दिल्ली हाईकोर्ट ने अभिनेता से नेता बने कमल हासन की एक धार्मिक टिप्पणी को लेकर लगाई गई याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि ये याचिका हाइकोर्ट में सुनवाई के योग्य है या उनके कार्य क्षेत्र से जुड़ी हुई है. यह याचिका बीजेपी के प्रवक्ता और वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से लगाई गई थी. याचिका में कहा गया है कि धार्मिक आधार पर वोट हासिल करने के लिए दिए जाने वाले भाषणों पर चुनावों के दौरान रोक लगाई जानी चाहिए. याचिका में खास तौर से चुनावी लाभ के लिए धर्म के दुरूपयोग को लेकर दलों का पंजीकरण रद्द करने से लेकर प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने पर रोक लगाने तक की भी मांग की गई थी.
हाल ही में तमिलनाडु में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कमल हासन ने कहा था कि आजाद हिंदुस्तान का पहला उग्रवादी हिंदू था. यह बात उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे के बारे में कही थी. कमल हासन ने यह टिप्पणी चुनावी सभा के दौरान उस इलाके में की जो मुस्लिम बाहुल्य वाला था. अश्वनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी में कहा कि नेताओं के इस तरह के बयानों पर तुरंत रोक लगाए जाने की जरूरत है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को सुनवाई के दौरान यह भी बताया कि 2 दिन पहले चुनाव आयोग को भी इस बारे में अवगत कराया गया है लेकिन अभी तक चुनाव आयोग की तरफ से इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
हालांकि कोर्ट की तरफ से याचिकाकर्ता से यह भी पूछा गया कि वह किस हैसियत से इस मामले में याचिका लगा रहे हैं. वहीं चूंकि मामला तमिलनाडु का है इसीलिए इस याचिका पर सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट की बजाए मद्रास हाई कोर्ट में की जानी चाहिए. हालांकि हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए अश्वनी उपाध्याय के जरिए चुनाव आयोग को भेजी गई शिकायत पर जल्द से जल्द कार्रवाई करने का निर्देश जरूर दिया है.
बता दें कि चुनावों के दौरान कमल हासन की टिप्पणी कोई पहली और आखिरी टिप्पणी नहीं है बल्कि भाषणों में लगभग सभी पार्टियों के सभी नेता धर्म और जाति के आधार से जुड़ी आपत्तिजनक बातों को अपने भाषणों में शामिल कर रहे हैं.
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