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अगर बदल गई मोदी सरकार, तो कौन निभाएगा अंतरिम बजट के वायदे?

Interim Budget 2019 स्वस्थ्य लोकतांत्रिक परंपरा में आम तौर पर नवगठित सरकार पिछली सरकार द्वारा उठाए गए लोक कल्याणकारी फैसलों को नहीं पलटती. इसे लेकर राजनीतिक जोखिम भी होता है. अपना कार्यकाल पूरा कर रही सरकार जाते-जाते अपने अंतरिम बजट में जनता के लिए विजन देने की कोशिश करती है. जिसमें अधिकतर वायदे लोकलुभावन होते हैं. 

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केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो-आर्काइव)
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो-आर्काइव)

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केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने शुक्रवार को अपने कार्यकाल का आखिरी और अंतरिम बजट पेश किया. चूंकि कुछ ही महीने में देश में आम चुनाव होने हैं, इसलिए कार्यकाल पूरा कर रही सरकार परंपरा के अनुसार अंतरिम वजट पेश करती है. लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी केंद्र सरकार ने इस बजट में कई लोकलुभावन वादे किए हैं. इसमें किसानों के खाते में कैश ट्रांसफर, 5 लाख तक की आय वालों को टैक्स में माफी के साथ-साथ असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को पेंशन संबंधी कई बड़े ऐलान किए हैं. पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने इस बजट को वोट का हिसाब-किताब बताया है.

देश में जारी प्रथा के अनुसार कार्यकाल पूरा कर रही सरकार अंतरिम बजट पेश करती है, और कई बार अंतरिम बजट की जगह लेखानुदान यानी वोट ऑन अकाउंट भी पेश किया जाता है. चूंकि मौजूदा सरकार के पास कार्यकाल का कुछ ही समय होता है, इसलिए नवगठित सरकार द्वारा पूर्ण बजट पेश करने तक का खर्च वहन करने के लिए सरकार को संसद से अनुमति लेनी होती है. लिहाजा इस तरह के बजट में आम तौर पर सरकार की तरफ से कोई बड़ी घोषणाएं और नीतिगत फैसले नहीं लिए जाते. इसलिए इसमें मात्र कुछ महीनों के आय और व्यय का ब्यौरा भर होता है. क्योंकि मौजूदा सरकार अपने वित्तीय फैसले आने वाली सरकार पर नहीं थोप सकती. हालांकि अंतरिम बजट नाम का कोई शब्द संविधान में मौजूद नहीं है, लिहाजा यह बस एक स्वस्थ्य लोकतांत्रिक परंपरा का हिस्सा भर है.

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लेकिन इस बार के बजट में केंद्र की मोदी सरकार ने 5 लाख तक की आय पर टैक्स से छूट, लघु एवं सीमांत किसानों के खाते में सीधे कैश ट्रांसफर की घोषणा करते हुए बताया इससे सरकार के खजाने पर 75,000 करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा. हालांकि सरकार ने इसके लिए धन का आवंटन मात्र चालू वित्तीय वर्ष के लिए किया है. वहीं केंद्र सरकार ने असंगठित क्षेत्र में मजदूरों के लिए नई पेंशन स्कीम की भी घोषणा की है. जिसके तहत 100 रुपये प्रतिमाह प्रीमियम के भुगतान पर 60 साल की आयु के बाद उन्हें 3000 रुपये प्रतिमाह पेंशन देने का ऐलान किया गया है. यह सब ऐसी योजनाएं हैं, जिनका बोझ आने वाली सरकार को उठाना पड़ेगा.

लोकसभा चुनाव के बाद जो नई सरकार बनेगी नियमत: उसे ही पूर्ण बजट पेश करने का अधिकार होता है. लेकिन मोदी सरकार ने अपने अंतरिम बजट में इतनी बड़ी घोषणाएं करके जो दांव खेला है उसे आने वाली सरकार द्वारा पलटने के लिए इससे भी बड़ी लकीर खींचनी होगी. मसलन 5 लाख तक की आय को टैक्स के दायरे से बाहर रखने का फैसला मध्यम वर्ग के लिए बड़ी राहत की खबर है. इस फैसले को पलटने के लिए आने वाली सरकार को इससे भी बड़ी घोषणा करनी होगी. इसी तरह किसानों का मुद्दा हाल के दिनों इतना संवेदनशील हो चला है कि उनके हित में किए गए छोटे से छोटे फैसले को छेड़ना आग में हाथ झुलझाने के समान होगा.

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सरकार को अपने अंतिम और अंतरिम बजट में टैक्स में बदलाव करने की कोई संवैधानिक पाबंदी नहीं है. लेकिन लोकतांत्रिक परंपरा का सम्मान करते हुए अब तक इस भाव का खयाल रखा गया है कि इसमें बड़े नीतिगत बदलाव और नई योजनाओं का ऐलान न किया जाए. कभी-कभी सरकार अंतरिम बजट की जगह लेखानुदान पेश करती है, जिसमें सरकारी खर्च चलाने के लिए समेकित निधि से धन निकालने के लिए सरकार को संसद की मंजूरी लेनी होती है.

आजाद भारत का पहला अंतरिम बजट मोरारजी देसाई ने 1962-63 में पेश किया था. इसके बाद से लेकर अब तक 12 अंतरिम बजट पेश किए जा चुके हैं.

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