लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद अब अकाली दल में घमासान मच गया है. अकाली दल नेता मंजीत सिंह जीके ने चुनाव के नतीजे आने के बाद जब पार्टी नेताओं पर सवाल उठाए तो पार्टी ने उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया. शुक्रवार को पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में मंजीत सिंह जीके को पार्टी से निकालने का प्रस्ताव पारित किया. कुछ घंटों बाद पार्टी प्रमुख और पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने कमेटी की सिफारिशों को मानते हुए मंजीत सिंह जीके को पार्टी से निष्कासित कर दिया.
मंजीत सिंह जीके ने पार्टी फैसले पर सवाल खड़े करते हुए कहा की जब उन्होंने पिछले साल 7 दिसंबर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था तो निष्कासन गैर कानूनी है. जीके ने कहा है कि निष्कासन का ड्रामा सिर्फ और सिर्फ इसलिए किया गया ताकि वह लोकसभा चुनावों में हुई पार्टी की हार पर सवाल न उठा सकें. जीके ने साफ किया कि अकाली दाल की दिल्ली इकाई को भंग किया जा चुका है और भंग इकाई को कमेटी की बैठक कैसे आयोजित कर सकती है?
गौरतलब है कि जीके ने लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद कहा था कि पंजाब में अकाली दाल ने 13 सीटों में से 10 पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ दो सीटें जीत पाई. बावजूद इसके सुखबीर बादल ने इसे ऐतिहासिक जीत करार दिया था. पूर्व अकाली दल नेता ने कहा कि पंजाब में कांग्रेस सरकार के प्रति रोष और नरेंद्र मोदी फैक्टर के बावजूद भी अकाली दल को हार का सामना करना पड़ा, जो शर्मिंदगी की बात है.
मंजीत सिंह जीके की बयानबाजी के जवाब में अकाली दाल नेता मनजिंदर सिंह सिरसा और दूसरे नेताओं ने मंजीत सिंह जीके पर आरोप लगाया कि उन्होंने दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का अध्यक्ष रहते हुए दान में मिले पैसों का गबन किया. जीके ने पद नहीं छोड़ा बल्कि उनको बाकायदा बर्खास्त किया गया है.
इस तरह की बयानबाजी करके वह दान का पैसा लूटने के आरोपों से बचा नहीं सकते. सिख इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब किसी अध्यक्ष पर दानपात्र लूटने और दोषी पाए जाने पर अध्यक्ष पद से हटाया गया हो. सिरसा ने कहा कि मंजीत सिंह जीके पर कोर्ट ने गै़रजमानती धारा-409 लगाने के ऑर्डर दिए हैं, जिसमें उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.