17वें लोकसभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है. 1989 से हिमाचल प्रदेश में अपनी पकड़ बनाए हुए बीजेपी इस बार भी मुस्तैद है. इसलिए तो पार्टी ने यहां अपने भरोसेमंद नेता प्रेम कुमार धूमल को चुनाव रणनीति की कमान सौंपी है. धूमल 10 अप्रैल को 75 साल के हो रहे हैं, उन्हें 4 दशक से ज्यादा का राजनीति का अनुभव है. इस दौरान वो 2 बार सीएम, 4 बार विधायक और 3 बार सांसद रहे. ऐसे में उनके हिमाचल संसदीय चुनाव में बीजेपी के लिए चुनाव दांव-पेच सेट करने से निश्चित ही विरोधी सोच में होंगे.
प्रेम कुमार धूमल का जन्म 10 अप्रैल 1944 को हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के समीरपुर गांव में कैप्टन महंत राम के घर हुआ. इन्होंने डीएवी हाईस्कूल हमीरपुर से मैट्रिक, डीएवी कॉलेज जालंधर से ग्रेजुएशन और दोआबा कॉलेज जालंधर से 1970 में एमए (इंग्लिश) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. छात्र जीवन में उनकी खासी रूचि खेलों और राजनीति में रही. वो कॉलेज वॉलीबॉल टीम के कप्तान भी रहे.
पढ़ाई पूरी करने बाद प्रेम कुमार धूमल पंजाब यूनिवर्सिटी (जालंधर) में प्रवक्ता पद पर नियुक्त हुए. फिर दोआबा कॉलेज जालंधर चले गए. यहां नौकरी करते हुए धूमल ने गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी पंजाब से वकालत की पढ़ाई की. धूमल की शादी शीला से हुई, उनके दो बेटे अनुराग ठाकुर और अरुण ठाकुर हैं. फिलहाल अनुराग राजनीति का बड़ा चेहरा हैं, वो हमीरपुर संसदीय सीट से लगातार तीन बार सांसद हैं जबकि अरुण राजनीति से दूर हैं.
करीब 80 के दशक से राजनीति से जुड़े प्रेम कुमार धूमल को पहली बार 1980 में बीजेपी संगठन में अहम जिम्मेदारी मिली. उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) का सचिव बनाया गया और फिर 1982-1985 तक वो इसके उपाध्यक्ष भी रहे. इस दौरान ने उन्होंने बीजेपी संगठन को मजबूत बनाने के लिए जी तोड़ मेहनत की. भले ही धूमल को आरएसएस की नर्सरी में राजनीति का ककहरा सीखने को नहीं मिला, लेकिन आज संघ के कई नेताओं से उनके गहरे ताल्लुक हैं.
आज ‘मैं भी चौकीदार’ मुहिम से जुड़ते हुए ट्विटर पर अपने नाम के आगे ‘चौकीदार’ लिख चुके प्रेम कुमार धूमल की गिनती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबियों में होती है. इस बात का गवाह साल 1984 का वो दौर है, जब बीजेपी के दिग्गज नेता जगदेव चंद्र ने हमीरपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया तो उस वक्त नरेंद्र मोदी (तत्कालीन- हिमाचल के बीजेपी प्रभारी) ने ही धूमल के नाम को आगे बढ़ाया. यह उनके चुनावी राजनीति में प्रवेश का एक दुर्लभ संयोग था. हालांकि, धूमल यह चुनाव कांग्रेस नेता नारायण चंद प्रसार से हार गए. लेकिन उन्होंने साल 1989 में अपनी हार का बदला लिया और 1991 में सीट बरकरार रखी.
साल 1985-93 तक धूमल बीजेपी जनरल सेक्रेटरी पद पर रहे. 1993 में जगदेव चंद्र का निधन हुआ. इस वक्त तक प्रेम कुमार धूमल की गिनती प्रदेश के बड़े नेताओं में होने लगी थी, और 1993 वो हिमाचल प्रदेश की बीजेपी इकाई के अध्यक्ष बने. वो इस पद पर 1996 तक रहे. इस दौर में वो एक बार फिर बीजेपी के प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव-1996 के रण में थे, लेकिन इस बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.
प्रेम कुमार धूमल के लिए साल 1998 ऐतिहासिक पल लेकर आई, क्योंकि इसी साल वो पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने पूरे पांच साल बीजेपी-हिमाचल विकास कांग्रेस (HVC) गठबंधन की सरकार (मार्च, 1998 से मार्च, 2003 तक) का नेतृत्व किया. प्रेम कुमार धूमल को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र बीजेपी नेता होने का गौरव प्राप्त है.
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