Election Results 2019: हरियाणा की जाट बहुल रोहतक लोकसभा सीट पर इस बार दिलचस्प चुनाव देखने को मिला. यहां से जाट प्रत्याशी के ही जीतने के मिथक को बीजेपी ने धराशायी कर दिया. लोकसभा चुनाव के इतिहास में अब तक इस सीट पर किसी दल ने गैर जाट उम्मीदवार खड़ा करने का रिस्क नहीं लिया था, मगर बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में गैर जाट कार्ड चलते हुए पहली बार सीट पर कमल खिलाया है. हरियाणा के प्रभावशाली 'हुड्डा घराने' का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट से तीन बार के कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा को बीजेपी के डॉ. अरविंद शर्मा के हाथों रोमांचक मुकाबले में हार झेलनी पड़ी है.
सीट पर लड़ाई इतनी रोचक थी कि नतीजों के लिए 24 मई की सुबह चार बजे तक समर्थकों को इंतजार करना पड़ा. आखिरी वक्त में जीत-हार का फैसला हुआ. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा को रोमांचक मुकाबले में शर्मा ने 7,503 वोटों के अंतर से हराया है.
रोहतक मे अब तक हुए लोकसभा चुनाव में दस बार कांग्रेस को जीत मिली है. जिसमें आठ बार हुड्डा घराने के सदस्य ही यहां से चुने गए. बीजेपी की यह जीत इस मायने में भी खास मानी जा रही है, क्योंकि यहां अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए 2005-14 के बीच मुख्यमंत्री रहने के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा काफी बजट खर्च किए थे. जिससे लगातार वे जीतते रहे. 2004 तक सांसद रहे भूपेंद्र हुड्डा जब 2005 से मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने सीट बेटे दीपेंद्र के हवाले कर दी.जिसके बाद से वह लगातार जीतते रहे.
जाट बाहुल्य सीट पर हुड्डा घराने की मजबूत पकड़ की वजह से 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां प्रचंड मोदी लहर फेल हो गई थी. तब कांग्रेस प्रत्याशी दीपेंद्र हुड्डा ने यहां बीजेपी को 1.70 लाख वोटों से हराया था. मगर इस बार बीजेपी की अचूक रणनीति से कांग्रेस को इस इकलौती बची सीट पर भी हार झेलनी पड़ी.
कैसे जीती बीजेपी?
रोहतक में कुल 16.66 लाख वोटर्स में छह लाख से अधिक जाट मतदाताओं की संख्या को देखते हुए यह मिथक कायम था कि यहां से जाट प्रत्याशी ही जीतेगा. मगर बीजेपी ने एक रणनीति के तहत इस बार गैर जाट कार्ड खेलकर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की, यह दांव सफल भी रहा. बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना था कि जाटों के वोट पर हुड्डा परिवार की मजबूत पकड़ है, ऐसे में गैर जाट उम्मीदवार खड़ा कर गैर जाट वोटों पर फोकस करना जरूरी है.
चुनाव मे मोदी लहर की वजह से जहां बीजेपी कुछ जाट वोटबैंक में भी सेंध लगाने में सफल रही, वहीं गैर जाट वोटर्स पार्टी की छतरी तले एकजुट हो गए. रोहतक के जातीय समीकरण देखें तो यहां जाटों के बाद सबसे ज्यादा चार लाख दलित हैं, इसके अलावा करीब दो लाख यादव व अन्य जातियों के वोटर हैं. गैर जाटों के एकजुट होकर बीजेपी को वोट करने से जाट बहुल इस सीट पर कांग्रेस तीन बार के सांसद दीपेंद्र हुड्डा अपनी सीट नहीं बचा सके.
अरविंद यादव की अचूक रणनीति
बीजेपी ने हरियाणा के प्रदेश उपाध्यक्ष अरविंद यादव को रोहतक में हुड्डा परिवार का गढ़ ध्वस्त करने के लिए मोर्चे पर लगाया. 30 साल से अधिक समय से रोहतक से नाता रखने वाले अरविंद यादव ने चुनाव का पूरा ब्लूप्रिंट तैयार किया. अरविंद के प्लान ने रोहतक में नया चेहरा होने के बावजूद पेशे से चिकित्सक अरविंद शर्मा की जीत की राह आसान कर दी. aajtak.in से बातचीत में अरविंद यादव ने इस जीत का पूरा श्रेय मोदी लहर और राज्य की खट्टर सरकार के विकास कार्यों को दिया.
उन्होंने कहा कि भले ही अरविंद शर्मा के लिए रोहतक का क्षेत्र नया रहा, मगर उन्होंने सुबह छह से लेकर रात दो बजे तक सक्रिय रहकर संसदीय सीट के 80 से 85 प्रतिशत इलाकों में मौजूदगी दर्ज कराई.यह अपने आप में रिकॉर्ड है. पोलिंग के आखिरी दिनों में जनता उनके पक्ष में झुक गई और नतीजा आज सामने है. दो बार जनसंघ की जीत छोड़ दें तो यहां बीजेपी को पहली बार विजय मिली है. अरविंद यादव के मुताबिक केंद्र और राज्य दोनों में बीजेपी सरकार होने से इस बार 'प्रो-इन्कमबेंसी लहर' थी. खट्टर सरकार ने जिस तरह से नौकरियों में पारदर्शिता सुनिश्चित की, उससे जनता को लगा कि इस बार जाति-धर्म और क्षेत्र से परे हटकर वोट दिया जाए.
तीन दशक में सिर्फ दो बार हारा हुड्डा परिवार
रोहतक की लोकसभा सीट पर पिछले तीन दशक में यह दूसरी बार है, जब हुड्डा परिवार को हार मिली. 1991, 96, 98 तक भूपेंद्र हुड्डा लगातार लोकसभा चुनाव जीतते रहे. फिर 1999 में बीजेपी- इनेलो गठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा.तब इनेलो सीट पर कैप्टन इंदर सिंह ने भूपेंद्र हुड्डा को हराने में सफल हुए थे. उस वक्त भी अरविंद यादव चुनाव संचालक थे. मगर इसके बाद 2004 से 2014 तक फिर सीट पर हुड्डा परिवार का कब्जा रहा.
अब 2019 में यहां बीजेपी की जीत हुई है. बता दें कि आजादी के बाद हुए पहले चुनाव1951-52 से लेकर 1957 और फिर 1967 के चुनाव में भी रोहतक सीट पर हुड्डा परिवार के रणबीर सिंह जीते थे. सिर्फ 1962, 1971 में इस सीट पर जनसंघ और 1977, 1980 में जनता पार्टी और 1989 में समाजवादी पार्टी से चौधरी देवीलाल ही हुड्डा परिवार से अलग चुनाव जीतने में सफल हुए थे.