मध्यप्रदेश की सियासत गजब है. भोपाल सीट से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह मैदान में हैं, लेकिन उन्हें बीजेपी से ही नहीं कांग्रेस से भी टक्कर मिल रही है. खबर है कि कांग्रेस के अंदरखाने ही एक धड़ा दिग्विजय सिंह के खिलाफ षड्यंत्र रच रहा है. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चुनाव में कांग्रेसी दिग्विजय की टक्कर कांग्रेस से ही है?
दरअसल, 16 साल बाद कठिन सीट से चुनाव की चुनौती से शुरू हुई तकरार की लकीर, फिर संघ कार्यालय की सुरक्षा बहाली की पैरवी के बाद, अब बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के निर्देश पर निकले एक आदेश से दिग्विजय सिंह को तीसरा बड़ा झटका महज इत्तेफाक नहीं है. 31 मार्च को अपने गृह जिले राजगढ़ में दिग्विजय सिंह ने कहा था कि ये सब जो बैठे हैं ये मेरी ताकत हैं. हैं कि नहीं हैं. अब यहां जितने भी मौजूद हैं. सबसे मेरी प्रार्थना है कि राजगढ़ सीट तो जीतनी ही है, लेकिन भोपाल को भी जीतना है.
भोपाल सीट पर जीत की जिस उम्मीद से दिग्विजय सिंह अपने चुनाव लड़ने का मंशा रखने वाले क्षेत्र राजगढ़ के कार्यकर्ताओं को भोपाल में अपने पक्ष में प्रचार प्रसार का न्योता दे रहे थे, उसके अगले ही दिन यानी 1 अप्रैल को कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. कांग्रेस ने अपने आदेश में साफ-साफ कह दिया पार्टी के पदाधिकारी नेता सिर्फ अपने ही क्षेत्र में प्रचार करेंगे, नहीं तो अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी.
जब कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को कठिन सीट पर चुनाव लडने की चुनौती दी थी, तब दिग्विजय सिंह ने कहा था कि चुनौतियों से लड़ना उनकी फितरत है. अब दिग्विजय सिंह की भोपाल में अग्निपरीक्षा होनी है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मध्यप्रदेश के मौजूदा सियासी समीकरण में सीएम कमलनाथ और कांग्रेस के चाणक्य दिग्गिवजय सिंह के बीच वाकई सब ठीक-ठाक है? क्या भोपाल की जीत-हार दिग्विजय सिंह का आगे का सियासी भविष्य तय करेगी?
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