वो 25 साल तक त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे. वह वर्षों तक सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे. वह देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने यह कहकर अपनी महीने का वेतन और भत्ते पार्टी को दान कर दिया कि उनका तो इतना खर्च ही नहीं है. पार्टी उन्हें 5000 रुपये फिर 10000 रुपये हर महीने देती है जिससे उनका खर्च चल जाता है. वह देश के सबसे ईमानदार और देश के सबसे गरीब मुख्यमंत्री माने गए. वह 25 साल तक त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे लेकिन उनके पास न अपना घर है, न कार, वह मोबाइल भी नहीं रखते. ये है माणिक सरकार की पहचान. उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे लेकिन विपक्ष भी कभी उन पर उंगली नहीं उठा पाया.
एसोसिएशन फॉर रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट में बताया गया था कि देश के 81 फीसदी मुख्यमंत्री करोड़पति हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नाम भी इसमें शामिल है. इस लिस्ट में माणिक सरकार का नाम सबसे नीचे रहा. उनकी कुल संपत्ति 24 लाख रुपये बताई गई. अगर अकेले माणिक सरकार की बात करें तो उनके पास सिर्फ 2.5 लाख रुपए ही हैं.
माणिक सरकार का जन्म 22 जनवरी 1949 को कृष्णापुर में हुआ. उन्होंने ग्रैजुएशन तक की शिक्षा हासिल की और राजनीति से जुड़ गए. 19 साल में ही माणिक सरकार माकपा के सदस्य बन गए थे. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सिस्ट) में उन्होंने अपनी जगह बना ली. उनके पिता का नाम अमूल्य सरकार है जो सिलाई का काम करते थे. उनकी माता अंजलि सरकार राज्य सरकार की कमर्चारी थीं. माणिक सरकार की पत्नी पांचाली भट्टाचार्य भी सरकारी नौकरी करती थीं.
1978 में त्रिपुरा में पहली बार बामपंथियों की सरकार बनी और माणिक सरकार 1980 में पहली बार विधायक चुने गए. त्रिपुरा में 1993 से लगातार माकपा की सरकार थी लेकिन माणिक सरकार 1998 में राज्य के मुख्यमंत्री बने. उनके नेतृत्व में पार्टी ने लगातार चार चुनावों में शानदार जीत दर्ज की. मार्च 2018 तक वह त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. माणिक सरकार धनपुर से लागातार चुनाव जीतते रहे 2013 में लगातार उनकी चौथी जीत थी. 2018 में भी उन्होंने यहां से जीत हासिल की और बीजेपी के भोमिक को पराजित किया. वह भारत के कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य हैं. मार्च 2008 में, उन्होंने त्रिपुरा गठबंधन सरकार, वाम मोर्चा के नेता के रूप में शपथ ली थी. 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में, वह लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बने. फिलहाल वह त्रिपुरा विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में कार्य कर रहे हैं.
राजधानी अगरतला हो या उनका अपना शहर उदयपुर, लोग बताते हैं कि उन्हें अक्सर पैदल सब्जी खरीदते हुए भी देख लिया जाता था. उनकी पत्नी टीचर थीं लेकिन कभी सरकार को मिले सरकारी वाहनों का उपयोग नहीं किया. वह अपने स्कूल बस या ऑटो से निकल जाती थीं.
माणिक सरकार ने अपना सरकारी बंगला खाली कर दिया है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम के लोग बताते हैं कि उनके रहने के लिए पार्टी ऑफ़िस में ही एक कमरे का इंतज़ाम किया गया है. जानकारी मिली है कि सीएम आवास से वो चंद कपड़े और किताबें लेकर निकले और सीधे पार्टी दफ्तर पहुंच गए.
जो उन्होंने आखिरी हलफनामा दिया था उसके मुताबिक उनके पास केवल 4 हजार रुपये थे. उन्होंने कभी आयकर रिटर्न नहीं भरा. उनके पास कृषि योग्य या घर बनाने योग्य जमीन भी नहीं है. उनकी रिटायर पत्नी भी कहीं आने जाने के लिए रिक्शे का प्रयोग कर लेती हैं. सरकार दंपति अपने दादा के पुराने और छोटे घर में रहते हैं.
माणिक सरकार ने त्रिपुरा की झीलों वाली नगरी के रूप में जाने जाने वाले उदयपुर स्थित अपने पुश्तैनी मकान को पहले ही पार्टी को दे दिया था. माणिक सरकार की त्रिपुरा सरकार के खिलाफ बिप्लब देब ने भले ही पूरे राज्य में आंदोलन चलाया हो लेकिन सरकार को निशाने पर नहीं लिया. मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा होने के बाद बिप्लब देब सीपीएम के दफ्तर गए और माणिक सरकार के पैर छूकर आशीर्वाद लिया. दोनों त्रिपुरा के उदयपुर के ही रहने वाले हैं. बिप्लब देब भी उदयपुर के ही रहने वाले हैं.