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तीसरे चरण में मुलायम कुनबे की परीक्षा, आसान नहीं परिवार की डगर

बदायूं सीट से सपा के टिकट पर धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि उनके सामने बीजेपी से योगी सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य किस्मत आजमा रही हैं और कांग्रेस के पूर्व मंत्री सलीम शेरवानी रण में हैं. ये वो सीट है जहां कांग्रेस ने यादव परिवार के किसी सदस्य के खिलाफ अपना प्रत्याशी उतारा है. जिसके चलते मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है.

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अखिलेश यादव के साथ मुलायम सिंह यादव
अखिलेश यादव के साथ मुलायम सिंह यादव

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लोकसभा चुनाव का तीसरा मुकाबला कल (23 अप्रैल) है, जिसमें 117 सीटों पर मतदान होना है. इस चरण में उत्तर प्रदेश की जिन दस सीटों पर मतदान होना है, उनमें मैनपुरी, बदायूं और फिरोजाबाद भी शामिल हैं. ये तीनों सीटें मुलायम सिंह यादव परिवार का गढ़ हैं. इस बार तस्वीर थोड़ी अलग है क्योंकि फिरोजाबाद से शिवपाल यादव भतीजे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. इस तरह तीसरे चरण में यादव परिवार के चार सदस्यों की किस्मत पर फैसला होना है. 2014 में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी मुलायम कुनबे के मजबूत किले को भेद नहीं सकी थी.

मैनपुरी सीट से खुद समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ रहे हैं. मुलायम सिंह पांचवीं बार यहां से चुनावी मैदान में उतरे हैं. लड़ाई के लिहाज से देखें तो ले-देकर विपक्ष के नाम पर केवल बीजेपी है. सपा का यह गढ़ इतना मजबूत है कि पिछले 24 साल से यहां किसी और पार्टी को जीत नसीब नहीं हुई. यहां तक कि मोदी लहर के बावजूद 2014 में सपा प्रत्याशी साढ़े तीन लाख से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की थी.

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हालांकि, दो सीट से सांसद बने मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी सीट खाली कर दी थी,जिस पर हुए उपचुनाव में उनके पोते तेज प्रताप सिंह यादव ने बीजेपी उम्मीदवार प्रेम सिंह शाक्य को 3 लाख 21 हजार वोटों से हराया था. इससे मैनपुरी में सपा की मजबूती का अंदाजा लगाया जा सकता है.

फिरोजाबाद में भतीजे के सामने मुलायम के भाई शिवपाल

लेकिन बदायूं व फिरोजाबाद में इस बार हालात जुदा हैं. शिवपाल सिंह यादव सपा से अलग होकर अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना चुके हैं और वो खुद फिरोजाबाद सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. शिवपाल के सामने उनके भतीजे यानी रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव हैं. चाचा-भतीजे की लड़ाई ने इस बार फिरोजाबाद के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है.

यह लड़ाई सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि वजूद की भी है. फिरोजाबाद सीट पर जाट, मुस्लिम, दलित और यादव वोटरों का वर्चस्व है, लेकिन सपा, बसपा गठबंधन और शिवपाल यादव के सियासी संग्राम में उतरने से मुकाबला दिलचस्प बन गया है. हालांकि चाचा-भतीजे के बीच लड़ाई में बीजेपी कमल खिलाने की जुगत में है. हालांकि, मोदी लहर में भी बीजेपी इस सीट पर 2014 में जीत नहीं सकी थी.

बदायूं सीट पर कांग्रेस ने नहीं दिया साथ

ठीक इसी तरह ही बदायूं में मोदी लहर का असर नहीं हुआ था और सपा के टिकट पर मुलायम परिवार के दूसरे सदस्य धर्मेंद्र यादव लड़ रहे हैं. बीजेपी से योगी सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य किस्मत आजमा रही हैं और कांग्रेस के पूर्व मंत्री सलीम शेरवानी रण में हैं. ये वो सीट है जहां कांग्रेस ने यादव परिवार के किसी सदस्य के खिलाफ अपना प्रत्याशी उतारा है, जिसके चलते मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है.

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बदायूं सीट से धर्मेंद्र यादव की राह में सबसे बड़ा सिरदर्द सलीम शेरवानी बन गए हैं. शेरवानी इस सीट से चार बार सांसद रहे हैं. जातीय समीकरण के लिहाज से देखें तो साढ़े चार लाख मुस्लिम, ढाई लाख यादव, तीन लाख दलित, एक लाख जाट, सवा लाख ब्राह्मण, एक लाख मौर्य, एक लाख राजपूत मतदाता हैं.

ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी शेरवानी अगर दलित, मुस्लिम और ब्राह्मणों को साधने में सफल रहते हैं तो धर्मेंद्र के लिए हैट्रिक लगाना मुश्किल हो जाएगा. वहीं, संघमित्रा मौर्य अपने समाज के साथ-साथ हिंदू मतों को एकजुट करने में लगी हैं.

कुल मिलाकर तीसरे चरण में यूपी की जिन सीटों पर यादव परिवार के सदस्य चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें मुलायम सिंह यादव की मैनपुरी सीट को छोड़कर बाकी दोनों जगह राह आसान नहीं हैं. फिरोजाबाद में अपने परिवार के ही शिवपाल यादव ने सपा के समीकरण बिगाड़ दिए हैं तो बदायूं में कांग्रेस ने दमदार प्रत्याशी उतारकर धर्मेंद्र यादव की धड़कनें तेज कर दी हैं. ऐसे में देखना होगा कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इन चुनौतियों से कैसे अपने परिवार को बचा पाते हैं.

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