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वर्धा लोकसभा सीट: क्या रामदास तडस को मिलेगी एक और जीत?

वर्धा में लोकसभा चुनाव के लिए 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. विदर्भ की इस लोकसभा सीट पर पहले चरण में लोग अपने वोट का इस्तेमाल कर सकेंगे. इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है.

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बीजेपी और कांग्रेस(फाइल फोटो)
बीजेपी और कांग्रेस(फाइल फोटो)

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महाराष्ट्र के वर्धा में लोकसभा चुनाव के लिए 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. विदर्भ की इस लोकसभा सीट पर पहले चरण में लोग अपने वोट का इस्तेमाल कर सकेंगे. इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है. बीजेपी की ओर से यहां पर रामदास तडस और कांग्रेस की ओर से चारुलता टोकस मैदान में हैं. वहीं बहुजन समाज पार्टी ने यहां से शैलेश कुमार अग्रवाल को उतारा है. बता दें कि वर्धा लोकसभा सीट पर मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहा है.  

इस सीट पर अभी बीजेपी का कब्ज़ा है और रामदास तडस सांसद हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के सागर मेघे को एक लाख वोट से ज्यादा के अंतर से हराया था.

क्या रहा है इस सीट का इतिहास...

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वर्धा लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो एक वक्त यह सीट कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी. यहां 38 साल से ज्यादा कांग्रेस का राज रहा. सबसे पहले चुनाव 1951 में हुआ था और श्रीमन नारायण अग्रवाल जीतकर आए थे. इसके बाद 1957, 1962, 1967 में कमलनयन बजाज लगातार तीन बार चुनाव में जीते. फिर 1971 जगजीवन गणपतराव कदम कांग्रेस की टिकट पर चुनकर आए. उनके बाद संतोष राव गोडे 1977 में जीते.  इसके बाद 1980, 1984 और 1991 में वसंत राव साठे लगातार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.

जब पहली बार खुला माकपा का खाता...

वर्धा संसदीय क्षेत्र में सबसे पहले माकपा का खाता 1991 में खुला. यहां से माकपा के रामचंद्र घंगारे सांसद चुने गए थे. मालूम हो कि वर्धा में करीब दो दशक तक कांग्रेस और माकपा के बीच सीधा मुकाबला रहा. लेकिन माकपा केवल 1991 में ही जीत दर्ज कर पाया.

पहली बार बीजेपी के हाथ आया वर्धा...

वर्धा लोकसभा सीट लगातार दो साल तक कांग्रेस से दूर रही. माकपा भी यहां कुछ ख़ास नहीं कर सकी और अगले ही यानी कि 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां पहली बार चुनाव जीता और विजय मुड़े सांसद चुने गए. इस जीत के बाद कांग्रेस और भाजपा के बीच यहां सीधी टक्कर हो रही है.

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बीजेपी और कांग्रेस में ही टक्कर

वर्धा में बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही कड़ा मुकाबला माना जाता रहा है. यहां कभी बीजेपी जीतती है तो कभी कांग्रेस. 1998 में यहां कांग्रेस के दत्ता मेघे जीते. उनके बाद 1999 में कांग्रेस की प्रभाराव, 2004 में भाजपा के सुरेश वाघमारे, 2009 में दोबारा कांग्रेस के दत्ता मेघे जीतकर संसद पहुंचे. लेकिन 2014 में फिर बीजेपी के रामदास तडस चुनाव जीते.

क्या है विधानसभा क्षेत्रों की स्थिति...

वर्धा लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीट आती है. इनमें वर्धा, हिंगणघाट, आर्वी, देवली, अमरावती जिले के धामणगांव रेलवे और मोर्शी विधानसभा क्षेत्र आता है. यहां अभी बीजेपी का कब्ज़ा वर्धा, हिंगणघाट, मोर्शी विधानसभा क्षेत्रों में है. वहीं, देवली, आर्वी और धामणगांव रेलवे में कांग्रेस काबिज है.

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