उत्तर प्रदेश में गोमती किनारे बसे सुल्तानपुर की सल्तनत पर लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा है, लेकिन रायबरेली और अमेठी की तरह कभी इसे वीवीआईपी सीट की अहमियत नहीं मिल सकी. इस सीट पर कांग्रेस से लेकर जनता दल, बीजेपी और बसपा जीत का परचम लहराने में कामयाब रही हैं. लेकिन समाजवादी पार्टी इस सीट पर कभी भी जीत का स्वाद नहीं चख सकी है.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के दुर्ग से सटे हुए क्षेत्र से 'गांधी परिवार' के वारिस वरुण गांधी को उतारकर इसे हाई प्रोफाइल तो बनाया. साथ ही साथ 16 साल के अपने सूखे को भी खत्म कर कमल खिलाने में कामयाब रही.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
आजादी के बाद से सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर अभी तक 16 लोकसभा चुनाव और 3 उपचुनाव हुए हैं. 1951 से 1971 तक जनसंघ ने कांग्रेस से सीट छीनने की कोशिश तो बहुत की लेकिन कभी कामयाब नहीं हो सकी. कांग्रेस को पहली बार सफलता 1977 में मिली. पहली बार इस सीट से 1951 में कांग्रेस के बीवी केसकर जीतकर सांसद पहुंचे. इसके बाद 1957 में गोविन्द मालवीय, 1962 में कुंवर कृष्णा वर्मा, 1967 में गनपत सहाय और 1971 में केदार नाथ सिंह चुनाव जीतने में कामयाब रहे.
कांग्रेस को पहली बार मिली हार
सुल्तानपुर सीट पर 1977 में कांग्रेस को पहली हार का मुंह देखना पड़ा, जब जनता पार्टी के ज़ुलफिकुंरुल्ला कांग्रेस को हराकर सांसद बने. हालांकि, इस सीट पर 1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की और 1984 में दोबारा जीत मिली. लेकिन इसके बाद कांग्रेस को इस सीट पर जीत के लिए काफी सालों तक इंतेजार करना पड़ा 2009 में कांग्रेस से संजय सिंह ने जीतकर सूखा खत्म किया.
बीजेपी का खुला खाता
साल 1989 में जनता दल से रामसिंह सांसद बने. 90 के दशक में राममंदिर आंदोलन के दौर में बीजेपी ने इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब रही थी. 1991 से लेकर 2014 के बीच बीजेपी ने चार बार जीत हासिल की है. 1991 और 1996 में विश्ननाथ शास्त्री जीते, 1998 में देवेन्द्र बहादुर और 2014 में वरुण गांधी. वहीं, बसपा इस सीट पर दो बार जीत हासिल की है, लेकिन दोनों बार सांसद अलग रहे हैं. पहली बार 1999 में जय भद्र सिंह और 2004 में मोहम्मद ताहिर खान बसपा से सांसद चुने गए.
सुल्तानपुर सीट का वोटिंग पैटर्न
सुल्तानपुर लोकसभा सीट की अपनी एक खासियत है. बीजेपी के विश्वनाथ शास्त्री को छोड़ दे तो दूसरा कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो इस सीट पर दूसरी बार सांसद बनने में कामयाब रहा हो. यही वजह रही कि इस सीट पर किसी एक नेता का कभी दबदबा नहीं रहा है. आजादी के बाद कांग्रेस यहां 8 बार जीती, लेकिन हर बार चेहरे अलग रहे. इसी तरह से बसपा दो बार जीती और दोनों बार अलग-अलग थे. जबकि बीजेपी चार बार जीती जिसमें तीन चार चेहरे शामिल रहे.
सामाजिक ताना-बाना
सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर 2011 के जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या 2352034 है. इसमें 93.75 फीसदी ग्रामीण औैर 6.25 शहरी आबादी है. अनुसूचित जाति की आबादी इस सीट पर 21.29 फीसदी हैं और अनुसूचित जनजाति की आबादी .02 फीसदी है. इसके अलावा मुस्लिम, ठाकुर और ब्राह्मण मततादाओं के अलावा ओबीसी की बड़ी आबादी इस क्षेत्र में हार जीत तय करने में अहम भूमिका रही है. यह जिला फैजाबाद मंडल का हिस्सा है.
पांच में चार बीजेपी का कब्जा
गोमती किनारे बसे सुल्तानपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें इसौली, सुल्तानपुर, सदर, कादीपुर (सुरक्षित) और लम्भुआ सीटें आती हैं. मौजूदा समय में इनमें चार सीटों पर बीजेपी का कब्जा हैं और महज एक सीट इसौली सपा के पास है.
2014 का जनादेश2014 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर सीट पर 56.64 फीसदी मतदान हुए थे. इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार वरुण गांधी ने बसपा उम्मीदवार को 1 लाख 78 हजार 902 वोटों से मात दी थी. इस तरह 1998 के बाद बीजेपी इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब हुई थी. वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा सकी थी.
बीजेपी के वरुण गांधी को 4,10,348 वोट मिले
बसपा के पवन पांडेय को 2,31,446 वोट मिले
सपा के शकील अहमद को 2,28,144 वोट मिले
कांग्रेस के अमित सिंह को 41,983 वोट मिले
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
सुल्तानपुर लोकसभा सीट से 2014 में जीते वरुण गांधी का लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन रहा है. पांच साल चले सदन के 321 दिन में वो 239 दिन उपस्थित रहे. इस दौरान उन्होंने 416 सवाल उठाए और 16 बहसों में हिस्सा लिया. दिलचस्प बात ये है कि वरुण गांधी 9 बार निजी विधेयक लेकर आए. इतना ही नहीं उन्होंने पांच साल में मिले 25 करोड़ सांसद निधि में से 21.36 करोड़ रुपये विकास कार्यों पर खर्च किया.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
सुल्तानपुर लोकसभा सीट से 2014 में जीते वरुण गांधी का लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन रहा है. पांच साल चले सदन के 321 दिन में वो 239 दिन उपस्थित रहे. इस दौरान उन्होंने 416 सवाल उठाए और 16 बहसों में हिस्सा लिया. दिलचस्प बात ये है कि वरुण गांधी 9 बार निजी विधेयक लेकर आए. इतना ही नहीं उन्होंने पांच साल में मिले 25 करोड़ सांसद निधि में से 21.36 करोड़ रुपये विकास कार्यों पर खर्च किया.