अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कुंभनगरी प्रयागराज में दो-दो धर्मसंसद के आयोजन से माहौल गरमाया हुआ है. तो वहीं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में देश के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए 13 प्वाइंट रोस्टर लागू करने के खिलाफ विशाल मार्च का आयोजन हो रहा है. वैसे तो यह दोनों घटनाएं एक- दूसरे से अलग हैं, लेकिन ये घटनाएं देश की सियासत में दो धाराओं के टकराव को स्थापित करने वाली मंडल बनाम कमंडल की अवधारणा को एक बार फिर ताजा कर देती हैं.
तेजस्वी का संसद तक पैदल मार्च
देश के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए 13 प्वाइंट रोस्टर का नियम लागू करने के खिलाफ राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मंडी हाउस से संसद तक मार्च का आह्वान किया है. तेजस्वी ने इस बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखकर कहा है कि आरक्षण को खत्म करने के लिए साजिशन विश्वविद्यालयों में 13 प्वाइंट रोस्टर की नियम लागू किया जा रहा है, ताकि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग को आरक्षण का लाभ न मिल पाए.
.......आगे और लड़ाई है
इससे पहले जब केंद्र सरकार द्वारा सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन विधेयक पास कराया गया, तब भी आरजेडी ने इस बिल का खुलकर विरोध किया था. आरजेडी ने इसे आरक्षण खत्म करने की साजिश में पहला कदम बताया था. आरजेडी नेता और सांसद मनोज झा ने 'आजतक' से बातचीत में कहा कि 13 प्वाइंट रोस्टर इस आंदोलन का तात्कालिक कारण है. लेकिन बड़ी लड़ाई सामाजिक रूप से शोषित वर्ग को आबादी के लिहाज के प्रतिनिधित्व दिलाने की है. हमारे और अन्य बहुजन नेता सौ दफा कह चुके हैं कि आरक्षण खैरात नहीं बल्कि दलित-बहुजन समाज के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने का एक जरिया है. उन्होंने कहा कि एससी/एसटी एक्ट को कुंद करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सरकार 2 अप्रैल, 2018 के आंदोलन तक सोती रही.
राम मंदिर मुद्दा गरमाया
यह सब कुछ तब हो रहा है जब देश लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. एक तरफ केंद्र सरकार ने चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण मामले में बड़ा कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट से गैर-विवादित जमीन वापस करने की गुहार लगाकर अपना दांव खेल दिया है. तो वहीं प्रयागराज में धर्मसंसद में मंदिर निर्माण की तारीख का ऐलान हो गया है. इसके अलावा वीएचपी की अगुवाई में गुरुवार से दो दिवसीय धर्मसंसद होने जा रही है. लिहाजा यह कहा जा सकता है कि चुनाव से पहले राम मंदिर मुद्दा गरमाने के लिए कुभनगरी में पर्याप्त रसद मौजूद है.
मंडल बनाम कमंडल की शुरुआत
यह दोनों घटनाक्रम 90 के दशक की याद दिलाते हैं जब राष्ट्रीय मोर्चा सरकार की अगुवाई करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिश लागू करने का निर्णय लिया था. उस दौरान वीपी सिंह की सरकार बीजेपी और वाम दलों की बैसाखी पर खड़ी थी. उनके इस फैसले ने बीजेपी को सकते में डाल दिया. जातियों की जटिलता को समझते हुए बीजेपी ने इस पर कोई तत्काल प्रतिक्रिया नहीं दी. लेकिन मंडल कमीशन की सिफारिश के दूरगामी राजनीतिक परिणाम की काट के लिए बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने हिंदु एकजुटता का नारा देते हुए राम मंदिर आंदोलन तेज कर दिया.
बाद में राजनीति की इन दो धाराओं के टकराव को मंडल बनाम कमंडल का नाम दिया गया. जिसमें एक तरफ हिंदुवादी संगठन थे, तो दूसरी तरफ गांधी-अंबेडकर-लोहिया के सिद्धांत को मानने वाले संगठन. सोमनाथ से चलकर आडवाणी की रथयात्रा जब बिहार पहुंची तो लालू यादव की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. जनता दल के नेता लालू यादव की इस कार्रवाई के चलते बीजेपी ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. जिसके बाद वीपी सिंह ने कहा कि सामाजिक न्याय की लड़ाई में सांप्रदायिकता के खिलाफ उन्होंने अपनी गद्दी कुर्बान कर दी.
क्या मंडल बनाम कमंडल होगा लोकसभा 2019?
अब लोकसभा चुनाव में जब कुछ ही महीने बचे हैं तो एक बार फिर राम मंदिर मुद्दा गरमा रहा है. केंद्र सरकार के कदम से बीजेपी को भी बल मिला है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता उत्साहित हैं. इसलिए इस चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा जोर पकड़ेगा इसमें कोई दो राय नहीं. वहीं, सामान्य वर्ग को आरक्षण, 13 प्वाइंट रोस्टर को मुद्दा बनाकर एक बार फिर सामाजिक न्याय के नाम पर गोलबंदी की कोशिश की जा रही है. आने वाले समय में इस दोनों धाराओं में टकराव की पूरी गुंजाइश है. लिहाजा, लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर मंडल बनाम कमंडल की पृष्ठभूमि तैयार होती दिख रही है.