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अगर सपा की इस दुखती रग पर रखा कांग्रेस ने हाथ तो अमेठी-रायबरेली में उतरेंगे कैंडिडेट

सपा-बसपा ने तय कर लिया है कि अगर अब कांग्रेस ने दूसरी दुखती रग 'शिवपाल यादव' पर कांग्रेस ने हाथ रखा तो अमेठी-रायबरेली दोनों सीटों पर गठबंधन चुनाव लड़ने का कदम उठा सकता है.

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राहुल गांधी और सोनिया गांधी (फाइल-PTI)
राहुल गांधी और सोनिया गांधी (फाइल-PTI)

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कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी का दलित नेता व भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर से मुलाकात करना कई लोगों की नजर में प्रियंका का यह कदम बसपा की दुखती रग पर हाथ रखने जैसा था. इस मुलाकात के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का मन बना लिया था, लेकिन बाद में गठबंधन ने इस फैसले को फिलहाल के लिए टाल दिया है. हालांकि, सपा-बसपा ने तय कर लिया है कि अगर अब कांग्रेस ने दूसरी दुखती रग 'शिवपाल यादव' पर कांग्रेस ने हाथ रखा तो अमेठी-रायबरेली दोनों सीटों पर गठबंधन चुनाव लड़ने का कदम उठा सकता है.

बता दें कि प्रियंका गांधी वाड्रा के दलित नेता चंद्रशेखर आजाद से बुधवार को मिलने के फौरन बाद मायावती और अखिलेश यादव की अचानक हुई बैठक ने कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी. नाराज मायावती अमेठी और रायबरेली में अपने उम्मीदवार उतारकर इसका बदला लेना चाहती थी, लेकिन फिलहाल गठबंधन अभी पुराने फॉर्मूले पर ही चुनाव लड़ेगा.

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अखिलेश और मायावती के बीच हुई मीटिंग में यह बात भी तय हुई कि फिलहाल कांग्रेस को 2 सीटों के साथ गठबंधन का हिस्सा ही कहा जाए. लेकिन सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस के अगले कदमों को लेकर सतर्क है और उसने वेट एंड वॉच की रणनीति अपना रखी है. सपा सूत्रों ने बताया कि अगर कांग्रेस पार्टी ने शिवपाल यादव से किसी भी तरह का गठबंधन करने का फैसला करती है तो अमेठी और रायबरेली की संसदीय सीटों पर राहुल गांधी-सोनिया गांधी के खिलाफ उम्मीदवार उतारने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा.

इसका मतलब साफ है कि प्रियंका गांधी ने चंद्रशेखर से मिलकर बसपा के दुखती रग पर हाथ रखा दिया था. ऐसे में कांग्रेस ने शिवपाल यादव के साथ गठबंधन किया तो अमेठी और रायबरेली में भी कांग्रेस को गठबंधन के उम्मीदवार झेलने होंगे. दरअसल, अमेठी और रायबरेली कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ रहा है. इस बार के चुनाव में अमेठी में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है.

ऐसे में सपा-बसपा को मालूम है वहां कांग्रेस पार्टी रिस्क लेने की जहमत नहीं उठा सकती है. पार्टी के नेताओं के मुताबिक यह कोई ब्लैकमेल नहीं बल्कि रणनीति का हिस्सा है और पार्टी ने फिलहाल कांग्रेस को ज्यादा तवज्जो नही देने की रणनीति बना रखी है.

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