गांधी परिवार में जन्म लेने के बावजूद खुद को सक्रिय राजनीति से दूर रखने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा अब फुल टाइम पॉलिटिक्स में आ गई हैं. 2018 में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलने के बाद राहुल गांधी ने 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी छोटी बहन प्रियंका को पार्टी में महासचिव बनाने का निर्णय लिया है.
कांग्रेस पार्टी के इस फैसले को जहां भारतीय जनता पार्टी ने परिवारवाद से जोड़ दिया है, वहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भारी जोश नजर आ रहा है. लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका की एंट्री को मास्टरस्ट्रोक के तौर पर भी देखा जा रहा है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि वह एक कुशल मैनेजर, मजबूत कैंपेनर और बेहतरीन आर्किटेक्ट की भूमिका निभाती रही हैं.
कुशल मैनेजर
47 साल की प्रियंका गांधी वाड्रा अभी तक खुद को कांग्रेस की गतिविधियों से अलग रखते हुए अपने परिवार के लिए काम करती रही हैं. खासकर मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली व अमेठी में उनकी भूमिका व सक्रियता काफी अहम मानी जाती है. 1998 में मां सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद प्रियंका गांधी प्रमुखता से सामने आईं.
1999 के आम चुनाव में सोनिया गांधी यूपी के अमेठी और कर्नाटक के बेल्लारी सीट से एक साथ लोकसभा चुनाव मैदान में उतरीं. सोनिया के दो सीटों से चुनावी मैदान में होने के चलते प्रियंका ने अमेठी के प्रचार की कमान संभाली. इस चुनाव के वक्त प्रियंका की उम्र 28 साल थी और उन्होंने अपनी मां के लिए जमकर चुनाव प्रचार किया. इसी दौरान अमेठी से लगी हुई रायबरेली सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव लड़ रहे थे. उनके खिलाफ बीजेपी के अरुण नेहरू मैदान में थे, जिनके पक्ष में जबर्दस्त माहौल नजर आ रहा था. प्रियंका ने चुनाव प्रचार के आखिरी दिन कैप्टन सतीश शर्मा के पक्ष में प्रचार करके अरुण नेहरू को जीत से महरूम कर दिया. उन्होंने प्रचार के दौरान बस एक ही बात कही थी कि आप लोगों ने इस गद्दार को चुनाव जिताएंगे, जिसने गांधी परिवार को साथ धोखा किया है.
हालांकि, इससे पहले वह अपने पिता राजीव गांधी के साथ भी अमेठी आती रही हैं. 2004 के लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट राहुल गांधी के लिए छोड़ दी गई और सोनिया गांधी अपनी सास यानी इंदिरा गांधी की सीट रायबरेली से चुनाव लड़ने पहुंच गईं. इस चुनाव में प्रियंका ने अमेठी और रायबरेली दोनों क्षेत्रों में प्रचार किया.
रायबरेली और अमेठी को लेकर प्रियंका गांधी की सक्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अभी भी हर हफ्ते रायबरेली क्षेत्र के लोग दिल्ली आते हैं और प्रियंका गांधी उनसे मुलाकात करती हैं. वह अक्सर रायबरेली का दौरा करती रहती हैं. जबकि चुनाव के वक्त वहां डेरा जमा लेती हैं. रायबरेली और अमेठी के लिए कांग्रेस पार्टी एक अलग रणनीति के तहत विधानसभा और ब्लॉक स्तर पर संगठन के काम का बंटवारा करती है और प्रियंका गांधी स्वयं इस सब पर नजर रखती हैं. इसके अलावा दोनों संसदीय सीट पर पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक में वो टिकट का फैसला करती हैं.
कहा जाता है कि मां और भाई के चुनावी क्षेत्रों में आने वाली हर मुश्किल का सामना करने के लिए वह स्वयं मोर्चा संभालती हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में इसका उदाहरण भी देखने को मिला जब मोदी लहर के बीच बीजेपी ने मशहूर टीवी एक्ट्रेस रहीं स्मृति ईरानी को अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव में उतार दिया. विरोधी महिला उम्मीदवार की काट के लिए प्रियंका गांधी ने अमेठी में जमकर चुनाव प्रचार किया और अपने भाई की जीत सुनिश्चित की.
मजबूत कैंपेनर
प्रियंका गांधी को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अक्स के तौर पर देखा जाता है. सख्त छवि और कड़े फैसले लेने की क्षमता के साथ प्रभावशाली भाषण देने वाली इंदिरा गांधी की तरह प्रियंका गांधी को भी बेहतर वक्ता के तौर पर ख्याति प्राप्त है. इसके अलावा उनका स्टाइल भी अपनी दादी और पूर्व पीएम इंदिरा की तरह नजर आता है. देश के सबसे बड़े परिवार में जन्म लेने वाली प्रियंका गांधी के अंदाज और बातचीत के लहजे में सुनने वाले जुड़ाव महसूस करते हैं. वो बेहतर ढंग से हिंदी बोल लेती हैं. यहां तक कि मंचों से भाषण देते वक्त भी वह बहुत ही सहज नजर आती हैं. वह बिना कोई स्क्रिप्ट देखे भाषण देती हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए उन्होंने गुजरात मॉडल पर तंज किया था. प्रियंका ने कहा गुजरात मॉडल में कौड़ियों के दाम पर हजारों एकड़ जमीन दोस्तों को दे दी गई. लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी और नेताओं की तरफ से प्रचार के लिए प्रियंका वाड्रा की मांग मजबूती से की जाती है.
बेहतरीन आर्किटेक्ट
2017 का यूपी विधानसभा चुनाव कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने मिलकर लड़ा. हालांकि, चुनाव नतीजे दोनों ही पार्टियों के लिए मुफीद नहीं रहे, लेकिन राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच गठबंधन के पीछे प्रियंका गांधी का नाम सामने आया. मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात सामने आईं कि राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और प्रशांत किशोर की मीटिंग में प्रियंका ने सपा से गठबंधन को जरूरी बताया था. यहां तक कि गठबंधन की बातचीत के बीच जब सीटों का बंटवारा फाइनल नहीं हो पा रहा था, उस वक्त भी प्रियंका गांधी ने अपने किसी भरोसेमंद नेता को यूपी प्रभारी गुलाम नबी आजाद के साथ अखिलेश यादव से मुलाकात के लिए भेजा था.
अब जबकि 2019 में मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का नारा बुलंद करने वाले विपक्षी दलों में चुनाव जीतने की स्थिति में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर कंफ्यूजन और रस्साकशी नजर आ रही है. साथ ही विपक्षी खेमे में राहुल गांधी के नेतृत्व की स्वीकार्यता को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, ऐसे में प्रियंका वाड्रा की गठजोड़ की कुशलता का असर भी देखने को मिल सकता है.