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अशोक गहलोत का गढ़ रहे जोधपुर में वापसी करेगी कांग्रेस?

हाल में हुए विधानसभा चुनाव में जोधपुर संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली 8 सीटों में से 6 सीट पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया है, जबकि बीजेपी को 2 सीट से समझौता करना पड़ा. इस लिहाज से इस सीट पर इस बार कांग्रेस का पलड़ा भारी है.

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जोधपुर शहर (फाइल फोटो)
जोधपुर शहर (फाइल फोटो)

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देश में आगामी लोकसभा चुनावों के लिए चंद महीने ही बचे हैं. राजनीतिक दलों अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए सियासी समीकरण बैठाना शुरू कर दिया है. राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव के बाद दोनों बड़े दल कांग्रेस और बीजेपी मिशन 2019 की तैयारियों में जुट गए हैं. वैसे तो यहां की सभी सीटों का महत्व है लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह जिला जोधपुर खास मायने रखता है.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

विधानसभा चुनाव में जीत से उत्साहित कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं, वहीं बीजेपी भी इस हार की भरपाई लोकसभा चुनाव से करना चाहेगी. वैसे तो राजस्थान में दोनों बड़े सियासी दल टारगेट-25 के मिशन पर काम कर रहे हैं, राजस्थान की हॉट सीट कही जाने वाली जोधपुर कई दशकों से राज्य की सियासत का केंद्र बना हुआ है. ऐसा इसलिए नहीं कि यहां से केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत सांसद है, बल्कि इसलिए है क्योंकि कभी इस सीट से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जीता करते थें. गहलोत का विधानसभा क्षेत्र सरदारपुरा भी जोधपुर में ही आता है.

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जोधपुर संसदीय सीट पर आजादी के बाद हुए 16 आम चुनावों और 1 उपचुनाव में 8 बार कांग्रेस का कब्जा रहा, जबकि 4 बार बीजेपी ने जीत दर्ज की. वहीं 4 बार निर्दलीय उम्मीदवार, 1 बार भारतीय लोकदल ने जीत का परचम लहराया. इस सीट पर सबसे ज्यादा 8 बार जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस 1957, 1967, 1980, 1984, 1991, 1996, 1998, 2009 में जीती. जबकि 1989, 1999, 2004 और 2014 में यह सीट बीजेपी के खाते में गई. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस सीट का पांच बार प्रतिनिधित्व किया. माली समुदाय से आने वाले गहलोत ने राजपूतों के वर्चस्व वाली सीट पर सभी सियासी समीकरणों को धाराशाई कर दिया.

सामाजिक ताना-बाना

जोधपुर लोकसभा क्षेत्र जोधपुर और जैसलमेर के कुछ हिस्सों को मिलाकर बनाया गया है. साल 2008 के परिसीमन के बाद यहां का जाट बहुल क्षेत्र पाली में चले जाने से यह सीट राजपूत बहुल हो गई है. इसके अलावा इस सीट पर विश्नोई समाज का भी खासा प्रभाव है. जबकि कुछ इलाकों में मुस्लिम वोट निर्णायक है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की जनसंख्या 29,60,625 है, जिसका 54.46 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण और 42.54 प्रतिशत हिस्सा शहरी है. वहीं कुल आबादी का 14.91 फीसदी अनुसूचित जाति और 3.46 फीसदी अनुसूचित जनजाति हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 17,27,363 है, जिसमें 9,10,466 पुरुष और 8,16,897 महिला मतदाता हैं.

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साल 2013 के विधानसभा चुनाव और गत लोकसभा चुनाव में अपना यह गढ़ बीजेपी के हाथों गंवा बैठी कांग्रेस ने दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की है. पहले जोधपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 10 सीटें आती थीं. लेकिन 2008 के परिसीमन में यहां की 2 जाट बहुल सीटों को पाली में शामिल कर दिया गया. हाल में हुए विधानसभा चुनाव में जोधपुर लोकसभा क्षेत्र की 8 सीटें-पोकरण, फलोदी, लोहावट, शेरगढ़, सरदारपुरा, जोधपुर शहर और सूरसागर विधानसभा में 6 सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. जबकि बीजेपी को महज 2 सीट फलोदी और सूरसागर से संतोष करना पड़ा.

2014 का जनादेश

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जोधपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी का पलड़ा भारी था. विधानसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित जीत को दोहराते हुए बीजेपी कांग्रेस का गढ़ रहे इस सीट पर जीत का परचम लहराया. इस चुनाव में 62.4 फीसदी मतदान हुए थे, जिसमें बीजेपी को 66.2 फीसदी और कांग्रेस को 28.1 फीसदी वोट मिले थें.

बीजेपी से गजेंद्र सिंह शेखावत ने कांग्रेस से राजघराने की चंद्रेश कुमारी कटोच को 4,10,051 मतों के भारी अंतर से पराजित किया. जहां शेखावत को 7,13,515 वोट मिले तो वहीं चंद्रेश कुमारी कटोच को 3,03,464 वोट मिले.

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सांसद की रिपोर्ट कार्ड

जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत का जन्म 3 अक्टूबर 1967 में हुआ था. शेखावत ने जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी से एमए और एमफिल की डिग्री हासिल की और 1992 में छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए. शेखावत फिलहाल केंद्र में कृषि राज्यमंत्री हैं और बीजेपी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव हैं. शेखावत छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वदेशी जागरण मंच से जुड़े रहे हैं. गजेंद्र सिंह शेखावत जमीन से जुड़े नेता माने जाते हैं. उन्होंने अपने सांसद विकास निधि के का 49.32 फीसदी अपने क्षेत्र के विकास पर खर्च किया गया.

किसान परिवार से संबंध रखने वाले गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान की राजनीति में पूर्व मुख्य वसुंधरा राजे के विकल्प के तौर पर देखा जाता है. आनंदपाल एनकाउंटर के बाद जब प्रदेश में राजपूत संगठनों द्वारा आंदोलन किया गया तब उनसे मध्यस्तता करने के वाले प्रतिनिधिमंडल में शेखावत एक अहम कड़ी थें. पद्मावति और आनंदपाल विवाद के बाद राजपूतों की नाराजगी कम करने के लिए संभवत: मंत्रिमंडल में शामिल किया गया.

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