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दमोह लोकसभा सीट: क्या एक बार फिर खिलेगा 'कमल' या 'पंजा' मारेगा बाजी?

दमोह लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 में हुआ. यहां पर शुरुआती 3 चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. दमोह लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ है. बीजेपी को इस सीट पर पहली जीत 1989 में मिली. 1989 के बाद से ही यहां पर बीजेपी का विजयी सफर जारी है.

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बीजेपी(फोटो- पीटीआई)
बीजेपी(फोटो- पीटीआई)

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मध्य प्रदेश की दमोह लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 में हुआ. यहां पर शुरुआती 3 चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. दमोह लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ है. बीजेपी को इस सीट पर पहली जीत 1989 में मिली. 1989 के बाद से ही यहां पर बीजेपी का विजयी सफर जारी है. वह लगातार 8 चुनावों में यहां पर जीत हासिल कर चुकी है. आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी की नजर लगातार यहां पर नौवीं जीत दर्ज करने पर होगी तो वहीं कांग्रेस इस सीट पर एक बार फिर वापसी करना चाहेगी.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

दमोह लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 में हुआ था. तब यह सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित थी. इस चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी. 1967 में परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य हो गई. 1967 और 1971 में भी कांग्रेस को यहां पर  जीत मिली थी. 1977 में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई. भारतीय लोकदल ने इस सीट पर जीत हासिल की. 1980 में कांग्रेस ने यहां पर वापसी की. कांग्रेस ने 1984 का चुनाव भी जीता.बीजेपी को पहली बार इस सीट पर जीत 1989 में मिली. लोकेंद्र सिंह पहली बार यहां से जीतने वाले बीजेपी नेता बने.

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1989 में पहली जीत हासिल करने के बाद से बीजेपी को इस सीट पर हार नहीं मिली. उसके जीत का सफर लगातार जारी है. दमोह के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. देवरी, मल्हारा, जबेरा, रहली, पाथरिया, हट्टा, बंडा, दमोह सीटें यहां पर आती हैं. इन 8 सीटों में से 4 पर कांग्रेस का कब्जा है, 3 पर बीजेपी और 1 सीट पर बीएसपी का कब्जा है.

2014 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रहलाद सिंह पटेल को 513079(56.25 फीसदी) वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के चौधरी महेंद्र प्रताप सिंह को 299780 (32.87 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 213299 वोटों का था. इस चुनाव में बसपा 3.46 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थी.

इससे पहले 2009 के चुनाव में बीजेपी के शिवराज सिंह लोढी को जीत मिली थी. उन्होंने कांग्रेस के चंद्रभान भैया का हराया था. शिवराज सिंह लोढी को 302673(50.52 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं चंद्रभान को 231796(38.69 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 70877 वोटों का था.इस चुनाव में सपा 1.31 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थी.

सामाजिक ताना-बाना

दमोह सागर संभाग का एक जिला और बुंदेलखंड अंचल का शहर है. हिंदू पौराणिक कथाओं के राजा नल की पत्नी दमयंती के नाम पर ही इसका नाम दमोह पड़ा. 2011 की जनगणना के मुताबिक दमोह की जनसंख्या 2509956 है. यहां की 82.01 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 17.99 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. दमोह में 19.44 फीसदी लोग अनुसूचित जाति और 13.13 फीसदी लोग अनुसूचित जनजाति के हैं.

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चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां पर 16,51,106 मतदाता थे. इनमें से 7,68,600 महिला मतदाता और 8,82,506 पुरुष मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 55.24 फीसदी वोटिंग हुई थी.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

58 साल के प्रहलाद सिंह पटेल 2014 का लोकसभा चुनाव जीतकर चौथी बार सांसद बने. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में जन्मे प्रहलाद सिंह पटेल ने बीएससी और एमए की पढ़ाई की है. संसद में प्रदर्शन की बात करें तो  प्रहलाद सिंह पटेल की उपस्थिति 94.39 फीसदी रही. प्रहलाद सिंह पटेल ने संसद की 158 बहस में हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने 435 सवाल भी किए. उन्होंने संसद में एटीएम को अपग्रेड करने, सौभाग्य योजना, धुम्रपान पर बैन, रेलवे स्टेशन पर सफाई, बाल मजदूरी जैसे अहम मुद्दों पर सवाल किए.

प्रहलाद सिंह पटेल को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 27.23 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 24.10 यानी मूल आवंटित फंड का 94.40 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 3.13 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.

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