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गोरखपुर में BJP को झटका, निषादों के कद्दावर नेता परिवार समेत साइकिल पर सवार

डेढ़ महीने पहले बीजेपी में शामिल हुईं निषाद समाज की कद्दावर नेता राजमती निषाद अपने बेटे अमरेंद्र निषाद के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल हो गईं. चुनाव से ठीक पहले बीजेपी के लिए यह बड़ा झटका है. aajtak.in से खास बातचीत में अमरेंद्र निषाद ने कहा था कि वे समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करेंगे. अमरेंद्र ने कहा कि हमारी घर वापसी हो रही है.

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साभार- ट्विटर
साभार- ट्विटर

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लोकसभा चुनाव-2019 में गोरखपुर संसदीय सीट पर रोज एक नई बिसात बिछाई जा रही हैं, जिससे यहां का चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प बनता जा रहा. 2018 में उपचुनाव में मिली शिकस्त के बाद से सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ अपने गढ़ में कमल खिलाने के लिए बेताब हैं. योगी अपने किले को बचाने के लिए हर दांव चल रहे हैं, लेकिन एक समीकरण फिट करते हैं तो दूसरा गड़बड़ा जाता है. इसी बनते और बिगड़ते समीकरण ने बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर रखी है.

योगी ने सपा से गोरखपुर सीट से उपचुनाव जीतने वाले प्रवीण निषाद और उनके पिता संजय निषाद को अपने साथ मिलाया तो निषाद समुदाय के दूसरे कद्दावर नेता राजमति निषाद और उनके बेटे अमरेंद्र निषाद ने बीजेपी को अलविदा कहकर सपा में घर वापसी की है. इससे योगी का बनता जातीय समीकरण एक बार फिर से बिगड़ता नजर आ रहा है. जबकि मां-बेटे ने डेढ़ महीने पहले ही मार्च 2019 में सपा छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था.

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लखनऊ में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की उपस्थिति में बीजेपी के मछलीशहर संसदीय सीट से सांसद रामचरित्र निषाद, राजमती निषाद, पूर्व मंत्री अमरेन्द्र निषाद जी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.

अमरेंद्र निषाद ने सपा में शामिल होने से पहले aajtak.in से कहा था कि बीजेपी निषादों और अन्य पिछड़ों के लिए कुछ करने वाली नहीं है. समाजवादी पार्टी से हमारा पुराना संबंध हैं और हम घर वापसी कर रहे हैं.

पूर्व विधायक राजमती निषाद के पति स्वर्गीय जमुना निषाद गोरखपुर के कद्दावर नेताओं में से एक रहे हैं. यही कारण है कि उनके परिवार का गोरखपुर की सियासत में राजनीतक वर्चस्व आज भी कायम है. हालांकि इस परिवार का बीजेपी से नाता 23 साल पुराना रहा है. 1996 में जमुना प्रसाद निषाद ने बीजेपी के टिकट पर पिपराइच से विधायकी का चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में उन्हें दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था.

जमुना प्रषाद ने हार के बाद 'मठ' से अलग अपनी राजनीतिक लकीर खींचने के लिए बीजेपी छोड़ सपा का दामन थामा. इसी के बाद वो योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरकर बीजेपी के लिए लगातार चुनौती पेश करते रहे.

योगी के सामने जमुना बड़ी चुनौती बन गए थे

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गोरखपुर लोकसभा सीट पर योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जमुना निषाद पहली बार 1998 में लोकसभा चुनाव में ताल ठोंकी. उन्होंने पहले ही चुनाव में योगी को कड़ी टक्कर दी और उन्हें महज 26 हजार मतों से हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद 1999 में जमुना प्रसाद एक बार फिर योगी के खिलाफ गोरखपुर सीट से सियासी रणभूमि में उतरे. इस बार योगी आदित्यनाथ को जीतने के लिए पसीने छुड़ा दिए. योगी बड़ी मश्कक्कत के बाद महज सात हजार वोट से जीत हासिल कर सके थे.

जमुना निषाद जब-जब योगी के खिलाफ चुनाव लड़े वो जीत का फासला कम करते जा रहे थे. ऐसे में योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी का गठन कर हिंदुत्व को अपना राजनीतिक ऐजेंडा बनाया. इसका योगी को फायदा भी मिला और जमुना प्रसाद की उभरी राजनीति को छति भी. इसका नतीजा था कि 2004 में योगी ने जमुना प्रसाद निषाद को करीब ढेड़ लाख मतों से मात दी.

जमुना निषाद 2007 के विधानसभा चुनाव में पिपराइच सीट से विधायक चुने गए. इसके बाद 2010 में एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई, जिसके बाद उनकी राजनीतिक विरासत को उनकी पत्नी राजमति निषाद ने संभाला और पिपराइस सीट से  2011 में हुए उपचुनाव जीतकर विधायक चुनी गई. 2012 के विधानसभा चुनाव में जनता ने फिर भरोसा जताया और वह दूसरी बार विधायक बनी.

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2014 के लोकसभा चुनाव में सपा ने योगी के खिलाफ राजमति को गोरखपुर सीट से चुनावी मैदान में उतारा, लेकिन वो जीत नहीं सकी. इसके बाद 2017 में राजमति निषाद ने अपने बेटे अमरेंद्र के लिए यह सीट छोड़ दी, लेकिन सपा प्रत्याशी के रुप में उतरे अमरेंद्र निषाद भाजपा की आंधी में चुनाव हार गए थे.  यहीं से गोरखपुर की सियासत में निषाद समुदाय की राजनीति एक बार फिर से परवान चढ़ने लगी.

दरअसल गोरखपुर संसदीय सीट पर निषाद वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. बीते उपचुनाव से इनकी भूमिका का अंदाजा राजनीतिक दलों हो चुका है. ऐसे में सभी दलों की नजरें निषाद समाज पर हैं. 2018 के उपचुनाव में सपा का दांव सही पड़ा था. उसने पहले संजय निषाद की निषाद पार्टी से गठबंधन किया और उसी समाज से प्रत्याशी को मैदान में उतारा.

सपा के इस समीकरण को और मजबूत करते हुए बसपा ने सपा प्रत्याशी के समर्थन का ऐलान किया था. अन्य छोटे-बड़े दल भी सपा प्रत्याशी के समर्थन में आ गए. उपचुनाव के परिणाम जब आए तो करीब तीन दशक पुराना भाजपा का किला ध्वस्त हो गया और सपा यहां से खाता खोलने में कामयाब रही.

2019 के चुनाव में महागठबंधन ने फिर निषाद समाज के रामभुआल निषाद को टिकट दिया है, लेकिन बीजेपी ने प्रवीण निषाद की सीट बदल दी है. उन्हें संतकबीर नगर से बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी ने गोरखपुर सीट पर जौनपुर के रहने वाले अभिनेता रवि किशन को मैदान में उतारा है. ऐसे में बीजेपी उम्मीदवार को जहां एक ओर बाहरी होने की चुनौतियों से सामना करना पड़ रहा है. वहीं, अब निषाद समुदाय के नेताओं को पार्टी छोड़कर सपा के साथ जाने से दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है. उपचुनाव की तरह निषाद वोटरों का ध्रूवीकरण हुआ तो बीजेपी राह कठिन हो जाएगी.

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गोरखपुर सीट पर निषाद

इस सीट पर सबसे ज्यादा निषाद समुदाय के वोटर हैं. गोरखपुर सीट पर करीब 3.5 लाख वोट निषाद जाति के लोगों का है. उसके बाद यादव और दलित वोटर्स की संख्या है. 2 लाख के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं. इसके अलावा करीब 13 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. सपा प्रत्याशी रामभुआल निषाद अगर दलित, मुस्लिम, यादव और निषाद वोटर को एकजुट करने में कामयाब रहते हैं तो बीजेपी के लिए इस सीट पर वापसी करना आसान नहीं होगा.

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