देश की 17वीं लोकसभा के लिए 542 सदस्य चुने जा चुके हैं. मोदी लहर में कई पार्टियों का सफाया हो गया तो कई दिग्गज नेताओं को भी हार का सामना भी करना पड़ा. यही वजह है कि इस बार के लोकसभा में कई नए चेहरों ने दस्तक दी है, लेकिन भारतीय राजनीति के कुछ बड़े चेहरे नजर नहीं आएंगे. इनमें से कई ऐसे हैं, जिनकी आवाज सदन में पक्ष से लेकर विपक्ष तक लंबे समय से गूंजती रही है. एक तरफ एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन, राम विलास पासवान और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे दिग्गज नेता हैं, तो वहीं...ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुष्मिता देव और डिंपल यादव जैसे युवा नेता हैं, जो इस बार लोकसभा में नजर नहीं आएंगे.
एलके आणवाणी
लालकृष्ण आडवाणी को बीजेपी का भीष्म पितामह कहा जाता है. बीजेपी की नींव रखने से लेकर उसे सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाने में आडवाणी की अहम भूमिका रही है. 1984 में दो सीटों वाली बीजेपी को रसातल से निकाल कर पहले भारतीय राजनीति के केंद्र में पहुंचाया. फिर 1998 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखाया. 1970 में पहली बार राज्यसभा सदस्य चुने गए, लेकिन 1991 में पहली बार लोकसभा चुनाव गांधीनगर सीट से जीत दर्ज की थी. फिर 2014 तक लगातार छह चुनाव जीता.
2019 में बीजेपी 300 से ज्यादा सीटें जीतकर सत्ता में आई है, ऐसे में चार बार राज्यसभा और 6 बार लोकसभा के सदस्य रहे आडवाणी सदन में नजर नहीं आएंगे. बीजेपी ने इस बार के चुनाव में आडवाणी को टिकट नहीं दिया था, जिसके चलते वो चुनावी मैदान में नहीं उतरे. यही वजह है कि लोकसभा के सदन में लोगों की निगाहें आडवाणी को तलाशेंगी.
डॉ. मुरली मनोहर जोशी
बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे डॉ. मुरली मनोहर जोशी इस बार लोकसभा में नजर नहीं आएंगे. यही नहीं उन्होंने दो बार बीजेपी के अध्यक्ष के तौर पर जिम्मेदारी निभाई. उनके अध्यक्ष रहते हुए ही अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया गया. 1996 से लेकर 2014 तक लोकसभा सदस्य रहे. 1996 में 13 दिनों के लिए बनी वाजपेयी सरकार में गृहमंत्री का पदभार संभाला था. 1999 में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री की जिम्मेदारी संभाली. इस बार के चुनाव में बीजेपी ने मुरली मनोहर जोशी को टिकट नहीं दिया था, जिसके चलते चुनाव नहीं लड़े.
सुमित्रा महाजन
इंदौर लोकसभा सीट से लगातार आठ बार की सांसद रही बीजेपी की दिग्गज नेता सुमित्रा महाजन अब सदन में नजर नहीं आएंगी. इस बार पार्टी ने उन्हें 75 वर्ष की उम्र सीमा के चलते टिकट नहीं दिया था, जिसके चलते चुनाव नहीं लड़ सकीं. सुमित्रा महाजन पहली बार 1989 में लोकसभा सदस्य चुनी गई. 2014 तक लगातार संसद पहुंचती रही. 2014 मोदी सरकार बनी तो सुमित्रा महाजन लोकसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली, लेकिन अब निगाहें उन्हें तलाशेंगी.
मल्लिकार्जुन खड़गे
कांग्रेस के दिग्गज नेता मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी राजनीतिक जीवन में कभी चुनाव नहीं हारे थे, लेकिन इस बार नरेंद्र मोदी की सुनामी में उनका तिलिस्म टूट गया है. हालांकि मल्लिकार्जुन खड़गे 2009 में पहली बार लोकसभा सदस्य चुने गए थे और 2014 में दूसरी बार चुनाव जीते तो उन्हें पार्टी ने कांग्रेस के संसदीय दल के नेता चुने गए. लोकसभा सदन में पांच साल तक मोदी सरकार को घेरने का काम करते रहे. कांग्रेस के पक्ष में मुद्दों को दमदार तरीके से उठाने का काम किया था, लेकिन चुनाव हार जाने के बाद इस बार लोकसभा में नहीं दिखेंगे.
हुकुमदेव नारायण
बीजेपी के दिग्गज नेता हुकुमदेव नारायण यादव भी इस बार चुनाव नहीं लड़े. 60 के दशक में हुकुमदेव ने राजनीतिक पारी का आगाज किया था. 1950 में हुकुमदेव नारायण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए. 10 साल तक सक्रिय भूमिका निभाई. वह ग्राम पंचायत से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा तक का सफर तय किया. 1977 में पहली बार सांसद बने इसके बाद से लगातार लोकसभा पहुंचते रहे हैं. हुकुमदेव लोकसभा में जबरदस्त भाषण देते रहे हैं, उनके स्पीच के वीडियो यूट्यूब पर काफी वायरल भी हुए हैं. उनके विरोधी भी उनके व्यवहार और भाषण के कायल हैं, लेकिन अब वो सदन में नहीं दिखेंगे.
सुषमा स्वराज
हरियाणा में जन्मी सुषमा स्वराज बीजेपी के शीर्ष नेताओं में शुमार की जाती हैं. छात्र संगठन एबीवीपी से अपनी राजनीतिक सफर शुरू करने वाली वाली सुषमा स्वराज 1990 में पहली बार सांसद बनीं. इसके बाद से राष्ट्रीय राजनीतिक में तेजी से अपनी पकड़ बनाई और अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर एलके आडवाणी के करीबी नेताओं में गिनी जाने लगी. लोकसभा में विपक्ष में रहते हुए सुषमा स्वराज ने कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए सरकार के सदन से लेकर सड़क तक घेरने का काम किया. जबकि सरकार में रहते हुए विपक्ष के सवालों पर दमदार और तार्किक जवाब देती रही हैं. इस बार उन्होंने खुद चुनाव लड़ने से मना कर दिया था.
रामविलास पासवान
बिहार के दलित परिवार में जन्मे रामविलास पासवान ने राजनीतिक सफर सोशलिस्ट पार्टी से शुरू किया. 1977 में जनता पार्टी से सांसद चुने गए. फिर 2000 में पासवान ने जदयू से अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी बनाई. रेलमंत्री से लेकर कई अहम जिम्मेदारी संभाली. लोकसभा में हर मुद्दे पर अपनी बात रखते रहे हैं, लेकिन इस बार वो चुनावी मैदान में नहीं उतरे हैं.
उमा भारती
राम मंदिर आंदोलन से भारतीय राजनीति में पहचान बनाने वाली उमा भारती ने इस बार चुनाव मैदान में उतरने से मना कर दिया था. 1984 में पहली बार सांसद बनी थीं. इसके बाद लगातार राजनीति बुलंदियों पर चढ़ती गई. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बनी थी, लेकिन एक साल के अंदर उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी. इसके बाद उन्होंने बीजेपी से बगावत कर अलग पार्टी बनाई, लेकिन सफल नहीं हो सकी. इसके बाद बीजेपी में वापसी हुई. मोदी सरकार में मंत्री बनी.
मनोज सिन्हा
एबीवीपी से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत करने वाले मनोज सिन्हा इस बार गाजीपुर लोकसभा सीट पर बसपा उम्मीदवार अफजाल अंसारी से हार गए. जबकि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चहेते मंत्रियों में से एक थे. यही वजह है कि 2017 में उनका नाम उत्तर प्रदेश के सीएम की रेस में था, लेकिन सत्ता की कमान योगी आदित्यनाथ को मिली.
एचडी देवगौड़ा
पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के संस्थापक एचडी देवगौड़ा भी इस बार लोकसभा में नजर नहीं आएंगे. इस बार के चुनाव में वह कर्नाटक की हासल सीट के बजाय तुमकुर क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन बीजेपी के वासवराज के हाथों 13 हजार मतों से हार गए हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया
लोकसभा के सदन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ परछाईं की तरह नजर आने वाले पार्टी के दिग्गज और युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी लहर में चुनाव हार गए हैं. सदन में सिंधिया पांच साल तक मोदी सरकार के खिलाफ जमकर आवाज उठाते रहे. हालांकि अब सिंधिया लोकसभा के इस सत्र में सदन में नजर नहीं आएंगे.
सुष्मिता देव
मोदी सरकार के खिलाफ पांच साल तक लोकसभा में सबसे ज्यादा मुखर रहने वाली कांग्रेस की महिला नेता सुष्मिता देव इस बार चुनाव में हार गई हैं. ऐसे में लोकसभा में उनकी आवाज आने वाले पांच साल तक सुनाई नहीं देगी. जबकि सांसद रहते हुए तीन तलाक से लेकर महिलाओं के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरती रही हैं. सुष्मिता देव राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष हैं. गांधी परिवार की करीबी मानी जाती हैं.
रंजीता रंजन
मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस की रंजीता रंजन संसद से लेकर सड़क तक संघर्ष करती नजर आई थीं. इस बार लोकसभा चुनाव में बिहार की सुपौल सीट से चुनाव हार गई. इसके चलते अब पांच साल तक सदन में उनकी आवाज सुनाई पड़ेगी. जबकि लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ हर मुद्दे वह मुखर रही हैं. रंजीता की तरह उनके पति राजीव रंजन यादव (पप्पू यादव) भी इस बार मधेपुरा सीट से चुनाव हार गए हैं. पप्पू यादव भी हर मुद्दे पर सदन में मुखर रहे हैं.
धर्मेंद्र यादव
धर्मेंद्र यादव को राजनीति विरासत में मिली है, लेकिन इस बार मोदी लहर में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है. मुलायम सिंह यादव के भतीजे के नाते पहली बार मैनपुरी से सांसद चुने गए. इसके बाद 2009 और 2014 में बदायूं सीट से सांसद चुने गए. लोकसभा सदस्य के तौर पर धर्मेंद्र यादव हर मुद्दे को सदन में उठाते रहे हैं, खासकर ओबीसी के मुद्दे पर ज्यादा मुखर रहते.
डिंपल यादव
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव अपनी परंपरागत सीट कन्नौज से चुनाव हार गईं. इसके चलते वह सदन में अब नहीं दिखेंगी. जबकि महिलाओं के मुद्दे पर डिंपल यादव कई बार सदन में आवाज उठाने का काम किया है. हालांकि उनके पति अखिलेश यादव और ससुर मुलायम सिंह यादव जरूर लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे हैं.
शत्रुघ्न सिन्हा
शत्रुघ्न सिन्हा को बीजेपी से बगावत कर कांग्रेस से चुनाव लड़ना महंगा पड़ा. उन्हें बीजेपी ने पटना साहिब सीट से शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ रविशंकर प्रसाद को टिकट देकर चुनावी मात दी. हालांकि शत्रु लंबे समय से बीजेपी के साथ जुड़कर संसद पहुंचते रहे हैं. इस तरह से अब वो सदन में नजर नहीं आएंगे.