23 अप्रैल को होने वाले तीसरे चरण के चुनाव में यूपी की दस सीटों में से एक सीट मैनपुरी की होगी. मैनपुरी सीट सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का गढ़ है. पांचवीं बार वो यहां से मैदान में उतरे हैं. लड़ाई के लिहाज से देखें तो ले देकर विपक्ष के नाम पर केवल बीजेपी है, बाकी आठ छोटी लोकल पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवारों सहित मैनपुरी में कुल 12 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं. महागठबंधन की रायबरेली और अमेठी में रियायत के एवज में कांग्रेस ने मुलायम के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है.
सच्चाई तो ये है कि इस सीट का इतिहास समाजवादी पार्टी की सबसे मजबूत सीट के तौर पर जाना जाता है. एक पीढ़ी जवान हो गई और पिछले 24 साल से यहां समाजवादी पार्टी के अलावा किसी और को जीत नसीब नहीं हुई. 2014 में ‘मोदी की हवा’ के बावजूद बीजेपी उम्मीदवार शत्रुघ्न सिंह चौहान न सिर्फ हारे बल्कि उनकी हार का अंतर भी 3 लाख 64 हजार वोटों का था. बीएसपी एक लाख 42 हजार वोटों के साथ तीसरे नंबर पर थी.
मुलायम ने 2014 में दो सीटों (आजमगढ़ और मैनपुरी) से जीत हासिल की थी. बाद में उन्होंने मैनपुरी सीट अपने पोते तेज प्रताप के लिए छोड़ दिए थे. उपचुनाव में एक बार फिर बतौर सपा उम्मीदवार तेज प्रताप सिंह यादव ने बीजेपी उम्मीदवार प्रेम सिंह शाक्य को 3 लाख 21 हजार वोटों से हराया था. हालांकि इस उपचुनाव में बीजेपी के वोट में नौ फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी जबकि सपा के वोट में पांच फीसदी की.
मैनपुरी की एकतरफा लड़ाई में बीजेपी के प्रेम सिंह शाक्य 2019 में एक बार फिर मुलायम सिंह यादव का सामना करेंगे. अगर 2014 के परिणामों को आधार मानें तो सपा-बसपा के मिल जाने के बाद मुलायम को तकरीबन सात लाख वोट मिल सकते हैं. ऐसे में मैनपुरी में बदलाव की गुंजाइश तकरीबन न के बराबर है.
बीजेपी ने कभी भी मैनपुरी सीट नहीं जीती है. 1967 में जनसंघ (बीजेपी की पूर्ववर्ती पार्टी) ने पहली बार जगदीश सिंह को उम्मीदवार बनाया था। उन्हें करीब छियालिस हजार मिले थे. उसके बाद बीजेपी ने अगले पांच लोकसभा चुनावों में मैनपुरी से कोई उम्मीदवार नहीं उतारा. 1991 में बीजेपी के राम नरेश अग्निहोत्री चुनाव लड़े और एक लाख चौदह हजार वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे. उसके बाद उपदेश सिंह चौहान ने 1996 में मुलायम सिंह के खिलाफ चुनाव लड़े, उन्हे वोट तो 2.21 लाख जरूर मिले लेकिन इस बार फिर हार मिली.
मुलायम के इस गढ़ में सपा के साथ-साथ उनके परिवार का दबदबा है. दो उपचुनावों सहित पिछले पांच लोक सभा चुनावों में खुद मुलायम उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव और पोते तेज प्रताप सिंह के अलावा कोई चुनाव नहीं जीता है. मुलायम पांचवी बार इस परंपरा को कायम रखने की कोशिश करने जा रहे हैं. मुलायम या सपा की जीत में जातिगत गणित को सबसे बड़ी वजह माना जाता है. करीब तेरह लाख वोटर्स में से 35 फीसदी यादव जाति से हैं जबकि करीब 29 फीसदी वोटर्स राजपूत हैं.
वोटरों का ये गणित बताता है कि मैनपुरी सीट पर यूपी में यादवों के सर्वमान्य नेताओं को हराना लोहे के चने चबाने जैसा होगा.
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