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SP-BSP गठबंधन में RLD की एंट्री ऐसे बदलेगी वेस्ट UP के समीकरण

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के गठबंधन में चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (RLD) की एंट्री हो गई है. आरएलडी के खाते में पश्चिम उत्तर प्रदेश की बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा लोकसभा सीट आई हैं. ये तीनों सीटें जाट बहुल और आरएलडी की परंपरागत सीटें मानी जाती हैं

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अखिलेश यादव और जयंत चौधरी (फोटो-twitter)
अखिलेश यादव और जयंत चौधरी (फोटो-twitter)

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उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के गठबंधन में चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (RLD) की एंट्री हो गई है. आरएलडी के खाते में पश्चिम उत्तर प्रदेश की बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा लोकसभा सीट आई हैं. ये तीनों सीटें जाट बहुल और आरएलडी की परंपरागत सीटें मानी जाती हैं. मौजूदा समय में तीनों सीटें बीजेपी के कब्जे में हैं. ऐसे में सपा-बसपा का साथ मिलने के बाद आरएलडी इनपर अपनी वापसी की उम्मीद लगाए है.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और आरएलडी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने मंगलवार को संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस करके तीसरे पार्टनर के रूप में आरएलडी के गठबंधन में शामिल होने की घोषणा की. अखिलेश यादव ने बागपत, मथुरा के अलावा अपने कोटे से मुजफ्फरनगर की सीट भी आरएलडी को देकर गठबंधन की दिक्कतों को सुलझा लिया है और उसे कांग्रेस खेमे में जाने से रोक लिया है.

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पश्चिम उत्तर प्रदेश में आरएलडी का अपना अच्छा खासा आधार रहा है. लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे की आंच में उसकी सारी राजनीति खाक हो गई. सूबे के जाटों ने आरएलडी से ऐसा मुंह मोड़ा कि चौधरी अजित सिंह को बागपत जैसी अपनी परंपरागत संसदीय सीट को भी गवांना पड़ा. 2014 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी को एक भी सीट नहीं मिली. इतना ही नहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी का महज एक विधायक जीतने में कामयाब रहा, लेकिन बाद में वो भी बीजेपी में चला गया.

मौजूदा राजनीतिक मिजाज को भांपते हुए चौधरी अजित सिंह अपने सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए सपा-बसपा गठबंधन में हिस्सेदार बने. इसी का नतीजा है कि उन्हें तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा है जबकि एक दौर में पश्चिम यूपी में आरएलडी की तूती बोलती थी.

पश्चिमी यूपी की बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा के अलावा मेरठ, हापुड़, आगरा, सहारनपुर, अमरोहा, बिजनौर, नगीना, हाथरस, अलीगढ़ और कैराना लोकसभा सीट पर आरएलडी का अपना मजबूत जनाधार रहा है. 2009 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी पांच लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही थी.

पश्चिम उत्तर प्रदेश की करीब एक दर्जन लोकसभा सीटें हैं, जहां मुसलमानों की आबादी 25 से 40 फीसदी तक है, जिसका बड़ा तबका सपा के साथ है. ऐसे ही दलित मतदाताओं की संख्या भी काफी है, जिस पर बसपा की मजबूत पकड़ है. वहीं, पश्चिम की कई लोकसभा सीटें हैं, जहां जाट मतदाता हार जीत तय करते हैं. एक दौर में ये आरएलडी के साथ थे, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बीजेपी के साथ जुड़ गए. हालांकि कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव से जाट मतदाताओं ने एक बार फिर आरएलडी की ओर रुख किया है.

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पिछले लोकसभा चुनाव जैसी स्थिति इस बार नहीं नजर आ रही. खासकर जाट समुदाय का झुकाव एक बार फिर आरएलडी की ओर हुआ है. सपा-बसपा और आरएलडी गठबंधन अगर दलित, मुस्लिम और जाट मतदाताओं को एकजुट करने में कामयाब रहता है तो बीजेपी के लिए पश्चिम यूपी में कमल खिलाना काफी मुश्किलों भरा हो सकता है.

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