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संघ का मिशन 2019: भागवत 7 दिन कानपुर में रहकर टटोलेंगे यूपी की सियासी नब्ज

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत उत्तर प्रदेश के सियासी नब्ज को टटोलने के लिए सप्ताह भर कानपुर में प्रवास करेंगे. इसी बीच, भागवत कानपुर से ही प्रयाग में होने वाले धर्म संसद में भी हिस्सा लेने जाएंगे.

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (फोटो-twitter)
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (फोटो-twitter)

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लोकसभा चुनाव 2019 की सियासी सरगर्मी के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत उत्तर प्रदेश के सियासी नब्ज को टटोलने के लिए सप्ताह भर कानपुर में प्रवास करेंगे. इसी बीच, भागवत कानपुर से ही प्रयाग में होने वाले धर्म संसद में भी हिस्सा लेने जाएंगे. हाल ही में यूपी में हुए सपा-बसपा गठबंधन बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानी जा रही है. ऐसे में इस गठबंधन से निबटने के लिए संघ सात दिनों तक मंथन करेगा और जातीय समरसता के लिए अपना अभियान तेज कर सकता है.

संघ प्रमुख मोहन भागवत 23 जनवरी से लेकर 30 जनवरी तक कानपुर रहेंगे. इस दौरान संघ के मुख्य रूप से आयाम-सेवा विभाग, ग्राम विकास, कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, गो संवर्धन जैसे कार्यक्रमों की समीक्षा की जाएगी. संघ को इन अभियानों और कार्यक्रमों को अभी तक जो सफलता मिली है, उन्हें जन-जन तक पहुंचाने की रणनीति बनाई जाएगी. माना जाता है कि संघ के इन सामाजिक अभियानों का लाभ आने वाले चुनावों में बीजेपी को मिल सकता है.

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इसी के मद्देनजर लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन से निबटने के लिए संघ ने जमीनी स्तर पर काम शुरू कर दिया है. संघ प्रमुख के सात दिनों के यूपी प्रवास के दौरान जातीय समरसता पर मंथन करेंगे. दलित अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बीच काम कर रहे संघ के कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया जाएगा. माना जा रहा है कि संघ की कोशिश होगी कि सहभोज के कार्यक्रम को और व्यापक बनाया जाए और तमाम जातियों खासकर दलितों के साथ रोटी के संबंध और प्रगाढ़ हो.

कानपुर प्रवास के दौरान ही संघ प्रमुख मोहन भागवत प्रयागराज भी जाएंगे, जहां 2 दिनों के धर्म संसद में भी हिस्सा लेंगे. राम मंदिर निर्माण के लिए धर्म संसद सबसे अहम बैठक है, जिसमें विश्व हिंदू परिषद से जुड़े तमाम साधु-संत शामिल होंगे. इसी धर्म संसद से कुंभ के दौरान ही राम मंदिर पर बड़ा ऐलान किया जा सकता है. वीएचपी पहले ही ऐलान कर चुकी है कि राम मंदिर पर कुंभ में होने वाले धर्म संसद में बड़ा और अंतिम फैसला लिया जा सकता है.

बता दें कि 2014 लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता में बीजेपी के विराजमान होने में सबसे अहम भूमिका उत्तर प्रदेश की रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के बाद सूबे में पिछले चुनाव जैसे नतीजे दोहराने की बड़ी चुनौती है.

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