नवनिर्वाचित सांसदों को संबोधित करने से पहले निवर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान के आगे माथा टेका. मोदी ने अपने संबोधन में भी बार-बार संविधान का उल्लेख किया. मोदी ने कहा कि आप लॉ मेकर हैं. जब भी कभी आप किसी निर्णय को लेकर भ्रम में हों, तब इसके लिए 2 कसौटियां हैं. पहली कसौटी है गांधी, दीनदयाल, लोहिया की विचारधारा और दूसरी कसौटी है हमारा संविधान.
उन्होंने कहा कि बाबा साहब आंबेडकर की तपस्या का उसमें अर्क है. हम कसौटी के इन मानदंडों को लेकर चलें. पहली नजर में यह भारतीय गणतंत्र के पवित्र ग्रंथ संविधान में निवर्तमान प्रधानमंत्री की आस्था नजर आता है. वह भी तब, जब 2014 में पहली बार सांसद चुने जाने के बाद लोकतंत्र के मंदिर संसद में प्रवेश करने से पू्र्व उसकी सीढ़ियों पर माथा टेका था. इसके पीछे मोदी की सोच क्या थी, यह तो मोदी ही जानें लेकिन उनके इस कदम और संबोधन के सियासी निहितार्थ भी तलाशे जाने लगे हैं.
विरोधी दलों के प्रचार अभियान के केंद्र में संविधान था. विपक्ष संविधान को खतरे में बता संविधान बचाने, लोकतंत्र बचाने की दुहाई दे मोदी सरकार को घेरने की कोशिश करता रहा. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष महागठबंधन की अगुवा आरजेडी के तेजस्वी यादव ने चुनाव प्रचार के दौरान 2019 की चुनावी जंग को संविधान बचाने की लड़ाई बताते हुए यहां तक कह दिया था कि मोदी सरकार अगर सत्ता में वापसी करती है तो देश में कभी चुनाव नहीं होंगे. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कहा था कि यूपी में हमारी लड़ाई संविधान बचाने को लेकर है.
शरद यादव, लालू प्रसाद यादव जैसे शीर्ष नेताओं के साथ ही कांग्रेस भी संविधान के मुद्दे पर मोदी सरकार को लगातार घेरती रही. ऐसे में मोदी का संविधान के आगे मत्था टेकना और कसौटी बताना कहीं ना कहीं यह संदेश देने की कोशिश है कि सरकार पर जो आरोप लगते रहे वह अनर्गल हैं और सरकार संविधान के दायरे में रहकर कार्य करने को संकल्पित है.