्णम 2014 में संभल सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर  चुनावी मैदान में उतरे थे. लेकिन जीत नहीं सके हैं. प्रमोद कृष्णम की मुसलमानों के बीच काफी अच्छी छवि है. इसके चलते लखनऊ संसदीय सीट पर कांग्रेस ने उन्हें उतारा है. ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं के साथ-साथ ब्राह्मण मतदाताओं को साधने की चुनौती होगी. प्रमोद कृष्णम अगर इस समीकरण को बनाने में कामयाब रहते हैं तो बीजेपी की राह में बाधा बन सकते हैं.

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