लोकसभा चुनाव 2019 के तीन चरणों के मतदान हो चुके है. चौथे चरण की वोटिंग 29 अप्रैल को होगी. चारों चरणों में कुल 5478 उम्मीदवार हैं. इनमें सिर्फ 8 प्रतिशत महिला प्रत्याशी हैं. पहले चरण के 1279 उम्मीदवारों में से 89 (7%), दूसरे चरण के 1644 उम्मीदवारों में से 120 (8%), तीसरे चरण के 1612 उम्मीदवारों में से 143 (9%) और चौथे चरण के 943 उम्मीदवारों में से 96 (10%) ही महिला उम्मीदवार हैं. हर चरण में इनकी संख्या 1% बढ़ रही है. महिलाओं के लोकसभा में प्रतिनिधित्व को लेकर बहस भी हो रही है. 1966 से संसद के निचले सदन में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने वाला बिल अटका हुआ है. जबकि अधिकतर राज्यों की पंचायतों में उन्हें 33% आरक्षण प्राप्त है.
इस लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आम चुनावों में 41% फीसदी महिलाओं को टिकट देकर उनसे आगे निकल गई हैं. बाकी सभी दल इससे काफी पीछे हैं. एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 1996 से 2014 तक हुए लोकसभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल ने महिलाओं को कुल मिलाकर 10% से ज्यादा टिकट नहीं दिया है.
जबकि कुछ दलों ने किसी एक चुनाव में यह आंकड़ा पार किया है. पांच राष्ट्रीय दलों द्वारा 1996-2014 तक हुए 6 लोकसभा चुनाव में दिए गए कुल 9174 लोकसभा टिकट में से महिलाओं को कुल 726 टिकट मिले जो कि 8 फीसदी के बराबर है. जबकि क्षेत्रीय दलों की बात करें तो पिछले 6 लोकसभा चुनाव में कुल 252 महिलाओं को ही टिकट मिल पाया.
जानिए... 1996 से 2014 तक किस दल ने कितनी महिला उम्मीदवारों को दिए टिकट
कांग्रेसः 9.3% से लेकर 12.9%
भाजपाः 5.7% से लेकर 8.9%
बसपाः 3.9% से लेकर 5.4%
महिलाओं को वोट देने का अधिकार संविधान से ही लागू
भारत में महिलाओं को वोट देने का अधिकार संविधान लागू होने के साथ ही दे दिया गया था, जबकि अमेरिका में उन्हें यह अधिकार लंबे संघर्ष के बाद मिला. देश के नीति निर्माताओं ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार तो दे दिए, लेकिन हमारे पितृसत्तात्मक समाज में लोकसभा में उनकी भागीदारी अपेक्षाकृत कम ही रही. 1966 से संसद के निचले सदन में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने वाला बिल अटका हुआ है. जबकि अधिकतर राज्यों की पंचायतों में उन्हें 33% आरक्षण प्राप्त है.
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की महिलाओं के प्रति उदासीनता
पिछले लोकसभा चुनावों के आंकड़े तमाम राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की महिलाओं के प्रति उदासीनता ही दिखाते हैं. जहां 16वीं लोकसभा में आजादी के बाद सबसे ज्यादा महिला सदस्य चुनकर आईं, फिर भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम रहा. लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में भी उम्मीद थी कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, लेकिन हालात अब भी वैसे ही हैं.
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