Raja Ram Singh
CPI(ML)(L)
Pawan Singh
IND
Upendra Kushwaha
RLM
Dheeraj Kumar Singh
BSP
Nota
NOTA
Raja Ram Singh
IND
Priyanka Choudhary
AIMIM
Ajeet Kumar Singh
PPI(D)
Vikash Vinayak
JANJP
Indra Raj Roushan
IND
Pradeep Kumar Joshi
RSSD
Avadhesh Pasawan
BAAP
Rajeshwar Paswan
AHFB(K)
Prayag Paswan
SUCI
CPI(ML)(L) उम्मीदवार Raja Ram Singh बने Karakat लोकसभा सीट के विजेता
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Karakat का ताजा हाल: Bihar की इस सीट पर CPI(ML)(L) उम्मीदवार Raja Ram Singh ने बनाई बढ़त
CPI(ML)(L) प्रत्याशी Raja Ram Singh विशाल अंतर से जीत की ओर! अभी तक मिले 232793 वोट्स
CPI(ML)(L) Raja Ram Singh ने बनाई बढ़त, जानिए Karakat लोकसभा सीट का हाल
बिहार की काराकाट लोकसभा सीट (Karakat Seat) रोहतास जिले में आती है. 2011 की जनगणना के अनुसार, काराकाट की जनसंख्या 435470 है. यहां की 88.87 फीसदी आबादी ग्रामीण और 11.13 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का अनुपात कुल जनसंख्या में से क्रमशः 17.61 और 0.18 है. अपने सामाजिक समीकरण तथा आंदोलन के लिए भी यह क्षेत्र चर्चा में रहा है.
भोजपुर तथा औरंगाबाद से सीधे सड़क संपर्क से जुड़े होने के कारण कारोबार व्यवसाय में भी यह इलाका सबसे जुड़ा हुआ है. किसानों को उनके उपज का सही मूल्य, उच्च शैक्षणिक संस्थाओं, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव तथा विधि व्यवस्था यहां कि मूल समस्या है.
काराकाट में पहला चुनाव 1967 में हुई. तब एसएसपी के टी सिंह ने कांग्रेस के एम पांडे को मात दी थी. काराकाट का इलाका कम्युनिस्ट आंदोलन के लिए चर्चित रहा है. इस इलाके पर कभी समाजवादी नेता तुलसी सिंह का कब्जा था. 1990 तथा 1995 में तुलसी सिंह जनता दल से विधायक चुने गए थे, लेकिन 2000 तथा 2005 के फरवरी के चुनाव में उन्हें सीपीआई (एमएल) के अरुण सिंह से हाथों हार मिली थी.
अरुण सिंह तीन बार काराकाट के विधायक रह चुके हैं. 2010 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के मुन्ना राय को बीजेपी के राजेश्वर राज ने 11 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया था. 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने अपना प्रत्याशी बदल दिया और मुन्ना राय की जगह संजय यादव को अपना प्रत्याशी बनाया था. बीजेपी के राजेश्वर राज संजय यादव से हार गए थे.
काराकाट लोकसभा निर्वाचन बिहार राज्य के 40 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है. यह निर्वाचन क्षेत्र 2002 परिसीमन के बाद 2008 में अस्तित्व में आया.
इस निर्वाचन क्षेत्र के जातिगत आंकड़ों से पता चलता है कि यहां कोइरी ( कुशवाहा ), राजपूत और यादव समुदायों में से प्रत्येक से 2 लाख मतदाता हैं. पिछले कुछ चुनावों से यह निर्वाचन क्षेत्र महाबली सिंह और उपेन्द्र कुशवाह के बीच प्रतिस्पर्धा रहा है, दोनों कोइरी जाति से आते हैं.
2019 का जनादेश
जेडी(यू) के महाबली सिंह 3,98,408 वोट से जीते    
रालोसपा  के उपेन्द्र कुशवाहा को 3,13,866 वोट मिले    
नोटा को 22,104 मत पड़े    
2014 का जनादेश
रालोसपा के  उपेन्द्र कुशवाहा 3,38,892 वोट से जीते    
आरजेडी के कांति सिंह को 2,33,651 वोट मिले    
जेडी(यू) के महाबली सिंह को 76,709 वोट मिले    
Upendra Kushwaha
BLSP
Raja Ram Singh
CPI(ML)(L)
Nota
NOTA
Raj Narayan Tiwari
BSP
Mohammad Atahar Husain
ANC
Mamta Pandey
RSPSR
Jyoti Rashmi
RSWD
Basudeo Hazarika
IND
Ramjee Singh Kanta
AHFBK
Neelam Kumari
IND
Rameshwar Singh
IND
Manoj Singh Kushvaha
JPJD
Nand Kishor Yadav
SPL
Usha Sharan
SSD
Ghanshyam Tiwari
SP
Pradeep Chouhan
BLND
Arif Isain Husain
JDR
Kumar Saurabh
IND
Prakash Chandra Goyal
PPID
Gorakh Ram
VPI
Shashikant Singh
BMF
Kamlesh Ram (prasad)
SBSP
Prithvi Nath Prasad
ASDHP
Ram Ayodhya Singh
IND
Punam Devi
IND
Dharmendra Singh
IND
Abhiram Priyadarshi
IND
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनो ही अगले साल होने जा रहे बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में शिद्दत से जुटे हुए हैं. थोड़ा फर्क ये है कि दोनो को चैलेंज करने इस बार प्रशांत किशोर भी मैदान में उतरने की घोषणा कर चुके हैं - क्या मुकाबला त्रिकोणीय होने वाला है?
1 जून को लोकसभा चुनाव के आखिरी यानी सातवें चरण के लिए वोटिंग होगी. सातवें चरण में बिहार की भी कुल 8 सीटों पर वोटिंग होगी. इन सभी सीटों में से काराकाट लोकसभा सीट सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बन गई है. इस सीट पर भोजपुरी फिल्मों के एक्टर-सिंगर और पावर स्टार कहे जाने वाले पवन सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं.
भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह बिहार की काराकट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. पवन सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. उनके फैंस का कहना है कि वे इस बार विकास के लिए वोट करेंगे. पवन सिंह के चुनावी मैदान में उतरने से राजनीतिक दलों में हड़कंप मच गया है. देखें सीट सुपरहिट.
बिहार में जातीय संघर्ष का इतिहास बहुत लंबे समय तक रहा है. हर्षराज हत्याकांड के बाद निश्चित ही कुछ दिनों के लिए मृतक छात्र नेता की जाति गोलबंद हो सकती है. इसके प्रतिक्रिया में आरोपी छात्र की जाति भी एक साथ आएगी. कम से कम तीन सीटों पर तो इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है.