तिरुअनंतपुरम से करीब 520 किमी की दूरी पर स्थित कन्नूर इलाका वैसे तो अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है, लेकिन यह वही इलाका है, जो राजनीतिक प्रतिशोध वाले रक्तपात के लिए पूरे देश में कुख्यात है. यह जिला असल में आजादी के काफी पहले से ही कम्युनिस्टों का गढ़ रहा है. केरल माकपा में कन्नूर लाॅबी काफी मजबूत रही है और मौजूदा सीएम विजयन भी इसी इलाके से आते हैं. बीजेपी अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर कन्नूर में होने वाली राजनीतिक हत्याओं का सवाल उठाती रही है. फिलहाल यहां से माकपा की पीके श्रीमती टीचर सांसद हैं.
साल 2016 से अब तक वहां करीब एक दर्जन राजनीतिक हत्याएं हो चुकी हैं. इस समुद्र तटवर्ती जिले में राजनीतिक हत्या 1970 के दशक से ही शुरू हो गई थी. एक अनुमान के अनुसार वहां साल 2000 से 2016 के बीच करीब 70 राजनीतिक हत्याएं हो चुकी थीं.
माकपा ने कांग्रेस से छीन ली थी सीट
साल 2014 में यहां से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी माकपा की पीके श्रीमती टीचर विजयी हुई थीं. उन्हें 4,27,622 वोट मिले थे. दूसरे स्थान पर रहे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कैंडिडेट के. सुधाकरन को 4,21,056 वोट मिले थे. इस तरह यह सीट माकपा ने कांग्रेस से हथिया लिया था. भारतीय जनता पार्टी के पी.सी. मोहनन मास्टर को 51,636 वोट, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) को 19,170 वोट, आम आदमी पार्टी के के.वी. शशिधरन को 6,106, बहुजन समाज पार्टी के एन. अब्दुल्ला दाऊद को 2,109 वोट, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) रेड स्टार को 1,536 वोट और नोटा (छव्ज्।) को 7,026 वोट मिले.
साल 2009 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के सुधाकरन श्री कुम्बाकुडी कुल 4,32,878 वोट पाकर जीते थे. दूसरे स्थान पर माकपा के कैंडिडेट के.के. रागेश थे.
करीब 40 फीसदी ग्रामीण
कन्नूर संसदीय क्षेत्र केरल के कन्नूर जिले में आता है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक इस संसदीय क्षेत्र की कुल जनसंख्या 16,72,184 थी, जिसमें से 39.18 फीसदी ग्रामीण और 60.82 फीसदी शहरी जनसंख्या थी. इसमें से अनुसूचित जाति (एसी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का अनुपात क्रमशः 3.23 और 2.24 फीसदी था.
इस संसदीय क्षेत्र में कुल 11 विधानसभा सीट हैं- थलिपरम्बा, इरिक्कुर, अझिकोड, कन्नूर, धर्मादाम और मत्तान्नूर. इनमें से साल 2016 के चुनाव में सात पर माकपा को जीत मिली है. माकपा की केंद्रीय कमिटी के 95 सदस्यों में से करीब 8 नेता कन्नूर से हैं. कन्नूर लोकसभा सीट का सृजन 1977 में हुआ था. पहले यह इलाका त्रावणकोर-कोचीन सीट के तहत आता था. साल 1977 में इस सीट के लिए पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में यहां से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई कैंडिडेट सी.के. चंद्रप्पन विजयी हुए थे. लेकिन 1980 में फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (यूआरएस) कैंडिडेट के. कुनहाम्बू और 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई) के एम रामचंद्रन विजयी हुए. यहां अब तक करीब छह बार कांग्रेस कैंडिडेट और तीन बार माकपा का कैंडिडेट सांसद बन चुका है.
वैचारिक लड़ाई का अखाड़ा
साल 2014 में यहां करीब 81 फीसदी मतदान हुआ था. यह इलाका वामपंथ का गढ़ है और राजनीतिक हिंसा खासकर वामपंथियों और संघ कार्यकर्ताओं के बीच राजनीतिक रंजिश और हत्या का केंद्र माना जाता है. अक्सर यहां से किसी वामपंथी या आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या की खबर आती रहती है. यहां राजनीतिक हिंसक लड़ाई फिलहाल कम्युनिस्टों और बीजेपी-संघ के समर्थकों में ज्यादा होती है, लेकिन राजनीतिक रूप से माकपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस है. चुनावी सीन में बीजेपी कहीं भी नहीं है. लेकिन संघ ने अपना संगठनात्मक ढांचा यहां काफी मजबूत कर लिया है. यहां इंडियन यूनियम मुस्लिम लीग और पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का भी काफी मजबूत समर्थन आधार है.
चुनावी माहौल में सबसे पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दिसंबर में ही यहां पहुंचकर बढ़त लेने की कोशिश कर चुके हैं. शाह के यहां पहुंचने पर काफी राजनीति भी हुई थी. असल में कन्नूर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के उद्घाटन से पहले ही शाह के विशेष विमान की यहां लैंडिंग के लिए नागर विमानन मंत्रालय ने एयरपोर्ट अथाॅरिटी से इजाजत देने को कहा था.
रिटायर्ड टीचर हैं मौजूदा सांसद
संसद में 69 वर्षीय पी.के. श्रीमती टीचर का प्रदर्शन सामान्य कहा जा सकता है. उनके परिवार में पति के अलावा एक बेटा है. वह रिटायर्ड टीचर हैं और महिला एवं बाल विकास कार्यों में सक्रिय रही हैं. संसद में उनकी उपस्थिति करीब 76 फीसदी रही है. उन्होंने 497 सवाल किए हैं और 158 बार बहसों और अन्य विधायी कार्यों में हिस्सा लिया है.
पीके श्रीमती टीचर को पिछले पांच साल में सांसद निधि के तहत ब्याज समेत कुल 19.34 करोड़ रुपये मिले थे, जिसमें वह 16.41 करोड़ रुपये यानी करीब 92 फीसदी रकम खर्च कर पाईं.