जम्मू-कश्मीर की पहली कद्दावर महिला नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली महबूबा मुफ्ती पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की सियासी विरासत को संभाल रही हैं. अलगाववादियों के प्रति नरम रवैया रखने वाली महबूबा मुफ्ती ने पिता की छत्रछाया में राजनीति का ककहरा सीखा. कश्मीर के पत्थरबाजों और आतंकियों की 'हमदर्द' महबूबा मुफ्ती अलगाववादियों के प्रति भी बेहद नरम रवैया रखती हैं.
चौथी बार लड़ने जा रहीं लोकसभा चुनाव
2019 के चुनाव में महबूबा मुफ्ती एक बार फिर अपनी परंपरागत अनंतनाग सीट से चुनाव मैदान में उतरी हैं. उन्होंने इस बार जम्मू और उधमपुर की संसदीय सीट पर अपनी पार्टी का कोई प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला लिया है. महबूबा ने धर्मनिरपेक्ष ताकतों को बंटने से रोकने के लिए ऐसा फैसला लिया है. जम्मू संभाग की दोनों सीटें छोड़ने वाली महबूबा ने कश्मीर की अनंतनाग सीट से खुद और श्रीनगर सीट से आगा मोहसिन को उतारा है. श्रीनगर सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला चुनाव मैदान में हैं. वहीं बारामूला सीट से कर्मचारी संघ के पूर्व नेता अब्दुल कयूम वानी पीडीपी प्रत्याशी होंगे.
राज्य की पहली और देश की दूसरी मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री
22 मई 1959 को बिजबिहाड़ा में जन्म लेने वाली महबूबा मुफ्ती राज्य की 13वीं और पहली महिला मुख्यमंत्री हैं. राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ महबूबा देश की दूसरी मुस्लिम महिला हैं जो किसी राज्य की मुख्यमंत्री रही हैं. उनसे पहले असम की सैयदा अनवर तैमूर मुख्यमंत्री रह चुकी हैं.
पिता की मौत के बाद संभाली विरासत, CM बनीं
जनवरी में पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन होने के बाद 4 अप्रैल 2016 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. बीजेपी के सहयोग से उन्होंने राज्य में सरकार बनाई जो पहले दिन से सवालों के घेरे में रही. बीजेपी और पीडीपी की विचारधारा धरती पर मौजूद दो ध्रुवों की तरह है. लेकिन दोनों ही दल राज्य की भलाई की दुहाई देकर एक साथ आए, लेकिन मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद बीजेपी-पीडीपी की दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चल सकी और 19 जून 2018 को महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी पर तोहमतों की बौछार कर इस्तीफा दे दिया.
दो बार अनंतनाग से रह चुकी हैं सांसद
रियासत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने वाली महबूबा मुफ्ती ने राज्य की सियासत में बड़ा मुकाम हासिल किया है. दो बार अनंतनाग सीट से सांसद रह चुकीं महबूबा मुफ्ती 2019 के चुनाव में एक बार फिर अपनी परंपरागत सीट से चुनाव मैदान में हैं. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की मुखिया महबूबा मुफ्ती 16वीं लोकसभा में अनंतनाग से सांसद हैं. इससे पहले 14वीं लोकसभा में भी 2004 से 2009 तक महबूबा अनंतनाग से ही सांसद थीं. 2009 का चुनाव महबूबा नहीं लड़ीं.
देशविरोधी बयानों से रहती हैं चर्चा में
मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद महबूबा कई बार देश विरोधी बयान दे चुकी हैं. उन्होंने यहां तक चेता दिया था कि कश्मीर में हालात यही रहे तो वहां कोई तिरंगा को कंधा देने वाला भी नहीं रहेगा. ऐसे बयानों के चलते ही महबूबा पर पाकिस्तान समर्थक होने का आरोप लगता रहता है. कश्मीर समस्या सुलझाने के लिए महबूबा मुफ्ती अलगाववादियों को भी शामिल करने की मांग करती रही हैं.
पत्थरबाजों और स्थानीय आतंकियों की हिमायती
महबूबा मुफ्ती का बड़ा वोट बैंक कश्मीर में है. कश्मीर के हक में बेझिझक आवाज उठाने वाली महबूबा बखूबी समझती हैं कि यही उनकी ताकत है. कश्मीर में पत्थरबाजों की वे खुलकर पैरवी करती रही हैं. हिजबुल के आतंकियों का भी महबूबा ने समर्थन किया है. उन्होंने हमेशा इन आतंकियों को कश्मीर का बच्चा ही कहा है. बुरहान वानी को कभी भी उन्होंने आतंकवादी नहीं माना. उन्होंने यहां तक कह दिया था कि अगर उन्हें पता होता कि एनकाउंटर वाली जगह पर बुरहान वानी है तो वे उसे एक मौका जरूर देतीं.
अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35 ए पर खुलकर जताया विरोध
अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35 ए पर खुलकर आवाज बुलंद करने वाली महबूबा मुफ्ती कई बार भारत विरोधी बयानबाजी भी कर चुकी हैं. हाल ही में उन्होंने यहां तक कह दिया था कि अगर मोदी सरकार का कश्मीर के प्रति यही रवैया रहा तो घाटी में कोई तिरंगा का कंधा देने वाला भी नहीं बचेगा.
आतंकवादियों के घर मातमपुर्सी कर बनाई कश्मीरियों के दिल में जगह
महबूबा मुफ्ती ने 1989 के उस दौर में राजनीति शुरू की जब पूरे कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था. कश्मीर से पंडित भगाए जा रहे थे. ऐसे मुश्किल माहौल में महबूबा ने कश्मीर की आम जनता के बीच अपनी जगह बनाई. बाद में कश्मीर में जब एनकाउंटर होने लगे तो महबूबा मुठभेड़ में मारे गए आतंकी के घर पहुंचकर मातमपुर्सी करतीं. आतंकवादी के परिवार को ढांढस बंधातीं. ऐसा कर महबूबा ने कश्मीरियों के दिल में खास जगह बना ली.
पार्टी को बिखरने से बचाना थी चुनौती
पिता के निधन के बाद महबूबा मुफ्ती को भले ही पिता की विरासत सौंप दी गई, लेकिन पार्टी में कई ऐसे वरिष्ठ नेता थे, जो इसकी खिलाफत में थे. इसी का नतीजा था कि कुछ ही दिनों के भीतर पार्टी से कई बड़े नेताओं ने दूरी बना ली. महबूबा मुफ्ती के सामने इस समय बड़ी चुनौती पार्टी को टूटने से बचाने के साथ-साथ आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए फिर से कमर कसना है.
दो बेटियों की मां, पति से हुआ तलाक
22 मई 1959 को मुफ्ती परिवार में जन्मीं महबूबा ने कश्मीर यूनिवर्सिटी से कानून की तालीम ली. 1984 में महबूबा ने जावेद इकबाल से शादी की. बाद में महबूबा दो बेटियां हुईं, इल्तिजा और इर्तिका. इल्तिजा लंदन में भारतीय हाई कमिश्नर में सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफीसर हैं. छोटी बेटी इर्तिका मुंबई में राइटर हैं. बेटियों के जन्म के बाद महबूबा का तलाक हो गया. इसके बाद महबूबा पूरी तरह राजनीति के मैदान में उतर गईं. तलाक के बाद महबूबा के पति जावेद ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के टिकट से सोनवार से चुनाव लड़ा था.
भाई की राजनीति में दिलचस्पी नहीं तो उतरीं मैदान में
महबूबा के भाई तसादुक मुफ्ती मुंबई में सिनेमेट्रोग्राफर हैं. उनकी सियासत में कोई दिलचस्पी नहीं रही. कहा जाता है कि बेटे के फैसले के बाद ही महबूबा ने पिता की सलाह पर उनकी सियासी विरासत को संभालने का फैसला किया.
बहन के अपहरण के बाद सुर्खियों में आईं
महबूबा मुफ्ती पहली बार बहन के अपहरण के वक्त चर्चा में आईं थीं. उस समय उन्होंने मीडिया में कई इंटरव्यू दिए, जिसने लोगों का ध्यान खींचा. हालांकि उस समय वे राजनीति से बेहद दूर थीं. 1989 में महबूबा मुफ्ती की बहन रूबिया सईद का आतंकियों ने अपहरण कर लिया था. उस समय महबूबा के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे. रूबिया की रिहाई के बदले कुछ आतंकियों को छोड़ने की मांग रखी गई, जिसे भारत सरकार को मजबूरन मानना पड़ा था. सरकार के उस फैसले की काफी आलोचना की गई थी.
1996 में पहली बार लड़ीं चुनाव
1996 में पहली बार महबूबा मुफ्ती कांग्रेस के टिकट पर अनंतनाग की बिजबिहाड़ा सीट से विधानसभा चुनाव लड़ीं और जीतीं. इसके बाद महबूबा ने 1999 में श्रीनगर संसदीय सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं. इसके बाद 2002 में महबूबा फिर से विधानसभा चुनाव जीतीं. 2004 में महबूबा मुफ्ती पहली बार लोकसभा चुनाव में उतरीं. उन्होंने अपने जन्मस्थान दक्षिण कश्मीर की अनंतनाग सीट से पहली बार चुनाव लड़ते हुए केंद्र की राजनीति में दस्तक दी.
कांग्रेस से अलग होकर पिता ने बनाई पार्टी
मुफ्ती मोहम्मद सईद का कांग्रेस से मोहभंग हुआ और उन्होंने 1999 में अपनी नई पार्टी जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (JKPDP) बना ली. पिता की पार्टी में महबूबा मुफ्ती उपाध्यक्ष बनीं. साल 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में पीडीपी 16 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए सत्ता में आई. इसके बाद से पार्टी लगातार मजबूत होती गई. 2008 में पीडीपी ने 21 सीटें हासिल की तो 2014 में सीटों का आंकड़ा बढ़कर 28 तक जा पहुंचा. अब राज्य में लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. विधानसभा चुनाव में पहली बार महबूबा की असली परीक्षा होगी, जब वे पिता के बगैर मैदान में होंगी.