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शिमला सीट: कांग्रेस का गढ़ थी पहाड़ों की रानी, दो बार से जीत रही है बीजेपी

Shimla Loksabha Seat पहाड़ों की रानी के नाम से मशहूर शिमला लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. 2009 में पहली बार इस सीट पर बीजेपी का खाता खुला था और वीरेंद्र कश्यप जीते थे. 2014 में भी वीरेंद्र कश्यप ने जीत दर्ज की.

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पहाड़ों की रानी शिमला
पहाड़ों की रानी शिमला

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पहाड़ों की रानी के नाम से मशहूर शिमला लोकसभा सीट, हिमाचल प्रदेश की चार अहम सीटों में से एक है. साल 1967 से ही यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है और इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. अब तक हुए 12 आम चुनावों में से 8 बार कांग्रेस के प्रत्याशियों ने इस सीट पर जीत दर्ज की है. 2009 में पहली बार इस सीट पर बीजेपी का खाता खुला था और वीरेंद्र कश्यप जीते थे. 2014 में भी वीरेंद्र कश्यप ने जीत दर्ज की.

शिमला की खोज अंग्रेजों ने साल 1819 में की थी. साल 1864 में शिमला को भारत में ब्रिटिश राज की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया था. फिलहाल शिमला, हिमाचल प्रदेश की राजधानी है और यहां की अर्थव्यस्था मुख्य तौर पर पर्यटन पर निर्भर है. यहां देश-विदेश से सैलानी घूमने आते हैं. यह लोकसभा सीट, सूबे के तीन जिलों (शिमला, सिरमौर और सोलन) में फैला है और इसके अन्तर्गत 17 विधानसभा सीटें आती है. इनमें से एक अर्की विधानसभा सीट से खुद पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह विधायक हैं.

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राजनीतिक पृष्ठभूमि

शिमला लोकसभा सीट शुरुआत यानि 1967 से अनुसूचित जाति के सुरक्षित है. 1967 और 1971 में इस सीट से कांग्रेस के प्रताप सिंह जीते. 1977 में यह सीट भारतीय लोकदल के खाते में चली गई और उसके टिकट पर बालक राम जीते. 1980 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और उसके टिकट पर 1980, 1984, 1989, 1991, 1996 और 1998 का चुनाव लगातार छह बार कृष्ण दत्त सुल्तानपुरी जीते.

1999 का चुनाव धनी राम शांडिल, हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट पर जीतने कामयाब हुए. 2004 का चुनाव धनी राम शांडिल ने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीते. 2009 का चुनाव धनी राम शांडिल हार गए और इस सीट पर पहली बार कमल खिला. बीजेपी के टिकट पर वीरेंद्र कश्यप जीतने में कामयाब हुए. 2014 का भी चुनाव वीरेंद्र कश्यप जीते और वर्तमान में वह संसद में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

सामाजिक तानाबाना

शिमला लोकसभा सीट के अन्तर्गत तीन जिलों (शिमला, सिरमौर और सोलन) की 17 विधानसभा सीटें (अर्की, नालागढ़, दून, सोलन, कसौली, पच्‍छाद, नाहन, श्री रेणुकाजी, पांवटा साहिब, शिलाई, चौपाल, ठियोग, कासुम्प्टी, शिमला, शिमला ग्रामीण, जुब्बल-कोटखाई और रोहड़ू) आते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 8 सीटों (दून, कसौली, पच्‍छाद, नाहन, पांवटा साहिब, चौपाल, शिमला, जुब्बल-कोटखाई), कांग्रेस ने 8 सीटों (अर्की, नालागढ़, सोलन, श्री रेणुकाजी, शिलाई, कासुम्प्टी, शिमला ग्रामीण, रोहड़ू) और माकपा ने एक सीट (ठियोग) पर जीत दर्ज की. इस सीट पर वोटरों की संख्या 11.53 लाख है. इनमें 6.07 लाख पुरुष वोटर और 5.46 महिला वोटर है. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां करीब 63 फीसदी मतदान हुआ था.

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2014 का जनादेश

लोकसभा चुनाव 2014 में इस सीट से बीजेपी के वीरेंद्र कश्यप दूसरी बार सांसद बने थे. उन्होंने कांग्रेस के मोहन लाल को 84 हजार वोटों से हराया था. वीरेंद्र कश्यप को 3.85 लाख और मोहन लाल को 3.01 लाख वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के सुभाष चंद्र (14 हजार वोट) और चौथे नंबर पर सीपीआई एम के जगत राम (11 हजार वोट) रहे. पांचवें नंबर बीजेपी प्रत्याशी वीरेंद्र कश्यप के ही हमनाम निर्दलीय प्रत्याशी वीरेंद्र कुमार कश्यप 6173 वोट पाकर रहे.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले वीरेंद्र कश्यप की गिनती बीजेपी के तेज तर्रार नेताओं में होती है. वह 1998 से 2003 तक  हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड के सभापति थे. सोलन के रहने वाले वीरेंद्र कश्यप के चार बच्चे हैं. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, कश्यप के पास 52 लाख की संपत्ति है. इसमें 25.88 लाख चल संपत्ति और 26.39 लाख की अचल संपत्ति है. उनके ऊपर कोई देनदारी नहीं है.

जनवरी, 2019 तक mplads.gov.in पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार, बीजेपी सांसद वीरेंद्र कश्यप ने अभी तक अपने सांसद निधि से क्षेत्र के विकास के लिए 20.53 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. उन्हें सांसद निधि से अभी तक 25.50 करोड़ मिले हैं. इनमें से 4.98 करोड़ रुपए अभी खर्च नहीं किए गए हैं. उन्होंने 82 फीसदी अपने निधि को खर्च किया है.

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वीरेंद्र कश्यप का फेसबुक पेज  और ट्विटर हैंडल यह है.

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