बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. केंद्र में किसकी सरकार बनेगी इसमें बिहार की सियासी जीत-हार का महत्व हमेशा रहता है. इतिहास गवाह है कि यूपी के साथ-साथ जिस दल या गठबंधन ने बिहार की सियासत को जब भी साध लिया केंद्र की सत्ता उसके करीब आई. 2019 के चुनाव में बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर एनडीए और महागठबंधन में सीधा मुकाबला होता दिख रहा है. तमाम छोटे-बड़े दल अलग-अलग खेमों में शामिल हैं. इक्का दुक्का दल ही अलग से चुनावी मैदान में उतरे हैं.
बिहार में इस बार एक तरफ जहां बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी एनडीए के खेमे में हैं तो वहीं महागठबंधन में आरजेडी-कांग्रेस के अलावा कई छोटे दल भी शामिल हैं. इस बार बिहार की सियासत में कई छोटे दल एक्टिव हैं जिनके पास अपना खुद का जातीय गणित है या जो किसी खास इलाके में प्रभाव रखते हैं. यही छोटे-छोटे दल बड़े दलों के लिए सहारा साबित हो सकते हैं. खासकर इस बार के सियासी अखाड़े में गेमचेंजर का रुतबा रखने वाली इन 5 दलों या नेताओं का जिक्र जरूरी हो जाता है.
1. मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी
बिहार में इस बार के चुनावी सीजन में सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है 'सन ऑफ मल्लाह' के नाम से मशहूर मुकेश सहनी की. बॉलिवुड के मशहूर सेट डिजाइनर रह चुके मुकेश सहनी 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए के स्टार प्रचारक थे और मल्लाह वोटों पर दावा जताते हुए बाद में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) बनाई.
महागठबंधन से बात बनी और तीन सीटें हासिल की. 'माछ पर चर्चा' कर मुकेश सहनी मछुआरा या मल्लाह समुदाय की सियासत करने उतरे हैं. मल्लाह समुदाय को सियासी अधिकार दिलाने के नारे के साथ वीआईपी पार्टी मधुबनी, मुजफ्फरपुर और खगड़िया सीट पर चुनाव लड़ने जा रही है.
क्या है ताकत
मुकेश सहनी बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से आते हैं. वे बॉलिवुड फिल्मों के मशहूर सेट डिजाइनर रहे हैं, वे एक सफल इवेंट मैनेजमेंट कंपनी भी चला चुके हैं. 'देवदास' और 'बजरंगी भाईजान' जैसी सुपरहिट फिल्मों का सेट बनाकर वह सुर्खियों में आए थे. बाद में वे राजनीति में आ गए और जातीय राजनीति से अपनी पैठ बनाई. बिहार में निषादों की आबादी लगभग 10 प्रतिशत है और वे कम से कम एक दर्जन लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. इस समुदाय से कैप्टन जयनारायण निषाद प्रमुख नेता थे लेकिन उनके निधन के बाद उनके बेटे अजय निषाद मुजफ्फरपुर से सांसद बने.
मुकेश सहनी मधुबनी, मुजफ्फरपुर और खगड़िया के बेल्ट में मल्लाह वोटों को साधने के लिए उतर रहे हैं. आरजेडी भी मुकेश सहनी के सहारे कई सीटों को साधने की उम्मीद लगाए हुए है. अगर सन ऑफ मल्लाह का जादू चलता है तो करीब एक दर्जन सीटों पर गेम चेंज हो सकता है और उसका फायदा महागठबंधन को और नुकसान एनडीए को उठाना पड़ सकता है.
2. उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा
उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा 2014 के चुनाव में एनडीए का हिस्सा थी लेकिन इस बार महागठबंधन के खेमे में है. पिछली बार रालोसपा 3 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और तीनों पर जीत हासिल हुई थी. उसे 3 फीसदी वोट मिले थे. उपेंद्र कुशवाहा मोदी कैबिनेट का हिस्सा बने थे लेकिन इस बार वह महागठबंधन में आ चुके हैं. नीतीश के कुर्मी वोटों के जवाब में कुशवाहा समुदाय के वोटों पर उपेंद्र कुशवाहा दावा जता रहे हैं.
महागठबंधन में रालोसपा को 5 सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिली हैं- पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, उजियारपुर, काराकाट और जमुई. महागठबंधन को उम्मीद है कि रालोसपा का वोट बैंक कई सीटों पर उसे सहारा दे सकता है और उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार की काट साबित हो सकते हैं.
क्या है ताकत
उपेंद्र कुशवाहा का जन्म वैशाली में हुआ था. नीतीश कुमार के साथ समता पार्टी से सियासी करियर शुरू करने वाले उपेंद्र कुशवाहा अब उन्हीं के वोट बैंक में महागठबंधन के हथियार हैं. मार्च 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) की स्थापना की थी. 2014 में काराकाट से उपेंद्र कुशवाहा, सीतामढ़ी से राम कुमार शर्मा और जहानाबाद से प्रो. अरुण कुमार चुनाव जीते थे. इस बार रालोसपा 5 सीटों पर चुनाव लड़ रही है- पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, उजियारपुर, काराकाट और जमुई.
महागठबंधन की निगाहें उनके वोट बैंक पर है. उपेंद्र कुशवाहा जिस कुशवाहा समाज से आते हैं उसकी आबादी बिहार में 6-7 प्रतिशत तक है और ये नीतीश कुमार के कुर्मी वोट बैंक से लगभग दोगुनी ताकत है. 63 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर कुशवाहा समुदाय के वोटों की संख्या 30 हजार से अधिक है. इस बार के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के उम्मीदवारों के लिए ये वोट बैंक गेमचेंजर साबित हो सकता है.
3. सीपीआई के कन्हैया कुमार
बिहार की बेगूसराय सीट को सियासी भाषा में लेनिनग्राद कहा जाता है. यानी जहां लेफ्ट की अच्छी खासी ताकत है. इस बार बेगूसराय सीट की चर्चा खास तौर से हो रही है. जेएनयू की स्टूडेंट पॉलिटिक्स से चर्चा में आए कन्हैया कुमार बेगूसराय से चुनावी मैदान में हैं.
महागठबंधन से बात बनी नहीं इसलिए कन्हैया सीपीआई के टिकट पर उतरे हैं. उनके सामने हैं बीजेपी के फायरब्रांड नेता और नवादा से वर्तमान सांसद गिरिराज सिंह. ये दोनों नेता भूमिहार जाति से आते हैं. इस सीट पर भूमिहार जाति का वोट निर्णायक माना जाता है. आरजेडी ने यहां से तनवीर हसन को उतारा है. सीपीआई की बिहार में कोई खास उपस्थिति तो नहीं है लेकिन कन्हैया के मैदान में आने से चर्चा में जरूर ये पार्टी आ गई है.
कन्हैया की क्या है ताकत
32 साल के युवा नेता कन्हैया कुमार का ये पहला चुनाव है. कन्हैया जेएनयू में छात्र संघ के नेता थे और देशद्रोही नारेबाजी के केस से चर्चित हुए थे. इस मामले के बाद बीजेपी और दक्षिणपंथी समूहों के निशाने पर आए कन्हैया ने विपक्षी दलों का समर्थन हासिल किया. देश में मोदी विरोधी कार्यकर्ता के तौर पर लगातार बयानबाजी कर चर्चा में रहे और अब बीजेपी के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं.
कन्हैया ने अपने गृह जिले बेगूसराय को सियासी लॉन्चिंग के लिए चुना. माना जा रहा था कि कन्हैया महागठबंधन के साझा उम्मीदवार के रूप में मैदान में होंगे लेकिन बात बनी नहीं और सीपीआई और वामदलों के समर्थन के बूते बेगूसराय से गिरिराज के खिलाफ कन्हैया ताल ठोक रहे हैं. गिरिराज सिंह नवादा से सांसद हैं तो बाहरी उम्मीदवार का ठप्पा उनपर है.
बेगूसराय से सीपीआई दो बार लोकसभा का चुनाव जीत चुकी है. जबकि 1999, 2004 और 2009 के चुनाव में दूसरे तथा 2014 के चुनाव में तीसरे स्थान पर रही. कन्हैया अलग दमखम से चुनाव मैदान में हैं. मोदी विरोध का नारा लगाकर वो वोटों को एकजुट करने में लगे हैं. गुजरात के युवा विधायक और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी बेगूसराय में कन्हैया के समर्थन में गांव-गांव कैंपेन कर रहे हैं.
4. जीतनराम मांझी की हम
कभी नीतीश कुमार के विश्वासपात्र बन बिहार के सीएम की कुर्सी तक पहुंचने वाले जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) अब महागठबंधन का हिस्सा है. हम नालंदा, औरंगाबाद और गया तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. जीतन राम मांझी खुद गया से मैदान में हैं. महागठबंधन को उम्मीद है कि हम के जरिए दलित वोटों को साधा जा सकता है.
क्या है ताकत
जीतन राम मांझी बिहार में दलित समुदाय के पहले मुख्यमंत्री बने. जीतनराम मांझी नीतीश कुमार के शराबबंदी और ताड़ी पर बैन के फैसले को दलित विरोध फैसला बताते हैं और दलितों के हितों की अवहेलना के आरोप लगाते हैं. बिहार में दलित वोट करीब 18 फीसदी है. जिसपर लंबे समय से राम विलास पासवान सियासी दावा जताते रहे हैं.
महागठबंधन जीतनराम मांझी को रामविलास पासवान की काट के रूप में देख रहा है. जीतनराम मांझी महादलित मुसहर जाति से आते हैं. जिसकी हिस्सेदारी कुल आबादी में 2.5 से 3 प्रतिशत है. जीतनराम मांझी इसी वोट बैंक के सहारे एनडीए को टक्कर देने के लिए महागठबंधन के खेमे में आए हैं.
5. पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक)
कभी बाहुबली के रूप में पूरे बिहार में जाने जाने वाले पप्पू यादव उर्फ राजेश रंजन मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं. पिछली बार पप्पू यादव आरजेडी के टिकट पर चुनाव जीते थे लेकिन अब अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में हैं. पिछले कई सालों से पप्पू यादव बाहुबली की अपनी छवि बदलने के लिए एक्टिविस्ट मोड में जमीन पर काम कर रहे हैं. उनकी पत्नी रंजीत रंजन सुपौल से कांग्रेस की सांसद हैं और इस बार फिर कांग्रेस के टिकट पर लड़ रही हैं. लेकिन कांग्रेस में पप्पू यादव की बात बनी नहीं इसलिए वे अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के टिकट पर मधेपुरा से आरजेडी उम्मीदवार शरद यादव के खिलाफ मैदान में हैं.
कोसी क्षेत्र में है ताकत
कभी लालू यादव के खासमखास रहे पप्पू यादव कोसी क्षेत्र में अच्छी ताकत रखते हैं. वे 1991 के चुनाव में पूर्णिया से पहली बार सांसद बने थे. फिर 1996 और 1999 में पप्पू यादव फिर जीतकर संसद पहुंचे. 2004 में लालू प्रसाद यादव मधेपुरा और छपरा से चुनाव जीते. लालू ने मधेपुरा सीट छोड़ दी और उपचुनाव जीतकर पप्पू यादव संसद पहुंचे.
2014 में मधेपुरा से आरजेडी के टिकट पर पप्पू यादव फिर जीते लेकिन लालू से बात बिगड़ गई और पप्पू यादव ने अपनी अलग पार्टी बना ली. इस बार आरजेडी के टिकट पर शरद यादव पप्पू यादव के खिलाफ मैदान में हैं. 2014 के चुनाव में आरजेडी के टिकट पर पप्पू यादव को 368937 वोट मिले. तब जेडीयू के टिकट पर शरद यादव उनके सामने थे. शरद यादव को 312728 वोट मिले. बीजेपी के विजय कुमार सिंह 2,52,534 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे.
जानें, बिहार की 40 लोकसभा सीटों में कब कहां है चुनाव-
पहला चरण- 11 अप्रैल- औरंगाबाद, गया, नवादा और जमुई.
दूसरा चरण- 18 अप्रैल- किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका.
तीसरा चरण- 23 अप्रैल- झंझारपुर, सुपौल, अररिया, मधेपुरा और खगड़िया.
चौथा चरण- 29 अप्रैल- दरभंगा, उजियारपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय और मुंगेर.
पांचवां चरण- 6 मई- सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सारण और हाजीपुर.
छठा चरण- 12 मई- वाल्मीकिनगर, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, वैशाली, गोपालगंज, सीवान और महाराजगंज.
सातवां चरण- 19 मई- पटना साहिब ,नालंदा, पाटलिपुत्र, आरा, बक्सर, सासाराम, जहानाबाद, काराकाट.
मतगणना- 23 मई 2019.