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इलेक्टोरल बांड पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, बिक्री में आया 62% उछाल

सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की तरफ से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण से कहा था कि इस पर 2 अप्रैल को उपयुक्त पीठ मामले की सुनवाई करेगी.

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Electoral bond (file photo SC)
Electoral bond (file photo SC)

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सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सरकार की तरफ से जारी इलेक्टोरल बांड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होगी. इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ के सामने यह मामला सुनवाई के लिए आया था. पीठ ने याचिकाकर्ता एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की तरफ से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण से कहा था कि इस पर 2 अप्रैल को उपयुक्त पीठ मामले की सुनवाई करेगी.

एडीआर ने हाल में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर चुनावी बांड योजना, 2018 पर रोक लगाने की मांग की थी जिसे पिछले साल जनवरी में केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया था.

इस बीच लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी बांड की बिक्री में 62 प्रतिशत का जोरदार उछाल आया है. आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी से पता चलता है कि चुनावी बांड की बिक्री पिछले साल की तुलना में करीब 62 प्रतिशत बढ़ गई है. भारतीय स्टेट बैंक ने 1,700 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बांड बेचे हैं. पुणे के विहार दुर्वे की ओर से दायर आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में एसबीआई ने बताया कि 2018 में उसने मार्च, अप्रैल, मई, जुलाई, अक्टूबर और नवंबर के माह में 1,056.73 करोड़ रुपये के बांड बेचे.

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बता दें कि इलेक्टोरल बांड योजना को केंद्र सरकार ने 2018 में अधिसूचित किया था. जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29-A के तहत ऐसे राजनीतिक दल जिन्हें पिछले आम चुनाव या राज्य के विधानसभा चुनाव में एक प्रतिशत या उससे अधिक मत मिले हैं, इलेक्टोरल बांड प्राप्त करने के पात्र होते हैं. ये बांड 15 दिन के लिए वैध होते हैं और पात्र राजनीतिक दल इस अवधि में किसी अधिकृत बैंक में बैंक खाते के जरिये इन्हें भुना सकता है. चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले समूह एडीआर ने हाल में इन बांडों की बिक्री पर रोक की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. सीपीएम ने अलग याचिका में इसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी है.

केंद्र सरकार पॉलिटिकल फंडिंग में पारदर्शिता और साफ-सुथरा धन आने के दावे के साथ यह बॉन्ड लाई थी. लेकिन अभी इसके विपरीत 12 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नाराजगी जाहिर की थी. कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार ने नेताओं की अकूत संपत्ति पर रोक लगाने के लिए कोई स्थाई व्यवस्था बनाई है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल फरवरी में केंद्र सरकार को इस बारे में गंभीरता से कदम उठाने को कहा था.

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