scorecardresearch
 

महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन का कारण बने 2014 के ये सबक!

दरअसल भाजपा और शिवसेना का गठबंधन राज्य में उनकी मजबूरी है. लंबे समय से एक साथ चुनाव लड़ने की वजह से उनके बीच न सिर्फ सीटों की संख्या लगभग तय होती थी बल्कि कौन सी सीट किस पार्टी के खाते में जाती है यह भी लगभग तय रहता था.

Advertisement
X
18 फरवरी को गठबंधन की जानकारी देते अमित शाह और उद्धव ठाकरे. फोटो-Twitter/ShivSena
18 फरवरी को गठबंधन की जानकारी देते अमित शाह और उद्धव ठाकरे. फोटो-Twitter/ShivSena

Advertisement

महाराष्ट्र में ना-ना करते फिर एक बार भाजपा और शिवसेना गठबंधन कर बैठे हैं. 18 फरवरी की दोनों पार्टियों की घोषणा सिर्फ लोकसभा चुनाव 2019 तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये गठबंधन इस साल के अंत में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए भी रहेगा. गौरतलब है कि महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का गठबंधन 1989 के लोकसभा चुनाव से ही है और तब से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव तक दोनों पार्टियां राज्य में हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ लड़ीं लेकिन 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दोनों अलग-अलग चुनाव लड़े थे.

आखिर ऐसी क्या वजह थी कि दोनों अलग-अलग चुनाव लड़े विधानसभा में और अब एक बार फिर से 2019 के चुनाव में गठबंधन में लड़ेंगे? एक और बड़ा सवाल यह भी है कि हाल के दिनों में जैसी तल्खी शिवसेना की तरफ से दिखाई जा रही थी अचानक वही शिवसेना, भाजपा के साथ गठबंधन के लिए राजी कैसे हो गयी? क्या भाजपा और शिवसेना का गठबंधन दोनों की मजबूरी थी? इन सवालों का जवाब उनके पुराने गठबंधन के गणित में छिपा है.

Advertisement

महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 25 पर भाजपा और बाकी 23 पर शिवसेना चुनाव लड़ेगी. 2014 में जहां रामदास आठवले की RPI(A) को भी एक सीट दी गई थी, उन्हें इस बार NDA गठबंधन में कोई सीट नहीं मिली है. बड़ी बात ये है कि शिवसेना को मिली 23 सीटें उसको अब तक मिली सीटों के हिसाब से सबसे अधिक हैं. पिछले लोकसभा चुनाव से भी तीन सीट अधिक और किसी भी लोकसभा चुनाव से एक सीट अधिक.  

चार्ट 1: महाराष्ट्र में विभिन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना द्वारा लड़ी गई सीटों की संख्या

    

इस चार्ट से ये जाहिर होता है कि भाजपा शिवसेना की तुलना में हमेशा से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ती रही है लेकिन ये बात विधानसभा चुनाव में ठीक विपरीत होती है, जहां 1990 से ही शिवसेना, भाजपा के मुक़ाबले ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ती आ रही है.  

चार्ट-2 : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना द्वारा लड़ी गई सीटें

 

यानी महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के लंबे चले गठबंधन का मूल मंत्र यह था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन में बड़ा भाई रहेगी और विधानसभा चुनाव में शिवसेना ये भूमिका अदा करेगी. लेकिन ये सिलसिला 2014 के विधानसभा चुनाव में टूट गया. इस टूट की बड़ी वजह यह थी कि अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन के बड़े भाई की भूमिका चाहती थी. उसका पैमाना भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम को बनाना चाहती थी जिसे शिवसेना ने ठुकरा दिया था क्योंकि उसे गठबंधन का पुराना फॉर्मूला ही मंजूर था.

Advertisement

बहरहाल दोनों पार्टियां विधानसभा में अलग-अलग चुनाव लड़ीं और भाजपा एक बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन अकेले बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई. ऐसा क्यों हुआ कि उस समय की ताजा मोदी लहर के बावजूद भाजपा राज्य में बहुमत को नहीं छू पाई और एक बार फिर से शिवसेना के साथ गठबंधन को तैयार हो गई?

दरअसल भाजपा और शिवसेना का गठबंधन राज्य में उनकी मजबूरी है. लंबे समय से एक साथ चुनाव लड़ने की वजह से उनके बीच न सिर्फ सीटों की संख्या लगभग तय होती थी (कुछ को छोड़ कर) बल्कि कौन सी सीट किस पार्टी के खाते में जाती है यह भी लगभग तय रहता था. इस वजह से दोनों पार्टी के कार्यकर्ता और संगठन अपने-अपने विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में मजबूत रहे लेकिन उन क्षेत्रों में जनाधार घटता गया जहां सहयोगी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में होते है.

उदाहरण के लिए अगर राज्य के 2014 विधानसभा चुनाव के परिणाम देखें तो जिस लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार चुनाव मैदान में होते थे उनमें आने वालीं 163 में से 149 पर भाजपा 35 प्रतिशत वोट के साथ 81 सीटें जीतने में सफल रही लेकिन उन 119 सीटों पर जहां शिवसेना चुनाव लड़ा करती थी उनमें से 111 पर भाजपा चुनाव लड़ी और सिर्फ 41 सीटें जीत पाई. इन इलाकों में उसका वोट भी सिर्फ 26 प्रतिशत रहा. लगभग यही हाल शिवसेना का भी रहा. जिन लोकसभा सीटों पर शिवसेना चुनाव लड़ती है उसके तहत आने वाले विधानसभा सीटों पर शिवसेना को 26 प्रतिशत वोट मिले जबकि अन्य सीटों पर उनका वोट 10 प्रतिशत कम रहा.

Advertisement

2014 का विधानसभा चुनाव परिणाम भाजपा और शिवसेना के लिए एक आईने की तरह था, दोनों पार्टियां उस आईने में अपनी-अपनी तस्वीर देख चुकी हैं. 2019 की लड़ाई में उनके सामने कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन है. उनसे टक्कर में बीजेपी अकेले लड़ने का खतरा मोल नहीं ले सकती थी और इसी के परिणामस्वरूप उन्हें शिवसेना को पिछले साल के मुक़ाबले अधिक सीटें देनी पड़ीं और संभवतः दोनों को गठबंधन के अपने पुराने फॉर्मूले पर वापस आना पड़ा.

Advertisement
Advertisement