नरेंद्र मोदी की भगवा सुनामी में एक बार फिर विपक्ष तितर-बितर हो गया है. बीजेपी अकेले दम पर 300+ पहुंच गई है तो वहीं एनडीए का आंकड़ा 340 के पार है. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस को एक बार फिर बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस एक बार फिर 50 के आंकड़े में सिमटती हुई दिख रही है. ऐसे में एक बार फिर वही सवाल दोबारा खड़ा हो गया है जो पिछले पांच साल से था. क्या इस बार कांग्रेस को लोकसभा में विपक्षी नेता का तमगा मिलेगा?
पिछली लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे मल्लिकार्जुन खड़गे भी चुनाव हार गए हैं. कर्नाटक की गुलबर्गा सीट से चुनाव लड़ रहे खड़गे को हार का सामना करना पड़ा. जिसके बाद अब सवाल है कि इस बार विपक्ष का नेता कौन बनेगा, क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद ये जिम्मेदारी संभालेंगे.
ये सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि रुझानों में कांग्रेस बमुश्किल 50 के आंकड़े पर पहुंची है. और लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद लेने के लिए 10 फीसदी सीटें चाहिए. यानी 543 लोकसभा सीटों में से कुल 55 सीटें होना जरूरी है, तभी किसी पार्टी को विपक्षी नेता का पद मिलता है.
क्योंकि इस बार के कांग्रेस के जो अधिकतर सांसद जीत के आ रहे हैं, वो केरल और पंजाब से हैं. यानी उनके लिए किसी ऐसे चेहरे को ढूंढना मुश्किल हो सकता है जो हिंदी भाषा बोलने में सक्षम हो और एक बड़े तबके तक अपनी बात रख सके.
2014 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जब कांग्रेस मात्र 44 सीटों पर सिमट गई थी. तब भी कांग्रेस को ये पद नहीं मिला था. लोकसभा में कांग्रेस के नेता बने मल्लिकार्जुन खड़गे इस पद के लिए पूरे पांच साल लड़ते रहे, लेकिन नहीं मिल सका. कई बार उन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से ये पद देने की गुहार भी लगाई थी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
बता दें कि 2014 के बाद 2019 में भी कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी को निशाना बनाया था, लेकिन जनता मोदी के साथ दिखी. आज भी कई राज्य ऐसे हैं जहां पर कांग्रेस पूरी तरह से साफ हो गई है. गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, हिमाचल प्रदेश में तो कांग्रेस 0 पर है, और कई राज्य तो ऐसे भी हैं जहां कांग्रेस दहाई के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई है.