राजस्थान में विधानसभा चुनावों के बाद लोकसभा चुनाव के लिए सियासी सरर्गमी तेज हो गई है. दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और बीजेपी मिशन 2019 के लिए टारगेट-25 की रणनीति पर काम कर रहे हैं. साल 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई करौली-धौलपुर लोकसभा सीट राजस्थान की राजनीति में खासा महत्व रखता है. धौलपुर राजघराने में ब्याही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ससुराल यहीं है. पिछले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच अन्य सीटों के मुकाबले सबसे नजदीकी मुकाबला देखने को मिला था. लेकिन मोदी लहर में बीजेपी इस सीट को कांग्रेस से छीनने में कामयाब रही. लेकिन हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां अपना दबदबा कायम किया है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
करौली-धौलपुर संसदीय सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है. इससे पहले यह क्षेत्र बयाना लोकसभा सीट के अंतर्गत आता था. इस दौरान धौलपुर जिले के मतदाताओं ने भरतपुर, बयाना, दौसा और दिल्ली तक के उम्मीदवारों को जिताकर लोकसभा भेजा. लेकिन जिले के प्रत्याशी को लोकसभा में मौका नहीं मिला. परिसीमन से पहले हुए कुल 13 लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी ने सबसे ज्यादा 6 बार कब्जा जमाया.
1962 में हुए पहले आम चुनाव में इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार टीकाराम पालीवाल ने जीत दर्ज की. वहीं 1967,1971 और 1980 में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे जगन्नाथ पहाड़िया यहां से तीन बार चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे. वहीं 1977 की जनता लहर में श्याम सुंदल लाल सांसद बनें. 1984 में कांग्रेस के लाला राम यहां से सांसद बने.
लेकिन 1989 से 2004 तक लगातार 6 बार बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा जमाया. जिसमें 1991 से 1998 तक लगातार 3 बार बीजेपी के गंगाराम कोली यहां से सांसद बनें. वहीं साल 1989 में थानसिंह जाटव, 1999 में बहादुर सिंह कोली और 2004 में रामस्वरूप कोली ने चुनाव जीता. साल 2008 के परिसीमन के बाद करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के खिलाड़ी लाल ने बाजी मारी. लेकिन 2014 की मोदी लहर में कांग्रेस यह सीट हार गई और बीजेपी के मनोज राजौरिया यहां से सांसद बने.
सामाजिक ताना-बाना
करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र का गठन करौली जिले की 4 और धौलपुर जिले की 4 विधानसभा सीटों को मिलाकर किया गया है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की जनसंख्या 26,69,297 है जिसका 82.56 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण और 17.44 प्रतिशत हिस्सा शहरी है. वहीं कुल आबादी का 22.52 फीसदी अनुसूचित जाति और 14.39 फीसदी अनुसूचित जनजाति हैं. इस लिहाज से इस सीट पर एक तिहाई से ज्यादा आरक्षित वर्ग के लोग हैं जिनकी भूमिका किसी भी दल की हार-जीत तय करने में निर्णायक है. 2014 लोकसभा चुनाव के आकड़ों के मुताबिक यहां मतदाताओं की संख्या 15,49,662 है, जिसमें से 8,45,665 पुरुष और 7,03,997 महिला मतदाता हैं.
करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत करौली जिले की 4 विधानसभा सीट-टोडाभीम, हिंडौन, करौली, सपोतरा विधानसभा और धौलपुर जिले की 4 विधानसभा-बसेड़ी, बारी, धौलपुर और राजाखेड़ा विधानसभा सीटें शामिल हैं. दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन 8 विधानसभा सीटों में से 7 सीटों पर जीत का परचम लहराया जबकि बीजेपी में महज 1 सीट धौलपुर से संतोष करना पड़ा.
2014 का जनादेश
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर 54.6 फीसदी मतदान हुआ. इस दौरान कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर देखी गई. जहां बीजेपी ने 47.6 फीसदी वो के साथ जीत दर्ज की तो वहीं कांग्रेस 44.4 फीसदी वोट के साथ दूसरे स्थान पर रही. बीजेपी ने इस चुनाव में पिछला चुनाव हारे मनोज राजौरिया पर एक बार फिर भरोसा जताया तो वहीं कांग्रेन ने अपने मौजूदा सांसद खिलाड़ीलाल बैरवा की जगह नए उम्मीदवार लक्खिराम बैरवा को चुनावी मैदान में उतारा.
बीजेपी के टिकट पर मनोज राजौरिया ने कांग्रेस के लक्खिराम बैरवा को 27,216 वोट से शिकस्त दी. मनोज राजौरिया को 402,407 और कांग्रेस के लक्खिराम बैरवा को 375,191 वोट मिले.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
49 वर्षीय करौली-धौलपुर सांसद मनोज राजौरिया का जन्म 19 दिसंबर 1969 में जयपुर हुआ था. राजौरिया ने होमियोपैथी में बीएचएमएस और एमडी की शिक्षा जयपुर के डॉ एमपीके होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज से की. राजौरिया पेशे से होमियोपैथिक डॉक्टर हैं. सांसद के तौर पर मनोज राजैरिया की संसद में 91.59 फीसदी उपस्थिति रही. इस दौरान उन्होंने 423 सवाल पूछे और 277 बहस में हिस्सा लिया. वहीं 12 प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए. सांसद विकास निधि की बात करें तो राजौरिया ने कुल आवंटित धन का 49.4 फीसदी क्षेत्र के विकास पर खर्च किया.