त्रिपुरा में मजबूत वाम किले को 2018 में ही बीजेपी ढहा चुकी है. अब देश में केरल ही इकलौता सूबा बचा है, जहां वामदलों का शासन है. इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का भले ही यहां खाता नहीं खुला, मगर उसके वोट प्रतिशत में ढाई फीसदी और एनडीए के वोट शेयर में पांच प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. बीजेपी ने अब केरल में लाल दुर्ग पर फतह के लिए योजना बनानी शुरू कर दी है.
चर्चा तो त्रिपुरा मॉडल से केरल को जीतने की है, मगर Aajtak.in से बातचीत में बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर त्रिपुरा की जगह 'पश्चिम बंगाल मॉडल' को ज्यादा सटीक मानते हैं. वह दावा करते हैं कि सब कुछ ठीक रहा तो 2021 में ही बीजेपी केरल में कुछ चमत्कार करेगी. नहीं तो 2024 के लोकसभा चुनाव में लेफ्ट का सफाया करके रहेगी.
कांग्रेस ने लेफ्ट को साफ किया, अब हम कांग्रेस को साफ करेंगेः देवधर
त्रिपुरा में प्रभारी रहते हुए वामदलों का सूपड़ा साफ करने वाले बीजेपी के रणनीतिकार सुनील देवधर Aajtak.in से बातचीत में दावा करते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी केरल से वामदलों का सफाया कर देगी. उन्होंने कहा- मैं समझता हूं कि त्रिपुरा और केरल में कुछ फर्क है. केरल में त्रिपुरा नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल मॉडल सफल होगा.
देवधर ने कहा कि पश्चिम बंगाल में हम कभी सीपीएम से सीधी लड़ाई नहीं लड़ पाए. मगर इस बीच उभरे टीएमसी नामक खिलाड़ी ने वामदलों का सफाया कर दिया और अब हम राज्य से टीएमसी का सफाया कर रहे हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजे इसके संकेत हैं. ठीक पश्चिम बंगाल की तरह केरल को देखिए. यहां इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने लेफ्ट फ्रंट का सफाया किया है तो यह बीजेपी के लिए शुभ संकेत है. हम तो चाहते ही हैं कांग्रेस से आमने-सामने की लड़ाई. अब हम केरल से कांग्रेस का आसानी से सफाया करेंगे.
केरल में क्या है बीजेपी की चुनौती?
बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर का मानना है कि केरल में ईसाई और मुस्लिम वोटर्स ज्यादा हैं. इन पर धार्मिक समूहों का ज्यादा प्रभाव है. चर्च पॉलिटिक्स हावी है. बकौल देवधर," केरल में कांग्रेस और लेफ्ट एक राजनीति के तहत बीजेपी को मुस्लिमों और इसाई समुदायों की नजर में विलेन साबित करतीं हैं. ताकि बीजेपी का उभार रोका जा सके. जबकि पीएम मोदी चुनाव जीतने के बाद दिए भाषण में भी अल्पसंख्यकों के हितों की बात कर चुके हैं. वह सबका-साथ सबका विकास की बात करते हैं. केरल में बीजेपी की राह में धार्मिक संगठनों का हस्तक्षेप ही सबसे बड़ी चुनौती है. मगर हम इस चुनौती से पार पाकर ही रहेंगे.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन की वजह बताते हुए सुनील देवधर ने कहा कि हमने सबरीमाला के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया, इससे सत्ताधारी लेफ्ट के खिलाफ जनाक्रोश पैदा हुआ, मगर हिंदू वोटर्स बीजेपी को कमजोर मानकर कांग्रेस में शिफ्ट हो गए. मगर हम मानते हैं कि आज का हिंदू वोटर जो कांग्रेस की तरफ मजबूरी में गया है, वह ही कल का हमारा वोटर होगा. हमारा फोकस कांग्रेस में खिसके हिंदू वोटर को खुद से जोड़ने पर है. हम आगे केरलकी जनता की नजर में बीजेपी को मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करेंगे. हो सकता है कि 2021 में ही चमत्कार हो जाए.
2024 में केरल का हाल त्रिपुरा जैसा की तैयारी
बीजेपी कवर करने वाले और एक राष्ट्रीय दैनिक से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु मिश्र कहते हैं कि बीजेपी को बंगाल और त्रिपुरा की तरह केरल में भी वामपंथ के कमजोर पड़ने का सिग्नल मिल चुका है. जिस दिन मतगणना हो रही थी, उस दिन अमित शाह का ध्यान केरल पर कुछ ज्यादा था. हिंमाशु कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान सीपीएम से नाराज वोटर को एक मजबूत विकल्प की तलाश थी, जो बीजेपी पूरी करती नहीं दिखी तो वे कांग्रेस की तरफ मुड़ गए.
भले ही मामूली वोट प्रतिशत बीजेपी का बढ़ा है, मगर पार्टी इस नाते उत्साहित है कि उसने कुछ और जोर लगाया तो राज्य में लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच सिमट कर रह सकती है. वामदलों से सीधा सामना करने की बजाए कांग्रेस से मुकाबला बीजेपी को आसान लगता है. हिमांशु कहते हैं कि अब बीजेपी 2021 के विधानसभा चुनाव तक खुद को नंबर दो की पार्टी बनाकर वोटर्स के सामने विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश में ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में केरल में त्रिपुरा वाला हाल किया जा सके.
सबरीमला मुद्दा प्रभावी रहा
केरल में बीजेपी के प्रवक्ता बी. गोपालकृष्णनन Aajtak.intoday.in से बातचीत में कहते हैं कि बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन के पीछे सबरीमाला मंदिर का मुद्दा प्रमुख रहा. पार्टी ने मेजॉरिटी पॉलिटिक्स की. इस बार बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के वोट शेयर में पांच से छह प्रतिशत के बीच बढ़ोत्तरी हुई है. इन नतीजों से पार्टी उत्साहित है. आने वाले वक्त में केरल भी हमारा होगा.
क्या है सीटों का हाल
केरल में पिछली बार आठ सीटें पाने वाली कांग्रेस इस बार 15 सीटों के आंकड़े तक पहुंच गई. वहीं बीजेपी का खाता भले न खुला हो, मगर पार्टी का वोट शेयर पिछली बार की तुलना में बढ़ा है. मिसाल के तौर पर 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए का वोट शेयर 10.85 प्रतिशत रहा, जो इस बार 15.20 प्रतिशत हो गया है. वहीं बीजेपी के वोट शेयर में 2.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.
राज्य में कहां मजबूत रही बीजेपी
2019 के लोकसभा चुनाव में केरल में कई सीटों पर बीजेपी ने अच्छा-खासा वोट शेयर हासिल किया है. शशि थरूर जिस तिरुवनंतपुर सीट से 99980 वोटों से जीते, वहां बीजेपी दूसरे स्थान पर रही. अलाप्पुझा सीट पर बीजेपी तीसरे स्थान पर रही. यहां बीजेपी को 17.24 प्रतिशत के साथ 186278 वोट मिले. तिरुवनंतपुरम में बीजेपी लगातार मजबूत हुई है. 2015 में हुए निकाय चुनावों में तिरुवनंतपुरम नगरपालिका की 100 सीटों में से भाजपा ने 33 सीटों पर जीत का परचम लहराया था.
केरल में क्या करने वाली है बीजेपी?
त्रिपुरा में किसी ने सोचा नहीं था कि कभी वामगढ़ त्रिपुरा में महज 1.5 फ़ीसदी वोट पाने वाली बीजेपी बाद में वामदलों का सफाया कर देगी. त्रिपुरा में 2018 के विधानसभा चुनावों मे बीजेपी ने 60 में से 35 सीटें जीतकर अप्रत्याशित रूप से सरकार बनाई. बीजेपी के सूत्र बता रहे हैं कि अब त्रिपुरा मॉडल के जरिए केरल में भी वाम गढ़ को ढहाने की तैयारी है. इसका खाका आरएसएस ने त्रिपुरा की तर्ज पर बिछाना शुरू कर दिया है.
केरल के हर वर्ग में पैठ बनाने के लिए बीजेपी और संघ पदाधिकारी लगातार एक्शन मोड में रहकर अभियान चलाएंगे. संघ पदाधिकारी हाशिये पर पड़ी जनता के बीच उठ-बैठकर उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ेंगे. हालांकि केरल में आरएसएस का मिशन पहले से शुरू है. मगर लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद अब यहां संभावनाएं मजबूत दिखने के बाद आरएसएस के अभियान में तेजी आने की बात कही जा रही है.
2019 में किसको कितनी सीटें
सत्ताधारी सीपीआई(एम) को 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट मिली. कांग्रेस को 15, आईयूएमएल को दो, केरला कांग्रेस को एक और आरएसपी को एक सीट मिलीं. 2014 में सीपीआई(एम) को पांच सीटें मिलीं थीं. वहीं कांग्रेस को आठ सीटें, केरला कांग्रेस को एक सीट, आरएसपी को एक सीट और सीपीआई को भी एक सीट, दो निर्दलीय, दो आईयूएमएल को मिली थी. इसी तरह पथानामथिट्टा में बीजेपी को जहां तकरीबन 30 प्रतिशत वोट मिले, वहीं त्रिशूर में भी बीजेपी के टिकट पर लड़े एक्टर सुरेश गोपी ने 28 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया.
2019 में दलों का वोट प्रतिशत
कांग्रेस 37.27 प्रतिशत
सीपीएम 25.83 प्रतिशत
बीजेपी 12.93 प्रतिशत
बीएसपी 0.25 प्रतिशत
सीपीआई 6.05 प्रतिशथ
आरएसपी 2.45 प्रतिशत
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग 5.45 प्रतिशत
अन्य 7.19 प्रतिशत