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बालाघाट लोकसभा सीट: क्या बीजेपी लगा पाएगी जीत का 'छक्का'?

बालाघाट मध्य प्रदेश की वो लोकसभा सीट है जिसपर पिछले कुछ चुनावों से सिर्फ एक ही पार्टी को जीत मिली है. भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) का खाता इस सीट पर जरूर देर से खुला, लेकिन पहली जीत दर्ज करने के बाद उसे यहां पर कोई मात नहीं दे पाया. 1998 में बीजेपी ने यहां पर अपना पहला चुनाव जीता और ये सिलसिला अब तक जारी है. वह लगातार 5 चुनाव यहां पर जीत चुकी और उसकी नजर यहां लगातार छठी जीत दर्ज करने पर है.

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बीजेपी(फोटो- Reuters)
बीजेपी(फोटो- Reuters)

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बालाघाट मध्य प्रदेश की वो लोकसभा सीट है जिसपर पिछले कुछ चुनावों से सिर्फ एक ही पार्टी को जीत मिली है. भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) का खाता इस सीट पर जरूर देर से खुला, लेकिन पहली जीत दर्ज करने के बाद उसे यहां पर कोई मात नहीं दे पाया. 1998 में बीजेपी ने यहां पर अपना पहला चुनाव जीता और ये सिलसिला अब तक जारी है. वह लगातार 5 चुनाव यहां पर जीत चुकी और उसकी नजर यहां लगातार छठी जीत दर्ज करने पर है. बीजेपी के बोधसिंह भगत यहां के सांसद हैं. वह 2014 में जीतकर पहली बार संसद पहुंचे.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

बालाघाट सीट पर पहला चुनाव 1951 में हुआ. इस चुनाव में कांग्रेस के सीडी गौतम ने जीत हासिल की. इसके अगले चुनाव में भी यहां पर कांग्रेस को जीत मिली, हालांकि 1962 के चुनाव में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई.

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1967 में कांग्रेस ने एक बार फिर यहां पर वापसी की और लगातार 2 चुनावों में यहां पर विजयी रही. 1996 तक बालाघाट में कांग्रेस का ही दबदबा रहा. बीजेपी का खाता इस सीट पर 1998 के चुनाव में खुला. तब गौरीशंकर बिसेन ने कांग्रेस के विश्वेवर भगत को हराकर पहली बार इस सीट पर बीजेपी को जीत दिलाई. 1998 में हारने से पहले विश्वेश्वर भगत 1991 और 1996 का चुनाव जीत चुके थे.

1998 के बाद से यह सीट बीजेपी के ही पास है. देखा जाए तो बालाघाट में किसी एक खास नेता की पकड़ नहीं रही है. यहां से जरूर विश्वेश्वर भगत, नंदकिशोर शर्मा और बीजेपी के गौरीशंकर बिसेन 2-2 बार चुनाव जीते हैं.

पिछले कुछ नतीजों को देखा जाए तो यह सीट बीजेपी का गढ़ बनती जा रही है. बालाघाट लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. बैहर, बालाघाट, बारघाट, लांजी, वारसिवनी, सिवनी, पारसवाडा, कटांगी यहां की विधानसभा सीटें हैं. इनमें से 4 पर कांग्रेस, 3 पर बीजेपी का कब्जा है और 1 सीट पर निर्दलीय विधायक है.

2014 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के बोधसिंह भगत ने कांग्रेस की हिना लिखीराम को हराया था. बोधसिंह भगत को 4,80,594(43.17 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं हिना लिखीराम को 3,84,553(34.54 फीसदी) वोट मिले थे. वहीं सपा इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रही थी.

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2009 के लोकसभा चुनाव में भी इस सीट पर बीजेपी को जीत मिली थी. बीजेपी के केडी देशमुख ने कांग्रस के विश्वेवर भगत को हराया था. केडी देशमुख को 2,99,959(39.65 फीसदी) वोट मिले थे. विश्वेवर भगत को 2,59,140(34.25 फीसदी) वोट मिले थे. वहीं आरजेडी इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रही थी.

सामाजिक ताना-बाना

बालाघाट जिला देश के खनिज मानचित्र पर एक गौरवशाली स्थान रखता है. देश का लगभग 80% मैंगनीज का उत्पादन बालाघाट से होता है. इस शहर को पहले बूढा के नाम से जाना जाता था. बालाघाट जिला वन संपदा से समृद्ध है.2011 की जनगणना के मुताबिक बालाघाट की जनसंख्या 2361361 है. यहां की 84.79 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 15.21 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. बालाघाट की 7.91 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति और 24.73 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है.

चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां पर 16,29,769 मतदाता थे. इनमें से 8,07,102 महिला मतदाता और 8,22,667 पुरुष मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 68.31 फीसदी मतदान हुआ था.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

64 साल के बोधसिंह भगत 2014 का चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचे. 21 मई, 1955 को बालाघाट में जन्मे बोधसिंह भगत की 16वीं लोकसभा में उपस्थिति 82 फीसदी रही. उन्होंने 20 बहस में हिस्सा लिया. संसद में बोधसिंह ने 113 सवाल भी किए.

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बोधसिंह ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, अटल पेंशन योजना, ब्याज मुक्त लोन जैसे मुद्दों पर सवाल किया. बोधसिंह भगत को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 25.38 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 21.47 यानी मूल आवंटित फंड का 84.19 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 3.92 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.

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