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मुजफ्फरनगर लोकसभा: 11 अप्रैल को वोटिंग, बालियान-अजित सिंह में मुकाबला

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार नहीं उतारे जाने से मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और सपा-बसपा-आरएलडी उम्मीदवार के बीच होना तय है. यहां से गठबंधन के उम्मीदवार राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के प्रमुख चौधरी अजित सिंह हैं, जबकि बीजेपी पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मौजूदा सांसद संजीव बालियान पर ही दांव लगाया है.

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सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन ने अजित सिंह को उम्मीदवार बनाया है (Photo: File)
सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन ने अजित सिंह को उम्मीदवार बनाया है (Photo: File)

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मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार नहीं उतारे जाने से मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और सपा-बसपा-आरएलडी उम्मीदवार के बीच होना तय है. यहां से गठबंधन के उम्मीदवार राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के प्रमुख चौधरी अजित सिंह हैं, जबकि बीजेपी पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मौजूदा सांसद संजीव बालियान पर ही दांव लगाया है.

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. इस सीट पर कुल 10 उम्मीदवार मैदान में हैं. लेकिन कांग्रेस ने इस सीट पर कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है. वहीं शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया (पीएसपी-एल) ने इस सीट से ओमबीर सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है.

दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सबसे चर्चित लोकसभा सीटों में से एक मुजफ्फरनगर पर हर किसी की नजर टिकी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 'जाटलैंड' के नाम से मशहूर ये क्षेत्र अभी भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले 2013 में यहां हुए दंगों ने सियासी दंगल खड़ा कर दिया था. जिसके बाद से ही इस सीट पर हर किसी की नजर रहती है. केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके संजीव बालियान इस सीट पर 2014 में बड़ी जीत कर हासिल कर आए थे. हालांकि, इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के लिए राह आसान नहीं है क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले जाटों की नाराजगी काफी मुश्किल का विषय बनी थी.

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मुजफ्फरनगर सीट का इतिहास

शुरुआती कई साल इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा. 1952 के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर 1962 तक ये सीट कांग्रेस के खाते में ही रही, जिसके बाद लगातार दो बार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने जीत दर्ज की थी. 1977 से 1991 तक ये सीट जनता दल, कांग्रेस के खाते में रही.

1990 के आसपास जब देश में राम मंदिर का मुद्दा चरम पर था तो उसका असर यहां भी देखने को मिला. 1991, 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में यहां पर लगातार भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी. 1999 में जब फिर से चुनाव हुए तो कांग्रेस ने सीट छीन ली. हालांकि, 2004 और 2009 में ये सीट क्रमश: समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के खाते में गई. और 2014 में चली मोदी लहर ने इस सीट को दोबारा बीजेपी की झोली में डाल दिया.

मुजफ्फरनगर सीट का समीकरण

आपको बता दें कि मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर करीब 16 लाख वोटर्स हैं. इनमें पुरुष वोटर 875186 और 713297 महिला वोटर हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 69.7 फीसदी वोट जले थे. 2014 में इस सीट पर NOTA को 4739 वोट गए थे. इस सीट पर 27 फीसदी मुस्लिम वोटर मौजूद हैं.

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मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल पांच विधानसभाएं आती हैं. इनमें बुढ़ाना, चरथावल, मुजफ्फरनगर, खतौली, सरधना सीट आती हैं. ये पांचों ही सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में हैं. इनमें सरधना सीट से ठाकुर संगीत सोम विधायक हैं, जो अपने बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं.

2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे

2014 में उत्तर प्रदेश में चली भारतीय जनता पार्टी की लहर का असर मुजफ्फरनगर में भी देखने को मिला था. संजीव बालियान ने इस सीट पर करीब 60 फीसदी वोट हासिल किए थे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार कादिर राणा को सिर्फ 22 फीसदी वोट ही हासिल हुए थे. संजीव बालियान ने कादिर राणा को करीब 4 लाख वोटों से हराया था.

संजीव बालियान, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 653391, 59 फीसदी

कादिर राणा, बहुजन समाज पार्टी, कुल वोट मिले 252241, 22.8 फीसदी

वीरेंद्र सिंह, समाजवादी पार्टी, कुल वोट मिले 160810, 14.5 फीसदी

संजीव बालियान के बारे में

किसान बैकग्राउंड से आने वाले संजीव बालियान ने 2013 में राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं थीं. जब उनका नाम मुजफ्फरनगर दंगों में आया था, उनपर दंगों के दौरान भड़काऊ भाषण देने का आरोप था. उनपर आरोप था कि सितंबर 2013 में उन्होंने एक महापंचायत की थी, जिसके कारण इलाके में माहौल बिगड़ा था. बालियान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े जाट नेता हैं, 2017 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने नाराज जाटों को मनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी.

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संजीव बालियान के पास कुल 1 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है. इनमें 68 लाख चल और 39 लाख की अचल संपत्ति भी शामिल है. 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर उनके ऊपर कई मामले दर्ज हैं.

16वीं लोकसभा में संजीव बालियान ने कुल 52 चर्चाओं में हिस्सा लिया, इस दौरान उन्होंने 4 सवाल पूछे और 1 प्राइवेट बिल पेश किया. संजीव बालियान ने मोदी कैबिनेट में कई जिम्मेदारियां निभाईं. शुरू में वह कृषि राज्य मंत्री रहे जिसके बाद उन्हें जल राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई. हालांकि, 2017 में हुए कैबिनेट विस्तार में उन्हें मंत्रिमंडल से निकाल दिया गया. अभी वह संसद में सुरक्षा मामलों से जुड़ी स्टैंडिंग कमेटी का हिस्सा हैं.

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