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चुनावी तल्खी के बीच मिले मोदी-नवीन पटनायक, हाथ मिलाए, क्या दिल भी मिलेंगे?

ओडिशा में इस बार लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा के लिए मतदान हो रहा है. भारतीय जनता पार्टी इस बार ओडिशा में पूरी जान लगाकर मैदान में टक्कर दे रही है.

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ओडिशा में मिले पीएम मोदी और नवीन पटनायक
ओडिशा में मिले पीएम मोदी और नवीन पटनायक

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मौका तो चक्रवाती तूफान ‘फानी’ से हुए नुकसान के जायजा लेने का था, लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गईं. सोमवार सुबह जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओडिशा में हुए नुकसान का जायजा लेने भुवनेश्वर पहुंचे तो एयरपोर्ट पर राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने उनका स्वागत किया. नवीन पटनायक ने पीएम मोदी से हाथ मिलाया और एक गमछा पहनाया, चंद सेकेंड के लिए दोनों के बीच बातचीत भी हुई, बस इसी तस्वीर ने कई राजनीतिक अटकलों को तेज कर दिया.

ओडिशा में इस बार लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा के लिए मतदान हो रहा है. भारतीय जनता पार्टी इस बार ओडिशा में पूरी जान लगाकर मैदान में टक्कर दे रही है. राज्य की 21 सीटों पर बीजेपी का लक्ष्य अधिक से अधिक सीट जीतने का है, तो वहीं राज्य में विधानसभा चुनाव में भी बीजद को बड़ा नुकसान पहुंचाने की तैयारी है. इस बीच दोनों नेताओं की इस तस्वीर ने कई नए आयामों को जन्म दिया है.

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चुनाव प्रचार के बीच दोनों नेताओं के बीच बड़ी तल्खी देखने को मिली थी, प्रधानमंत्री मोदी ने ओडिशा में अपनी रैलियों के दौरान कई बार नवीन पटनायक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और कहा कि बीजद वाले बौखलाहट में मुझे गालियां दे रहे हैं. वहीं, नवीन पटनायक ने भी कई बार पीएम मोदी पर तीखा पलटवार किया था.

ना सिर्फ बयानबाजी बल्कि चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान बीजद के कई नेता बीजेपी में शामिल हुए थे. जिसके बाद बीजद ने बीजेपी पर नेताओं को डराने-धमकाने का भी आरोप लगाया था.

नरम रुख के क्या मायने हैं?

पिछले कुछ दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कई नरम रुख देखने को मिले हैं. आज नवीन पटनायक से मुलाकात हो या फिर कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश की रैली में बसपा प्रमुख मायावती को लेकर नरम रुख अपनाया था. पीएम मोदी ने कहा था कि कांग्रेस-सपा ने साथ में मिलकर मायावती को धोखा दिया है, सपा ने गठबंधन तो बसपा के साथ किया लेकिन साथ कांग्रेस का दिया जा रहा है.

दरअसल, मतदान से पहले आए कई एग्जिट पोल में ऐसा दिखाया गया था कि बीजेपी इस बार अकेले दम पर सत्ता में नहीं आ रही है और ना ही एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलता है. ऐसे में इस नरम रुख के जरिए 23 मई के बाद की तैयारी की जा रही है जहां अगर किसी नए सहयोगी की जरूरत पड़ती है तो उसे साथ में लाया जा सके.

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