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मेरठ-हापुड़ लोकसभा में 11 अप्रैल को मतदान, कुल 11 उम्मीदवार मैदान में

गठबंधन में बंटवारे के दौरान मेरठ लोकसभा सीट बीएसपी के खाते में गई है, पार्टी ने यहां से हाजी याकूब कुरैशी को मैदान में उतारा है. जबकि बीजेपी ने मौजूदा सांसद राजेंद्र अग्रवाल पर दांव लगाया है. वहीं कांग्रेस ने हरेंद्र अग्रवाल को उम्मीदवार बनाया है.

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पीएम मोदी ने इस बार भी मेरठ से यूपी में रैली का आगाज किया.
पीएम मोदी ने इस बार भी मेरठ से यूपी में रैली का आगाज किया.

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मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट पर 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. यह लोकसभा सीट हमेशा से बीजेपी के लिए खास रही है. साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने यहीं से चुनाव प्रचार का आगाज किया था, और इस बार भी चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद उत्तर प्रदेश में पीएम मोदी की पहली रैली मेरठ में ही हुई. मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट पर कुल 11 उम्मीदवार मैदान में हैं.

दरअसल गठबंधन में बंटवारे के दौरान मेरठ लोकसभा सीट बीएसपी के खाते में गई है, पार्टी ने यहां से हाजी याकूब कुरैशी को मैदान में उतारा है. जबकि बीजेपी ने मौजूदा सांसद राजेंद्र अग्रवाल पर दांव लगाया है. वहीं कांग्रेस ने हरेंद्र अग्रवाल को उम्मीदवार बनाया है. यह सीट मुस्लिम और दलित बहुल मानी जाती है. ऐसे में अगर बीएसपी उम्मीदवार दलित, मुस्लिम और जाट को एकजुट करने में सफल रहते हैं तो बीजेपी के लिए जीतना आसान नहीं होगा.  

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बीजेपी के लिए खास है मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट

पिछले लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी 10 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. 2019 के लिए मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट से बीजेपी ने आरएसएस के प्रचारक रहे और यहां से दो बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल पर एक बार फिर से दांव खेला है. वहीं एसपी-बीएसपी और आरएलडी गठबंधन ने बीएसपी प्रभारी याकूब कुरैशी को उम्मीदवार बनाया किया है. इन दोनों के बीच ही मुकाबला होने की संभावाना है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का केंद्र और क्रांतिधरा भूमि माने जाने वाली मेरठ लोकसभा सीट राजनीतिक संदेश के हिसाब से अहम सीट मानी जाती है. पिछले दो दशकों से ये सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ मानी जाती रही है. इसलिए इस बार भी पीएम मोदी ने चुनावी रैली की शुरुआत मेरठ से की.

मेरठ लोकसभा सीट का इतिहास

1857 में स्वाधीनता संग्राम की नींव रखने वाला शहर मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति का केंद्र माना जाता है. देश में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस का परचम लहराया, लेकिन 1967 में सोशलिस्ट पार्टी ने कांग्रेस को मात दी. 1971 में एक बार फिर कांग्रेस ने बाजी मारी, लेकिन उसके अगले चुनाव में इमरजेंसी के खिलाफ चली लहर जनता पार्टी के हक में गई.

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हालांकि, 1980, 1984 में कांग्रेस की ओर से मोहसिना किदवई और 1989 में जनता पार्टी ने ये सीट जीती. 1990 के दौर में देश में चला राम मंदिर आंदोलन का मेरठ में सीधा असर दिखा और इसी के बाद ये सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन गई.

1991, 1996 और फिर 1998 में यहां से लगातार भारतीय जनता पार्टी के दबंग नेता अमरपाल सिंह ने जीत दर्ज की. उसके बाद 1999, 2004 में क्रमश कांग्रेस और बसपा ने यहां से बाजी मारी. हालांकि, 2009 और 2014 में फिर यहां भारतीय जनता पार्टी का परचम लहराया.

मेरठ लोकसभा सीट का समीकरण

2011 के आंकड़ों के अनुसार मेरठ की आबादी करीब 35 लाख है, इनमें 65 फीसदी हिंदू, 36 फीसदी मुस्लिम आबादी हैं. मेरठ में कुल वोटरों की संख्या 1964388, इसमें 55.09 फीसदी पुरुष और 44.91 फीसदी महिला वोटर हैं. 2014 में यहां मतदान का प्रतिशत 63.12 फीसदी रहा.

मेरठ लोकसभा के साथ हापुड़ का कुछ क्षेत्र भी जुड़ता है, कुल मिलाकर यहां 5 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें किठौर, मेरठ कैंट, मेरठ शहर, मेरठ दक्षिण और हापुड़ की सीट है. 2017 के लोकसभा चुनाव में इनमें मेरठ शहर समाजवादी पार्टी तथा अन्य विधानसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थीं.

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2014 में मोदी लहर ने लगाया बेड़ा पार   

2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की आंधी चली थी. इसकी शुरुआत मेरठ से ही हुई थी. मेरठ में भारतीय जनता पार्टी को करीब 48 फीसदी वोट मिले थे. मेरठ में राजेंद्र अग्रवाल ने स्थानीय नेता मोहम्मद शाहिद अखलाक को दो लाख से अधिक वोटों से मात दी थी. इस सीट पर बॉलीवुड अभिनेत्री नगमा कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ी थीं, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

राजेंद्र अग्रवाल, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 5,32,981, 47.86%

मोहम्मद शाहिद अखलाक, बहुजन समाज पार्टी, कुल वोट मिले 3,00,655, 27.00%

शाहिद मंजूर, समाजवादी पार्टी, कुल वोट मिले 2,11,759, 19.01%

नगमा, कांग्रेस, कुल वोट मिले 42,911, 3.85%

सांसद राजेंद्र अग्रवाल के बारे में

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बैकग्राउंड से आने वाले सांसद राजेंद्र अग्रवाल मेरठ जैसी मुस्लिम बहुल सीट से लगातार दो बार सांसद चुनकर आए हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत प्रचारक के रूप में की, इमरजेंसी और अयोध्या आंदोलन के दौरान उनपर कई मामले भी दर्ज हुए. ADR के आंकड़ों के अनुसार, राजेंद्र अग्रवाल के पास लगभग 88 लाख रुपये की संपत्ति है. इनमें करीब 55 लाख की संपत्ति अचल है.

राजेंद्र अग्रवाल की गिनती संसद के चुनिंदा एक्टिव सांसदों में से होती है, 16वीं लोकसभा में उन्होंने कुल 167 चर्चाओं में हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने 288 सवाल पूछे. अग्रवाल ने सरकार की ओर से सदन में 5 बिल पेश किए और 5 प्राइवेट मेंबर बिल भी रखे. राजेंद्र अग्रवाल इस समय संसद की कई अहम कमेटियों के सदस्य हैं, जिनमें पंचायती राज की सलाहकार कमेटी, पेट्रोलियम और गैस से जुड़ी कमेटी, सिटिजनशिप पर ज्वाइंट कमेटी शामिल हैं. सांसद निधि के तहत मिलने वाले 25 करोड़ रुपये के फंड में से उन्होंने कुल 76.95 फीसदी रकम खर्च की.

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