उत्तर प्रदेश में मोदी को मात देने के लिए धुरविरोधी पार्टियां एक साथ आ रही हैं. राजनीति अवसरों का खेल है. यहां कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता. जो कल तक एक दूसरे की शक्ल देखना पसंद नहीं करते थे वो आज 23 साल की दुश्मनी भुलाकर एक मंच पर आने को तैयार हैं. शनिवार को लखनऊ में एक ऐसी ऐतिहासिक तस्वीर दिखने को मिलेगी जिसमें सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस होगी. लोकसभा चुनाव के लिए दोनों में गठबंधन करीब फाइनल हो चुका है. आज सीट बंटवारे और गठबंधन को लेकर औपचारिक ऐलान हो सकता है. दोनों में यह गठबंधन 23 साल बाद हो रहा है.
90 के शुरुआती दौर में उत्तर प्रदेश में मंदिर-मस्जिद विवाद के कारण ध्रुवीकरण अपने चरम पर था. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था. इसके बाद बीजेपी को सत्ता से दूर करने के लिए सपा ने अपनी धुरविरोधी बसपा से गठबंधन किया. साल 1993 में राज्य में विधानसभा चुनाव हुए. इसमें सपा को 110 सीटें और बसपा को 67 सीटें मिलीं. चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. मुलायम सिंह यादव ने इसके बाद बीएसपी और अन्य कुछ दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई. हालांकि बसपा सरकार में शामिल नहीं हुई थी. वह सिर्फ बाहर से समर्थन कर रही थी.
सपा और बसपा दोनों धुरविरोधी पार्टियां थीं. दोनों की दोस्ती ज्यादा नहीं चली. इस दोस्ती में धीरे-धीरे खटास आने लगी. करीब 2 साल बाद जिसकी ज्यादातर लोगों को आशंका थी वही हुआ. दोनों के बीच यह गठबंधन टूट गया. लेकिन यह जो सब कुछ चल रहा था यह सब अंदर ही अंदर चल रहा था. इसकी भनक सपा को लग गई थी कि बसपा सरकार से समर्थन वापस लेने का मन बना चुकी है और बीजेपी के साथ सरकार बनाने की उसकी बात चल रही है.
क्या हुआ था 2 जून, 1995 को
उस दौर में बसपा के प्रमुख हुआ करते थे कांशीराम. उनके कहने पर मायावती ने अपने विधायकों की एक बैठक बुलाई. लखनऊ के मीरा रोड स्थित गेस्टहाउस में मायावती अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं. बताया जाता है कि बैठक में गठबंधन तोड़ने पर चर्चा हो रही थी. यह बात मुलायम सिंह को पता थी कि वहां पर बैठक हो रही है. इसके बाद सपा के कई कार्यकर्ताओं और विधायकों ने गेस्टहाउस पर हमला बोल दिया. सपा कार्यकर्ताओं ने बसपा के नेताओं के साथ मारपीट शुरू कर दी. जिस तरह से सपा के नेताओं ने हमला बोला उससे साफ था कि उनके निशाने पर मायावती ही थीं.
कार्यकर्ताओं के कहने पर मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर दिया. इसके कुछ देर में भीड़ मायावती के कमरे तक पहुंच गई और दरवाजा तोड़ने की कोशिश करने लगी. बताया जाता है कि इस दौरान सपा कार्यकर्ताओं ने मायावती के लिए अपशब्द इस्तेमाल किए और बदसलूकी के भी प्रयास किए. बवाल बढ़ता देख एसपी और डीएम पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे. किसी तरह इन लोगों ने मायावती की जान बचाई.
बताया जाता है कि बीजेपी के नेता रहे ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने मायावती को बचाने में बड़ी भूमिका निभाई थी. हालांकि कुछ साल बाद ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या कर दी जाती है.
इस पूरे कांड के बाद बसपा ने सपा से समर्थन वापस लेने का ऐलान किया और मुलायस सरकार बर्खास्त हो गई. इसके बाद बीजेपी ने मायावती को समर्थन देने का ऐलान किया और गेस्टहाउस कांड यानी 2 जून 1995 के अगले दिन बीजेपी के समर्थन से मायावती उत्तर प्रदेश के सीएम पद की शपथ लीं.
मायावती कर चुकीं हैं अखिलेश का बचाव
अखिलेश और मायावती दोनों ने साथ आने के संकेत काफी पहले से देने शुरू कर दिए थे. इस जोडी का फॉर्मूला गोरखपुर व फूलपुर में हुए उपचुनाव में निकला. जहां बीजेपी लोकसभा चुनाव में डंके बजाने वाली बीजेपी को चारो खाने चित होना पड़ा. अखिलेश यादव खुद मायावती को इसकी बधाई देने उनके घर गए थे.
इसमें कोई दो राय नहीं मायावती के जेहन में आज भी गेस्टहाउस कांड जिंदा है, तभी तो एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने इस कांड को लेकर अखिलेश यादव का बचाव किया था और कहा था कि उस वक्त अखिलेश राजनीति में आए भी नहीं थे.