एयर स्ट्राइक के बाद कांग्रेस और दूसरे दलों ने कुछ देर के लिए चुप्पी साध ली, लेकिन ममता बनर्जी ने बीजेपी के खिलाफ आवाज बुलंद रखी. वह लगातार ऐसा गठबंधन बनाने का प्रयास करती रहीं जिससे बीजेपी को हराया जा सके. दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन भले ही न हो पाया हो मगर ममता का प्रयास रहा है कि दोनों दल साथ लड़ते तो बीजेपी को हराना आसान होता.
तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ पूरे विपक्ष को एक साथ साझा मंच पर लाने के लिए काम कर रही हैं. जनवरी में उन्होंने कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में विशाल रैली का आयोजन किया. यहां तक कि केंद्र की मोदी सरकार से दो-दो हाथ करते हुए सीबीआई की कार्रवाई के खिलाफ वह धरने पर भी बैठ गईं. इस तरह वह विपक्ष को एकजुट करने वाली मुख्य नेता के रूप में उभरीं.
ममता बनर्जी ने एक बार फिर दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन कराने की कोशिश की. हालांकि वह इसमें नाकाम रहीं और कांग्रेस ने राष्ट्रीय राजधानी में अकेले दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. हालांकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस अब क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं करेगी. अगर क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस के साथ हाथ मिलाती हैं तो उन्हें बहुत कुछ हासिल हो सकता है.
बीजेपी को बेदखल करने की कोशिश
बहरहाल, तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि ममता बनर्जी कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के लिए पूरी तरह से सक्रिय थीं और बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए चाहती थीं कि दिल्ली में यह गठबंधन ठोस आकार ले ले. वह इसके लिए कांग्रेस आलाकमान और आम आदमी पार्टी से लगातार फोन पर बात करती रहीं. तृणमूल बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए कोई भी मौका गंवाना नहीं चाहती है. ममता बनर्जी का यह प्रयास सिर्फ अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी तक सीमित नहीं है बल्कि वह महाराष्ट्र में शरद पवार और आंध्र प्रदेश में चंद्र बाबू नायडू को भी इसके लिए मनाने की कोशिश में लगी रहीं.
रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं
ममता बनर्जी गैर एनडीए दलों के प्रमुखों को लगातार फोन कर रही हैं. वह क्षेत्रीय पार्टियों को सीट बंटवारे पर आम सहमति बनाने के लिए राजी करने की पूरी कोशिश कर रही हैं. उनकी कोशिश है कि पार्टियां मतभेद भूलाकर एक साथ आ जाएं ताकि बीजेपी विरोधी वोटों में बंटवारे को रोका जा सके. ममता बनर्जी के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करना इतना आसान भी नहीं है. हाल के दिनों में बंगाल में माकपा और कांग्रेस नेतृत्व के साथ अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी अपने-अपने गढ़ों में सीट बंटवारे पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं. हालांकि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल में वैचारिक स्तर पर काफी तालमेल है, लेकिन जैसे ही ममता गठबंधन के लिए कांग्रेस का नंबर डायल करती हैं वह 'बिजी' मोड में चला जाता है.