महाराष्ट्र के राजनीतिक परिवारों में विरासत की जंग पुरानी है. अभी एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार का मामला बिल्कुल ताजा है. मीडिया में ऐसी कई खबरें हैं जिनमें पवार के भतीजे और उनकी बेटी के बीच सियासी खींचतान की बातें आई हैं. शरद पवार के भतीजे अजीत पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले महाराष्ट्र में जाना पहचाना नाम हैं जिन पर एनसीपी की पूरी राजनीति चलती रही है लेकिन अब इसमें दरार की शिकायतें हैं.
शरद पवार और अजीत पवार के बीच मनुटाव को चाचा-भतीजे की लड़ाई के रूप में भी देखा जा रहा है. हालांकि महाराष्ट्र की यह कोई पहली घटना नहीं है. ध्यान रहे महाराष्ट्र की राजनीति में चाचा भतीजे के टकराव का पुराना इतिहास है. बाल ठाकरे और राज ठाकरे इसके उदाहरण हैं. दूसरी मिसाल गोपीनाथ मुंडे के भतीजे धनंजय मुंडे की दी जाती है.
शरद पवार और अजीत पवार
हालिया खबरों पर गौर करें तो कह सकते हैं कि शरद पवार के परिवार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पवार परिवार में सियासी जंग छिड़ गई है. खबरों के मुताबिक शरद पवार के बड़े भाई आनंदराव पवार के बेटे अजीत पवार विरोध में उतर गए हैं. एनसीपी की अब तक की जो राजनीति रही है उसमें अजीत पवार को शरद पवार का उत्तराधिकारी माना जाता है. मगर पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को आगे कर दिया है. सुप्रिया सुले सांसद हैं जो अपने पिता की पारंपरिक बारामती सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ती हैं.
यह कोई पहला मौका नहीं है जब अजीत पवार ने एनसीपी के अंदर शरद पवार को चुनौती दी है और अपने बेटे पार्थ पवार को लोकसभा चुनाव लड़ाने का फैसला किया है. कहा जा रहा है कि अजीत पवार की इसी जिद के कारण शरद पवार ने खुद चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है. पहले की खबरें देखें तो उन्होंने अपना सियासी संन्यास छोड़ते हुए माढा सीट से लड़ने का फैसला किया था लेकिन जब अजीत पवार ने बेटे को मावल सीट से लड़ाने का ऐलान किया तो शरद पवार खुद पीछे हट गए. इसी क्रम में अजीत पवार के दूसरे भाई के बेटे शरद पवार के समर्थन में उतर गए हैं.
तभी अजीत पवार के भाई के बेटे रोहित पवार ने अभी हाल में फेसबुक पोस्ट लिख कर शरद पवार से चुनाव लड़ने का आग्रह किया है. रोहित पवार ने शरद पवार के महाराष्ट्र की राजनीति में योगदान को याद किया और कहा कि उनको चुनाव लड़ना चाहिए. अभी जो स्थिति है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि आगे भी पवार परिवार का यह सियासी ड्रामा चलेगा.
ठाकरे परिवार में खींचतान
शिवसेना के संस्थापक नेता स्वर्गीय बाल ठाकरे के स्वाभाविक वारिस के तौर पर लोग उनके बेटे उद्धव ठाकरे को नहीं बल्कि उनके भतीजे राज ठाकरे को देखते थे. लोगों को उम्मीद थी कि ठाकरे शिवसेना की कमान राज ठाकरे को ही सौंपेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और शिवसेना की कमान उद्धव ठाकरे के हाथों में चली गई. इसके बाद राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ कर अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) बना ली.
राज ठाकरे ने जिस वक्त एमएनएस का गठन किया उस वक्त बाल ठाकरे 80 साल के हो चुके थे. पार्टी बनाने के पीछे एक वजह यह भी दी जाती है कि उस वक्त (2006) उद्धव के साथ राज ठाकरे के मतभेद ज्यादा गहरा गए थे और शिवसेना के टिकट वितरण में भी दोनों आमने-सामने आ गए थे. राज ठाकरे को तब एक तरह से पार्टी के फैसले लेने में दरकिनाकर कर दिया गया था. राज ठाकरे को सुनने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी बोलने की शैली बाल ठाकरे से मिलती है क्योंकि उन्होंने बहुत कुछ अपने चाचा से सीखा है. शिवसेना से अलग होते हुए राज ठाकरे ने यह भी कहा कि शिवसेना अपनी धार खो चुकी है, लिहाजा वे इसमें नहीं बने रहना चाहते. राज ठाकरे का हिंदुत्व और मराठी मानुष का नारा भी बाल ठाकरे से मिलता है.
राज और उद्धव ठाकरे के बीच एक हालिया बड़ी घटना ये हुई कि मनसे के एकमात्र विधायक को उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना ने तोड़ लिया और अपने में मिला लिया. इस घटना के बाद दोनों में अदावत और गहरा गई.
मुंडे परिवार की अदावत पुरानी
एनसीपी के नेता स्व. गोपीनाथ मुंडे और उनके भतीजे धनंजय मुंडे के बीच खींचतान भी जगजाहिर है. आपको बता दें कि 2014 में एनसीपी ने धनंजय मुंडे को विधानपरिषद में विरोधी दल का नेता बनाने का फैसला किया. ये फैसला इसलिए था क्योंकि ऐसा करके एनसीपी पिछड़ों की राजनीति में मुंडे की दोनों बेटियों के मुकाबले धनंजय को इस्तेमाल करना चाहती थी.
धनंजय मुंडे को पहली बार गोपीनाथ मुंडे ने ही विधानपरिषद भेजा था. मगर चाचा से अलग होने के बाद धनंजय ने विधानपरिषद से त्यागपत्र दे दिया था. इसके बाद एनसीपी ने अपने कोटे से उन्हें विधानपरिषद भेजा. बाद में एनसीपी ने धनंजय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर बीजेपी के पिछड़े वर्ग के वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश की. उस वक्त महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत में गोपीनाथ मुंडे की बड़ी बेटी पंकजा मुंडे ने बड़ी भूमिका निभाई और कई रैलियों को संबोधित किया. इसे देखते हुए एनसीपी ने पंकजा के सामने धनंजय मुंडे को मोहरा बनाया.
ऐसा कर एनसीपी ने न सिर्फ मराठवाड़ा में बल्कि पूरे महाराष्ट्र के पिछड़े वर्ग में अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश की. धनंजय मुंडे का यही काम तब एनसीपी में छगन भुजबल करते थे. जानकारों की मानें तो पिछड़ों की राजनीति में खुद गोपीनाथ मुंडे भी भुजबल को अपना नेता मानते थे. इसे देखते हुए धनंजय मुंडे को आगे बढ़ा कर पवार परिवार ने भुजबल के भी पर कतरने की कोशिश की.