भारतीय प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आने वाले यशवंत सिन्हा कभी राष्ट्रीय राजनीति के शीर्ष में रहे थे. उन्होंने जनता पार्टी के साथ अपनी राजनीति की पारी की शुरुआत की और भाजपा में रहते हुए वह वित्त मंत्री और विदेश मंत्री जैसे महत्वपूर्ण नीति निर्धारक पदों पर रहे. उन्होंने अप्रैल 2018 में भाजपा छोड़ने की घोषणा की थी. उनके मुताबिक फिलहाल वह दलगत राजनीति छोड़कर लोकतंत्र को मजबूत करने के काम में जुटे हैं.
मोदी सरकार के लिए बने मुसीबत का सबब
यशवंत सिन्हा बिहार समेत राष्ट्रीय स्तर पर अब भी सक्रिय हैं और भाजपा से नाराजगी के चलते वह अपनी पूर्व पार्टी को नुकसान पहुंचा सकने की हैसियत में हैं. उन्होंने मौजूदा एनडीए सरकार के समय में की गई राफेल डील के विरोध में पूर्व राजनेता अरुण शौरी और वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. राफेल मामले पर दाखिल उनकी पुनर्विचार याचिका पर केंद्र सरकार बुरी तरह से घिरी है और एकाधिक बार गलत हलफनामे देने जैसी गंभीर चूक कर चुकी है. यही नहीं, यशवंत सिन्हा राष्ट्रीय स्तर पर और बिहार और झारखंड में भी कई ऐसे मंचों पर नजर आ चुके हैं जो केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में होता है. वह वित्तीय मामलों, विदेश नीति और लोकतंत्र पर हमले को लेकर भाजपा की सरकार को घेरते रहे हैं.
जनता पार्टी से की राजनीति की शुरुआत
यशवंत सिन्हा ने प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर बिहार सरकार और भारत सरकार में कई सालों तक विभिन्न पदों पर अहम जिम्मेदारियां निभाईं. इस दौरान वह कई देशों में तैनात रहे. 1984 में यशवंत सिन्हा प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर जनता पार्टी से जुड़ गए और 1988 में राज्य सभा के सदस्य चुने गए. 1989 में वह जनता पार्टी के महासचिव बने और 1990-91 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री भी रहे.
भाजपा में आने के बाद तय कीं ऊंचाइयां
जनता पार्टी के बाद यशवंत सिन्हा भाजपा में आए और यहां उन्होंने देश को दिशा दिखाने वाली जिम्मेदारियां निभाईं. साल 1996 में उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय प्रवक्ता नियुक्त किया गया. महज दो साल बाद ही वह एनडीए की सरकार में वित्त मंत्री बन चुके थे. यही नहीं, 2002 में वह एनडीए की सरकार में विदेश मंत्री भी रहे. एनडीए की सरकारों ने प्रशासनिक अधिकारी रहते हुए उनके वाणिज्य विभाग और विदेशों में अहम पदों रहने के अनुभव का लाभ उठाया. 2004 के लोकसभा चुनाव में वह बिहार (अब झारखंड) के हजारीबाग से चुनाव हार गए थे, जो कई राजनीतिक विश्लेषकों को चौंकाने वाला नतीजा था. 2009 में उन्होंने पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.उनके बेटे जयंत सिन्हा इस समय भाजपा में हैं और एनडीए सरकार में मंत्री भी हैं. इसके बावजूद वह मौजूदा सरकार पर हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ते.जयंत इस समय हजारीबाग से सांसद हैं.
जब बदली 53 साल पुरानी परंपरा
यशवंत सिन्हा के वित्त मंत्रालय में रहते हुए लिए गए कई फैसलों की आलोचना की जाती है. विकास दर तेज करने को लेकर उठाए गए उनके कई कदमों को आज भी याद किया जाता है. हालांकि उनके कुछ फैसलों की आलोचना होने के बाद उन्हें विदेश मंत्री बना दिया गया और तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिन्हा को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई. वित्त मंत्री रहते हुए उन्होंने भारत की 53 साल पुरानी शाम पांच बजे बजट पेश करने की परंपरा को तोड़ा. अपने वित्त मंत्री के कार्यकाल का जिक्र उन्होंने अपनी किताब कन्फेशंस ऑफ ए स्वदेशी रिफॉर्मर में किया है.
कभी किया था मोदी का समर्थन अब विरोध
यशंवत सिन्हा भाजपा के उन चुनिंदा नेताओं में शामिल रहे, जिन्होंने नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री के तौर पर समर्थन किया था. हालांकि, बाद में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से वह कई मुद्दों पर अपनी नाराजगी जताते रहे. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मैंने ही PM पद के लिए मोदी का समर्थन किया था. ये भी कहा था कि इससे हम जोरदार जीत दर्ज करेंगे. बाद में दूसरे नेताओं ने भी यही बात कही और उन्हें पीएम उम्मीदवार बनाया भी गया. हम जीते भी. और तो और मैंने उस समय मेनिफेस्टो भी बनाया.' लेकिन सिन्हा ने शीर्ष नेतृत्व से नाराजगी जताते हुए धीरे-धीरे पार्टी और दलगत राजनीति से किनारा कर लिया. उन्होंने कहा कि पार्टी अपने बहुत सारे वादों में से कई वादों को पूरा नहीं कर सकी.
मिल चुका है फ्रांस सरकार का सर्वोच्च सम्मान
यशवंत सिन्हा के दो बेटे जयंत सिन्हा और सुमंत सिन्हा हैं. जयंत और सुमंत दोनों आईआईटी दिल्ली से पढ़े हैं. जयंत फिलहाल राजनीति में हैं और सुमंत रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में कार्यरत हैं. यशवंत सिन्हा की पत्नी निर्मला सिन्हा बाल विषयों की प्रसिद्ध लेखिका हैं. यशवंत सिन्हा ने'इंडिया अनमेड : हॉउ मोदी गवर्मेंट ब्रोक द इकनॉमी' किताब भी लिखी है. यशवंत सिन्हा को 2015 में फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑफिसर ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर' मिल चुका है.
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