scorecardresearch
 

मोदी की प्रचंड लहर में मुलायम-चौधरी चरण सिंह कुनबा पूरी तरह से ध्वस्त

उत्तर प्रदेश की सियासत में मुलायम-चौधरी चरण के कुनबा का राजनीतिक वर्चस्व जगजाहिर है. इन दोनों परिवारों के राजनीतिक इलाके और जातीय समीकरण भी हैं, जिनके सहारे सूबे की सियासत में अपना दम दिखाते रहे हैं, लेकिन इस बार मोदी लहर में पूरी तरह से दोनों सियासी परिवारों का कुनबा पूरी तरह से ध्वस्त हो गया.

Advertisement
X
मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव सहित सपा नेता
मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव सहित सपा नेता

Advertisement

लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर में देश के कई सियासी कुनबे पूरी तरह से ध्वस्त हो गए हैं. देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को जहां अपने दुर्ग अमेठी में करारी हार का सामना करना पड़ा. वहीं, मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव को छोड़कर 'यादव कुनबा' पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है. इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत संभाल रहे चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी सपा-बसपा के साथ गठबंधन की सवारी के बाद भी अपनी सीटें नहीं बचा सके हैं.

उत्तर प्रदेश की सियासत में मुलायम-चौधरी चरण के कुनबा का राजनीतिक वर्चस्व जगजाहिर है. इन दोनों परिवारों के राजनीतिक इलाके और जातीय समीकरण भी हैं, जिनके सहारे सूबे की सियासत में अपना दम दिखाते रहे हैं. मुलायम परिवार जहां यादव-मुस्लिम मतों के सहारे सत्ता की दहलीज तक पहुंचते रहा है तो चौधरी चरण का परिवार जाट-मुस्लिम समीकरण के सहारे सत्ता की मलाई खाता रहा. लेकिन, नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में दस्तक देने के बाद दोनों कुनबों का समीकरण पूरी तरह से चुनाव दर चुनाव धराशाई होता नजर आ रहा है.

Advertisement

इस बार के लोकसभा चुनाव में मुलायम परिवार के 5 सदस्य अपनी परंपरागत सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे. इनमें मैनपुरी सीट से मुलायम सिंह यादव, आजमगढ़ से अखिलेश यादव, कन्नौज से डिंपल यादव, संभल से धर्मेंद्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव चुनावी मैदान में थे. इनमें मुलायम सिंह और अखिलेश यादव ही अपनी-अपनी सीट बचा पाए हैं. जबकि बाकी मुलायम परिवार के सदस्यों को मोदी लहर में हार का मुंह देखना पड़ा है.  

दिलचस्प बात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम कुनबा अपनी सीटें बचाने में कामयाब रहा था. सपा 5 सीटें जीती थी, ये सभी सीटें मुलायम परिवार की थीं. इस बार के चुनाव में अखिलेश यादव बसपा के साथ चुनावी संग्राम में उतरे थे. इस तरह से माना जा रहा था कि दलित-मुस्लिम-यादव समीकरण के जरिए सपा इन सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रहेगी लेकिन यह नतीजे में तब्दील नहीं हो सका है.

इन सीटों के नतीजों को देखें तो फिरोजाबाद सीट पर राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव की हार में उनके चाचा शिवपाल यादव की अहम भूमिका रही है. सपा से नाता तोड़कर अलग पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में उतरे शिवपाल 91869 हासिल करके अक्षय के जीत की राह में रोड़ा बन गए. बीजेपी यह सीट  28781 से जीत दर्ज की है.

Advertisement

इस तरह से बदायूं लोकसभा सीट पर धर्मेंद्र यादव के हार की वजह कांग्रेस से चुनावी मैदान में उतरे सलीम शेरवानी मुख्य वजह बने. धर्मेंद्र यादव को बीजेपी की संघमित्रा मौर्य ने 18454 से चुनाव हराया है. इस सीट पर शेरवानी को 51947 वोट मिले हैं. कन्नौज लोकसभा सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन जीत से महरूम रह गई. यहां से डिपंल यादव को 12353 मतों से हार का मुंह देखना पड़ा है.

मुलायम परिवार की तरह से चौधरी चरण की विरासत संभाल रहे चौधरी अजित सिंह की चौधराहट पूरी तरह से खत्म हो गई है. अजित सिंह ने अपनी राजनीतिक वजूद को बचाने के लिए सपा-बसपा के साथ हाथ मिलाया. इसके बाद भी अजित सिंह मुजफ्फरनगर सीट से और जयंत चौधरी बागपत सीट से हार का मुंह देखना पड़ा है. इसका जयंत चौधरी को बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने 23502 मतों से हराया और चौधरी अजित सिंह को संजीव बालियान ने 6526 मतों से हराया. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बाप-बेटे अपनी-अपनी सीटें नहीं बचा सके थे.

Advertisement
Advertisement