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मोदी लहर में पहली बार मुरादाबाद से जीती थी बीजेपी, अब सपा-बसपा गठबंधन बना चुनौती

1952 के बाद से अधिकतर चुनाव में यह सीट वैचारिक तौर पर बीजेपी के विरोधी दलों के खाते में जाती रही है, खासकर समाजवादी पार्टी की स्थिति यहां काफी मजबूत रही है. लेकिन 2014 में कुंवर सर्वेश कुमार सिंह ने बीजेपी के टिकट पर जीत दर्ज कर यहां पार्टी का खाता खुलवाया था. अब बीजेपी के सामने गठबंधन से मुकाबला लड़ते हुए इस सीट को बचाने की चुनौती है.

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आज मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र में पीएम नरेंद्र मोदी की कुंवर सर्वेश कुमार के पक्ष में रैली
आज मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र में पीएम नरेंद्र मोदी की कुंवर सर्वेश कुमार के पक्ष में रैली

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2014 के लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा तो पार्टी को देश की ऐसी तमाम सीटों पर जीत मिली, जहां उसने पहले कभी विजय प्राप्त नहीं की थी. ऐसी ही एक लोकसभा सीट है पश्चिम उत्तर प्रदेश की मुरादाबाद, जो कांग्रेस व समाजवादी पार्टी का गढ़ रही है. लेकिन मोदी लहर में इस मुस्लिम बाहुल्य सीट पर भी भगवा रंग चढ़ गया. अब गठबंधन से मुकाबला लड़ रही बीजेपी के सामने 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट को बचाने की चुनौती है और इसी कड़ी में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं यहां जनसभा करने जा रहे हैं.

मुरादाबाद उन सीटों में शुमार है, जहां गठबंधन के साथ ही कांग्रेस ने भी अपना मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारा है. ऐसे में यह देखना भी दिलचस्प होगा कि पीएम मोदी अपनी जनसभा में क्या रुख अपनाते हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र में सत्ता की चाबी मुस्लिम वोटरों के हाथ में मानी जाती है.

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सीट का समीकरण

इस लोकसभा सीट पर करीब 52.14% हिंदू और 47.12% मुस्लिम जनसंख्या है. मुरादाबाद शहर में ही मुस्लिम आबादी का बड़ा प्रभाव है, जहां दो विधानसभा हैं. इसके अलावा इस सीट के अंतर्गत आने वाली बिजनौर जिले की बढ़ापुर विधानसभा सीट पर मुस्लिम वोटरों का खासा प्रभाव है. मुस्लिम वोटरों का असर 2017 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला था, जब बीजेपी की एकतरफा जीत के बावजूद मुरादाबाद ग्रामीण व ठाकुरद्वारा सीट पर समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की थी. इसके अलावा यहां की बाकी सीटों पर भी बीजेपी की जीत का अंतर काफी कम रहा था. यही वजह रही है कि बीजेपी का इस सीट पर जीत हासिल करने हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है.

लेकिन 2014 में मोदी लहर के बीच यहां के स्थानीय कद्दावर नेता कुंवर सर्वेश सिंह ने बाजी मारते हुए इतिहास रचा था, जो मुरादाबाद लोकसभा सीट पर बीजेपी की पहली जीत थी. इससे पहले हालांकि, दो बार (1967 व 1971) भारतीय जनसंघ को जरूर यहां से जीत मिली, लेकिन 1952 के बाद से अधिकतर चुनाव में यह सीट वैचारिक तौर पर बीजेपी के विरोधी दलों के खाते में जाती रही है, खासकर समाजवादी पार्टी की स्थिति यहां काफी मजबूत रही है.

kunwar-sarvesh-campaign_041419095007.jpgचुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी प्रत्याशी कुंवर सर्वेश कुमार सिंह

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तीन बार जीत चुकी है सपा

1996, 1998 व 2004 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से सपा के टिकट पर इलाके के बड़े नेता शफीकुर्रहमान बर्क ने जीत दर्ज की थी. जबकि 2009 में काफी अरसे के बाद पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन ने यहां कांग्रेस की वापसी कराई थी. वैसे ही नतीजों की आस में कांग्रेस ने एक बार फिर मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी के रूप में एक मुस्लिम स्टार कैंडिडेट इस सीट से उतारा है, जबकि गठबंधन के खाते से सपा प्रत्याशी के रूप में वरिष्ठ नेता एसटी हसन मुकाबले में हैं.

इन दोनों नेताओं के सामने बीजेपी प्रत्याशी और सिटिंग सांसद कुंवर सर्वेश सिंह के रूप में बड़ी चुनौती है. 2014 में भले ही बीजेपी ने यह सीट बीजेपी लहर में पहली बार जीती हो, लेकिन इस चुनाव में मुस्लिम वोटरों का बंटवारा कुंवर सर्वेश को अपने पक्ष में आता नजर आ रहा है.

दूसरी तरफ बसपा का साथ आना सपा को अपनी मजबूती दिखाई दे रहा है. इसकी वजह शायद  2014 के चुनाव नतीजे हैं, जिसके तहत कुंवर सर्वेश कुमार सिंह को 4,85,224 वोट, सपा प्रत्याशी एसटी हसन को 3,97,720 वोट और बसपा प्रत्याशी हाजी मोहम्मद याकूब को 1,60,945 वोट मिले थे. यानी सपा प्रत्याशी एसटी हसन की हार करीब 87 हजार मतों से हुई थी, जबकि बसपा प्रत्याशी को डेढ़ लाख से ज्यादा मत मिले थे. यही समीकरण सपा को अपने पक्ष में नजर आ रहे हैं. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी इमरान प्रतापगढ़ी द्वारा मुस्लिम मतों में 'सेंधमारी' को बीजेपी अपने लिए जीत को और बल देना वाला मान रही है.

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ऐसे में देखना होगा कि सपा-बसपा गठबंधन के बाद दिलचस्प बनी इस लड़ाई में क्या कांग्रेस प्रत्याशी से बीजेपी को लाभ मिल पाता है या बसपा का साथ मिलने के बाद सपा अपनी इस परंपरागत सीट को फिर से पाने में सफल रहती है.

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