2014 में मोदी सरकार जब सत्ता पर काबिज हुई तो उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान से संबंध को लेकर थी. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने से पहले ही नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान से रिश्ते अच्छे करने की बात कहते रहे. इसी सिलसिले में उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को न्योता दिया था. नवाज ने न्योता स्वीकार किया और दिल्ली पहुंचे. भारत ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के पूरे प्रयास किए गए. इतना ही नहीं पीएम मोदी ने सत्ता पर काबिज होने के डेढ़ साल बाद इस्लामाबाद की धरती पर उतरकर सबको चौंका दिया.
25 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अफगानिस्तान से लौट रहे थे और अचानक पाकिस्तान पहुंचे. लाहौर जाकर उन्होंने नवाज शरीफ को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं. यह 11 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली पाक यात्रा थी. भारत के इन सभी प्रयासों के बाद उसको पाकिस्तान से जवाब के रूप में सिर्फ धोखा मिला. पठानकोट, उरी, गुरदासपुर में आतंकी हमला यह सभी उस धोखे के उदाहरण हैं. लेकिन अब जब मोदी सरकार चुनावी मैदान में उतरेगी तो उसके सामने पाकिस्तान से संबंध एक बड़ा मुद्दा होगा. विरोधी गिनाएंगे कि आपके कार्यकाल में भी हमारे जवान शहीद हो रहे हैं.
इन्हीं सब सवालों का जवाब मोदी सरकार को जनता को देना होगा. लेकिन इससे पहले इंडिया टुडे-कार्वी इनसाइट्स ने देश की जनता से यह जानने की कोशिश की भारत को पाकिस्तान से कैसे निपटना चाहिए. सर्वे में जनता को दो विकल्प दिए गए. पहला विकल्प यह रहा कि सीमापार से आतंकवाद खत्म किए बिना द्धिपक्षीय बात नहीं होनी चाहिए. 56 फीसदी लोगों ने यह बात मानी जब सीमापार से आतंकवाद खत्म नहीं होता तब तक द्धिपक्षीय वार्ता नहीं होनी चाहिए.
वहीं दूसरा विकल्प यह दिया गया कि बातचीत ही सीमापार आतंकवाद का समाधान है. इसमें 31 फीसदी लोगों ने माना कि बातचीत ही सीमापार आतंकवाद का समाधान है. 13 फीसदी लोग इस पर कोई राय नहीं रखते हैं.
सर्वे में जनता से दूसरा सवाल यह किया गया कि इमरान खान के प्रधानमंत्री रहते मोदी सरकार ने पाकिस्तान से कैसे संबंध संभाला. इसमें 20 फीसदी लोग ऐसे रहे जो यह मानते हैं कि मोदी सरकार ने बहुत ही अच्छे से इसको संभाला. वहीं 45 फीसदी लोग संतुष्ट दिखे तो 17 फीसदी लोग ने इसे खराब करार दिया, जबकि 18 फीसदी लोग इसपर कोई राय नहीं रखते हैं.
यह इंडिया टुडे-कार्वी इनसाइट्स का सर्वे है जिसमें 12,166 लोगों से सवाल पूछे गए. इसमें 69 फीसदी ग्रामीण और 31 फीसदी शहरी लोग शामिल थे. इसका दायरा 97 लोकसभा क्षेत्रों और 194 विधानसभा सीटों तक फैला था. सर्वे में 19 राज्यों को शामिल किया गया.