लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तर प्रदेश की सियासी रण को जीतने के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन किया है. वहीं, बीजेपी सपा-बसपा गठबंधन की काट और दलितों के दिल में जगह बनाने के लिए सूबे के हर शहर में बीजेपी खिचड़ी भोज का आयोजन करने की रणनीति बनाई है. मंगलवार से बीजेपी दलित बस्तियों में खिचड़ी भोज की शुरुआत करने जा रही है और ये कार्यक्रम 25 फरवरी तक जारी चलेगा.
सूबे की सियासत में दलित समुदाय किंगमेकर की भूमिका में है. सूबे का 21 फीसदी दलित मतदाता प्रदेश से लेकर देश की सत्ता का फैसला करने में अहम भूमिका निभाता रहा है. बता दें कि 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी इन दलित मतों में सेंधमारी करके ही देश और प्रदेश की सत्ता पर विराजमान हुई थी.
ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर इन्हीं दलित समुदाय को साधने की योजना बनाई है. इसी रणनीति के तहत बीजेपी सूबे के अलग-अलग मंडलों में खिचड़ी भोज के जरिए दलितों को साधने की रणनीति बनाई है. बीजेपी अपने सभी 1471 तहसील मंडलों में आयोजन कर रही है. बीजेपी अनुसूचित मोर्चा के द्वारा ही खिचड़ी भोज दी जा रही है, जिसमें बीजेपी की ओर से दलित समुदाय के साथ-साथ सभी वर्गों को भी बुलाया गया है.
दरअसल, उत्तर प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी 17 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसी तरह सूबे के 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी कामयाब रही. प्रदेश में कुल 403 विधानसभा सीटों में से 86 सीटें आरक्षित हैं, जिसमें से बीजेपी 76 सीटें जीतने में सफल रही थी.
2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा गठबंधन के बाद सूबे की राजनीति हालात बदले हैं, जिससे बीजेपी का राजनीतिक समीकरण बिगड़ता हुआ नजर आ रहा है. इसके अलावा दलितों का एक बड़ा धड़ा लगातार आरोप लगा रहा है कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद दलित उत्पीड़न के मामले सूबे में बढ़े हैं. जबकि बीजेपी लगातार कहती रही है कि केंद्र और राज्य में सरकार के आने के बाद दलितों के हक में सबसे ज्यादा हमने काम किए हैं.
आरएसएस दलितों के गांवों में एक कुंआ, एक श्मशान और मंदिर प्रवेश को लेकर काम कर रही है. पिछले साल मेरठ में हुए आरएसएस के राष्ट्रोदय में संघ ने छुआछूत और जातीय भेद मिटाने का आह्रवान किया था. इसी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि केंद्र सरकार आंबेडकर के दिखाए रास्ते पर आगे बढ़ रही है. इस कसरत को दलित वोट का 2019 में साधने की रणनीति के तौर पर भी देखा गया था.