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खरगोन लोकसभा सीट: बीजेपी की नजर हैट्रिक पर, कांग्रेस वापसी को कोशिश में

भारत के उत्तर व दक्षिण प्रदेशों को जोड़ने वाले प्राकृतिक मार्ग पर बसा खरगोन मध्य प्रदेश के महत्वपूर्ण शहरों में से एक है. साल 1962 में यहां पर पहला चुनाव हुआ और जनसंघ ने जीत का परचम फहराया. इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला रहा है.

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बीजेपी और कांग्रेस (फोटो- पीटीआई)
बीजेपी और कांग्रेस (फोटो- पीटीआई)

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भारत के उत्तर व दक्षिण प्रदेशों को जोड़ने वाले प्राकृतिक मार्ग पर बसा खरगोन मध्य प्रदेश के महत्वपूर्ण शहरों में से एक है. साल 1962 में यहां पर पहला चुनाव हुआ और जनसंघ ने जीत का परचम फहराया. इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला रहा है.

बीजेपी इस सीट पर जीत का चौका लगा चुकी है. 1989 से 1999 के बीच हुए चुनाव में उसने लगातार यहां पर विजय हासिल की. खरगोन लोकसभा सीट पर हुए हाल के चुनावों पर नजर डालें तो पिछले 2 चुनावों में बीजेपी और 1 चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. बीजेपी के सुभाष पटेल यहां के सांसद हैं.

सामाजिक ताना-बाना

1 नवंबर  1956 को मध्य प्रदेश के गठन के साथ ही खरगोन  "पश्चिम निमाड़" के रूप में अस्तित्व में आ गया था. यह मध्य प्रदेश की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर स्थित है. इस जिले के उत्तर में धार, इंदौर व देवास, दक्षिण में महाराष्ट्र, पूर्व में खण्डवा, बुरहानपुर तथा पश्चिम में बड़वानी है. यह शहर नर्मदा घाटी के लगभग मध्य भाग में स्थित है.

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2011 की जनगणना के मुताबिक खरगोन की जनसंख्या 26,25,396 है. यहां की 84.46 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 15.54 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. यहां अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या अच्छी खासी है. खरगोन में 53.56 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति के लोगों की है और 9.02 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की है. यहां पर 17,61,005 मतदाता हैं.

चुनाव आयोग के 2014 के आंकड़े के मुताबिक यहां पर 17,03,271 मतदाता थे, जिनमें से 8,66,897 पुरुष मतदाता और 8,36,374 महिला मतदाता थे. 2014 में इस सीट पर 67.67 फीसदी मतदान हुआ था.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

खरगोन लोकसभा सीट पर पहला चुनाव साल 1962 में हुआ. फिलहाल यह सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है. यहां पर हुए पहले चुनाव में जनसंघ के रामचंद्र बडे को जीत मिली थी. हालांकि अगले चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के एस बाजपेयी को जीत मिली.

1971 के चुनाव में रामचंद्र ने एक बार फिर वापसी की और कांग्रेस के अमलोकाचंद को मात दी. बीजेपी को पहली बार इस सीट पर जीत 1989 में मिली और अगले 3 चुनावों में उसने यहां पर विजय हासिल की. कांग्रेस ने 1999 में यहां पर फिर वापसी की और ताराचंद पटेल यहां के सांसद बने. इसके अगले चुनाव 2004 में बीजेपी के कृष्ण मुरारी जीते. 2007 में यहां पर उपचुनाव और कांग्रेस ने वापसी की. कृष्ण मुरारी को इस चुनाव में हार मिली.

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2009 में परिसीमन के बाद यह सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित हो गई. यहां पर पिछले 2 चुनावों में बीजेपी की जीत मिली है. यहां की जनता ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों को बराबरी का मौका दी है.

फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है.सुभाष पटेल यहां के सांसद हैं. बीजेपी को यहां पर 7 चुनाव में जीत मिली है तो कांग्रेस को 5 चुनाव में जीत मिली है. खरगोन लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. देपालपुल, इंदौर 3,राऊ, इंदौर 1, इंदौर 4, सनवेर,  इंदौर 5, इंदौर 2 यहां की विधानसभा सीटें हैं. इन 8 विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी और 4 पर कांग्रेस का कब्जा है.

2014 का जनादेश

2014 के चुनाव में बीजेपी के सुभाष पटेल को 649354(56.34 फीसदी) वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के रमेश पटेल को 391475(33.97 फीसदी)वोट मिले थे. आम आदमी पार्टी 2.71 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी.

इससे पहले 2009 के चुनाव में बीजेपी के मक्कन सिंह को जीत मिली थी.उन्होंने का बालाराम बच्चन को हराया था. मक्कन सिंह को 351296(46.19 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं बालाराम बच्चन को 317121(41.7 फीसदी) वोट मिले थे. सीपीआई4.19 फीसदी वोटों के साथ इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रही थी.

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सांसद का रिपोर्ट कार्ड

41 साल के सुभाष पटेल 2014 का लोकसभा चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने. पेशे से किसान सुभाष पटेल ने एमए किया है. संसद में उनकी उपस्थिति का बात करें तो वह उनकी मौजूदगी 90 फीसदी रही. उन्होंने 8 बहस में हिस्सा लिया और 95 सवाल किए.

सुभाष पटेल को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 22.50 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 24 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 19.72 यानी मूल आवंटित फंड का 87.62 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 4.29 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.

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