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MOTN: सबका साथ सबका विकास पर खरी नहीं उतरी मोदी सरकार

नरेंद्र मोदी मई 2014 से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री थे, वह वहां 13 साल तक इस पद रहे और अपनी आक्रामक कार्यशैली के दम पर 16वें लोकसभा के दौरान उन्होंने देशभर में अपने पक्ष में शानदार लहर बनाई जिस कारण उन्होंने न सिर्फ आसानी से चुनाव जीता बल्कि भारतीय जनता पार्टी पहली बार संसद में बहुमत के साथ पहुंचने में कामयाब रही. सर्वे के जरिए यह जानने की कोशिश की गई कि पिछले 5 साल में बतौर प्रधानमंत्री उनके काम करने का तरीका कैसा रहा.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल-PTI)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल-PTI)

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नरेंद्र मोदी मई 2014 से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री थे, वह वहां 13 साल तक इस पद रहे और अपनी आक्रामक कार्यशैली के दम पर 16वें लोकसभा के दौरान उन्होंने देशभर में अपने पक्ष में शानदार लहर बनाई जिस कारण उन्होंने न सिर्फ आसानी से चुनाव जीता बल्कि भारतीय जनता पार्टी पहली बार संसद में बहुमत के साथ पहुंचने में कामयाब रही. सर्वे के जरिए यह जानने की कोशिश की गई कि पिछले 5 साल में बतौर प्रधानमंत्री उनके काम करने का तरीका कैसा रहा. यह भी जानने की कोशिश की गई कि क्या एनडीए सरकार अपने 'सबका साथ सबका विकास' नारे पर खरी उतरी. 47 फीसदी लोगों ने माना कि सबका साथ सबका विकास नारे पर सरकार खरी नहीं उतरी है.

आजतक-कार्वी इनसाइट्स के सर्वे में 'क्या आप मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्टाइल काम कर रहा है' के सवाल पर 22 फीसदी लोगों ने माना कि प्रधानमंत्री सबका साथ-सबका विकास में विश्वास करते हैं, जबकि 13 फीसदी लोगों का कहना है कि वह सिर्फ बात करते हैं, करते नहीं.

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आजतक-कार्वी इनसाइट्स की ओर से कराए गए सर्वे में 12,166 लोगों को शामिल किया गया जिसमें उनसे कई मुद्दों पर सवाल पूछे गए. सर्वे में 69 फीसदी ग्रामीण और 31 फीसदी शहरी लोग शामिल हुए. सर्वे का दायरा 97 लोकसभा और 194 विधानसभा सीटों तक फैला था. इस सर्वे में 19 राज्यों को शामिल किया गया.

इसी सर्वे में 12 फीसदी लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रिस्क लेने में हिचकते नहीं हैं. वहीं 10 फीसदी लोगों का कहना है कि उन्होने देश को शानदार नेतृत्व दिया है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बार-बार इस आरोप पर कि मोदी सिर्फ अमीरों का ख्याल रखते हैं, सर्वे में परिणाम इसके उलट आया है क्योंकि महज 9 फीसदी लोगों का कहना है कि मोदी अमीरों के समर्थक हैं, जबकि 10 फीसदी लोगों की नजर में वह गरीबों के हिमायती हैं.

पिछले 5 साल में सैकड़ों चुनावी रैली करने वाले प्रधानमंत्री मोदी के बारे में महज 7 फीसदी लोगों का यह मानना है कि वे चुनावी रैलियों में ज्यादा व्यस्त रहते हैं.

इसके अलावा 2-2 फीसदी लोग यह मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पब्लिसिटी बटोरने, आरएसएस के इशारे पर काम करना, बड़े मुद्दों पर उनकी चुप्पी, ईमानदार छवि, किसान विरोधी, किसान समर्थक, दलित समर्थक, दलित विरोधी और राजनीति में परिवारवाद में बढ़ावा नहीं देने के मामले में वाले हैं.

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क्या 'सबका साथ सबका विकास' नारे पर खरी उतरी सरकार

बीजेपी की अगुवाई वाली क्या एनडीए सरकार अपने 'सबका साथ सबका विकास' नारे पर खरी उतरी है, इस पर 47 फीसदी लोगों का कहना है कि नहीं, ऐसा नहीं है वह अपने मकसद में नाकाम रही है, वहीं 43 फीसदी लोग मानते हैं कि सरकार इसमें सफल रही है. खास बात यह है कि अगस्त, 2018 में हुए पिछले सर्वे में 'सबका साथ सबका विकास' नारे पर खरा उतरने की बात कहने वालों की संख्या 45 फीसदी थी और 41 फीसदी लोगों का कहना है कि नहीं.

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